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कारगिल युद्ध में दुश्मनों की सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था इस शहीद ने

ग्राम गोविन्दपुर ज्ञानपुर के महीपाल सिंह ने कारगिल युद्ध में दुश्मनों की सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। लड़ते हुए वह शहीद हो गए।

By RashidEdited By: Published: Fri, 26 Oct 2018 12:54 AM (IST)Updated: Fri, 26 Oct 2018 12:39 PM (IST)
कारगिल युद्ध में दुश्मनों की सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था इस शहीद ने
कारगिल युद्ध में दुश्मनों की सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था इस शहीद ने

मुरादाबाद(जेएनएन): जनपद की कांठ तहसील क्षेत्र के ग्राम गोविन्दपुर ज्ञानपुर के महीपाल सिंह ने कारगिल युद्ध में दुश्मनों की सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। लड़ते हुए वह शहीद हो गए। उनकी शौर्यगाथा को सुनकर शहीद स्मारक को रोशन करने पहुंचे लोगों की आंखे मन हो गईं।

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कारगिल युद्ध में शहीद कांठ के महीपाल सिंह का स्मारक रोशन

जिला मुख्यालय से तीस किमी व ब्लाक मुख्यालय से आठ किलोमीटर की दूर कडूला नदी के पास बसे गांव गोविन्दपुर ज्ञानपुर निवासी कृषक हरकेश सिंह के बड़े बेटे महीपाल सिंह ने इंटर की शिक्षा के बाद सेना में जाने का निश्चय किया और वर्ष 1985 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए। 14 साल की सेवा के दौरान देश के अनेक भागों में कार्यरत रहे कारगिल युद्ध के दौरान कारगिल में तैनात थे। चारों ओर बर्फ, हर तरफ मुश्किलें और पाकिस्तानी सेना की बमबारी व गोलाबारी से विचलित न होकर महीपाल सिंह ने एक सच्चे भारतीय सपूत का परिचय देते हुए मोर्चे पर डटे रहे परंतु अचानक हुए हमले में वीरगति प्राप्त की। गुरुवार को शहीद दिवस पर ग्रामीणों ने शहीद स्मारक और प्रतिमा पर मोमबत्ती जलाकर श्रद्धांजलि दी।

शहीद स्मारक की परिवार के लोग करते हैं देखभाल

शहीद की पत्नी उमेश देवी, पुत्री ज्योति (23) वर्ष पुत्री जौली (18) अपने स्तर से उक्त स्मारक की रंगाई पुताई व आसपास की सफाई आदि कराकर स्मारक की देखरेख करते हैं। प्रतिवर्ष ग्रामवासी व पत्नी उमेश आदि शहीद दिवस पर अपने प्रिय के स्मारक को दीयों से रोशन करते हैं। गुरुवार को दैनिक जागरण के आह्वान पर गणमान्य लोगों ने दीपदान में भाग लिया।

श्रद्धा सेे सिर झुकता है हर किसी का

शहीद के शव को अंतिम दर्शनों के बाद गांव के नजदीक उनकी ही भूमि में ही अंतिम संस्कार कर दिया था। बाद में प्रशासन ने शहीद स्मारक उस स्थान पर बनवा दिया जो गांव वालों के लिए श्रद्धा का केंद्र है। कोई भी ग्रामीण जब उधर से गुजरता है तो उसका सिर शहीद को नमन करने के लिए स्वयं ही झुक जाता है।

दूसरे बेटे के सेना में जाने का सपना हो न सका पूरा

पिता हरकेश सिंह ने भी उस समय कहा था कि काश उसका दूसरा बेटा भी मिलेट्री में जाकर देश की सेवा करता। गांव के युवाओं के लिए भी शहीद महीपाल सिंह का स्मारक एक प्रेरणा का श्रोत बन गया है और गांव के दर्जनों युवा प्रात: व शाम को शहीद को नमन कर भागदौड़ कर मिलेट्री अथवा पुलिस सेवा में जाने की तैयारी कर रहे हैं।

शहीद के परिवार का दर्द

सरकार की उपेक्षा ही कहा जाएगा कि जो सुविधाएं एक शहीद के परिवार को मिलती है वह महीपाल सिंह के परिवार को आज तक नहीं मिली। शहीद महीपाल सिंह की पत्नी उमेश देवी ने बताया कि सरकार की ओर से न तो उसे ग्राम समाज की भूमि मिली और न ही कोई पेट्रोल पंप आवंटित किया गया। बस राशन की दुकान चलाकर परिवार का गुजारा कर रही है।

ग्रामीणों की यह है मांग

शहीद महीपाल सिंह के नाम से गांव के संपर्क मार्ग बनाकर उस पर शिलापट लगवाएं या फिर गांव के प्राथमिक स्कूल में उनके आदमकद की प्रतिमा लगाएं जिससे कि स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने वाले छोटे-छोटे बच्चों को पता चलता रहे कि उनके गांव के सपूत ने कारगिल फतह कराने में अपनी जान गंवाई थी। गांव में महीपाल सिंह की वर्षगांठ या पुण्यतिथि पर एक सरकार की ओर से बच्चों की गोष्ठी करे। इससे बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि बढ़ेगी व शहीद महीपाल सिंह की आत्मा को शांति भी मिलेगी कि उसका बलिदान ग्रामवासियों को कुछ न कुछ तो दे रहा है।

पति की प्रतिमा के दर्शन से शुरू होती है दिनचर्या

पत्नी प्रतिदिन शहीद स्मारक पर पहुंचकर आराध्य पतिदेव का दर्शन करने जाती है। उसी से दिनचर्या शुरू होती है। 


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