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टीम ने पूछा-कहां है सीएंडडी वेस्ट प्लांट तो गुम कई अफसरों की सिट्टी-पिट्टी Moradabad News

अपने नंबर से नगर निगम कर्मचारी मोबाइल पर किसी व्यक्ति का पंजीयन करते हैं और सफाई हो रही या नहीं? इस समेत सात सवालों के जवाब खुद बटन दबाकर दे रहे हैं।

By Narendra KumarEdited By: Published: Thu, 23 Jan 2020 07:02 AM (IST)Updated: Thu, 23 Jan 2020 02:10 PM (IST)
टीम ने पूछा-कहां है सीएंडडी वेस्ट प्लांट तो गुम कई अफसरों की सिट्टी-पिट्टी  Moradabad News
टीम ने पूछा-कहां है सीएंडडी वेस्ट प्लांट तो गुम कई अफसरों की सिट्टी-पिट्टी Moradabad News

मुरादाबाद (तेजप्रकाश सैनी)। विकास कहां से होता, वो तो स्मार्ट सिटी के गर्भ में है। भले चिल्लाते रहें विकास-विकास। वह तो अपने समय से ही पैदा होगा और धरती पर पैर रखेगा। विकास के पैदा होने पर 20 अरब 26 करोड़ रुपये खर्च होंगे। विकास को पालने-पोसने का भी बड़ा इंतजाम किया गया है। अधिकारी दिल्ली से लखनऊ तक सरकार को विकास के पैदा होने की तैयारी की रिपोर्ट तक सौंप चुके हैं। नगर निगम अफसर, अब दावे से कह भी रहे हैं कि विकास मार्च तक पैदा हो जाएगा। अब बस इसके पैदा होने का इंतजार है। हम उसी विकास की बात कर रहे हैं, जिसको लेकर नगर निगम पांच साल से इलाज कराता आ रहा है, स्मार्ट सिटी के डॉक्टर बीमारी नहीं पकड़ पाए और चार बार कभी लखनऊ तो कभी दिल्ली में प्रोजेक्ट ने दम तोड़ दिया। लेकिन, अब प्रोजेक्ट मंजूर हो गया है तो विकास पैदा होना तय है।

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अफसरों की बोलती बंद

 लीजिए, जिस बरात की तैयारी के लिए शहर सजाया गया, वे बराती आ गए। हम बात कर रहे हैं स्वच्छता सर्वेक्षण टीम की। बरात के स्वागत में जो इंतजाम हैं, उस पर खुशी जताने के बजाय टीम ने नगर निगम अफसरों की दुखती रग पर हाथ रख दिया। बराती मतलब छह सदस्यों की स्वच्छता सर्वेक्षण टीम। उसने आते ही पूछा बताइए सीएंडडी वेस्ट प्लांट कहा हैं? अब तो अफसरों की सिट्टी-पिट्टी गुम। बताते भी क्या, अभी प्लांट तो बना ही नहीं। प्लांट से महानगर में निर्माण सामग्री के अपशिष्ट को नष्ट किया जाना है। नगर निगम के अफसर निर्माण सामग्री को उठवाने के लिए निकल पड़े। नगर आयुक्त साहब को आखिर अपने ही विभाग की निर्माण सामग्री कांठ रोड पर मिल गई। इसे देख कर त्योरियां चढ़ गईं साहब की। घुमाया फोन और जिस भाषा में उसे समझाया, इसके बाद वह जीवन में इस तरह की गलती शायद ही करे। 

 न दोस्ती करूं न बैर 

 न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर यह बात नगर आयुक्त संजय चौहान पर लागू है। ऐसा इसलिए कहा कि पिछले दो नगर आयुक्त व महापौर के बीच खटपट रहती थी। अब जो साहब हैं, वो सबको साथ लेकर चलते हैं। महापौर प्रथम नागरिक हैं, तो बात माननी पड़ेगी। अब बात करते हैं पहले दो नगर आयुक्त की। पांच साल पहले नगर आयुक्त पद पर संजय सिंह की तैनाती हुई थी। महापौर से उनकी पटती नहीं थी, महापौर कहते थे पूरब में चलो, वे पश्चिम दिशा में चलते थे। खटपट का कारण था कि वह सपा सरकार में रामपुर के एक मंत्री के खास थे। खैर उनका स्थानांतरण हो गया। इनके बाद नगर आयुक्त बनकर आए अवनीश कुमार शर्मा। उन्होंने तो कुर्सी पर बैठते ही बोल दिया था कि न खाऊंगा न खाने दूंगा। अब इस गोलमोल बात को समझने वाले समझ गए। चलो रात गई बात गई। 

 जनता पालन करे हम नहीं

सुनो सुनो सुनो। गीला व सूखा कूड़ा घर में ही अलग-अलग कूड़ेदान में रखें। कूड़ेवाला आएगा तो उसे अलग-अलग कूड़ा मिलेगा। बात तो सही है, स्वच्छता का पाठ पढ़ाना भी चाहिए और जनता को पालन भी करना चाहिए लेकिन, हमने कितना पालन किया। चार महीने पहले ग्वालियर की कंपनी से घर-घर कूड़ा उठाने के लिए करार किया था। चार महीने हो गए, कागजी कार्रवाई करके घर जाकर बैठ गई कंपनी, अब देते रहिए नोटिस। घर-घर से कूड़ा तो उठा नहीं। हां, रैंकिंग तो बढ़ जाएगी। क्योंकि सवाल भी करने वाले हम हैं और मोबाइल पर जनता का नंबर रजिस्टर्ड करके जवाब देने वाले भी हम हैं। 


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