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डरावना और भयभीत करने वाला था इमरजेंसी का समय Moradabad News

आपातकाल का समय डरावना और भयभीत करने वाला था। जबरन लगान की वसूली होती थी। नसबंदी का लक्ष्य भी दे रखा था। लेखपाल और कर्मचारी आते थे बाजार से लोगों को पकड़-पकड़ कर ले जाते थे और नसबं

By Narendra KumarEdited By: Published: Mon, 24 Jun 2019 07:13 AM (IST)Updated: Mon, 24 Jun 2019 07:13 AM (IST)
डरावना और भयभीत करने वाला था इमरजेंसी का समय Moradabad News
डरावना और भयभीत करने वाला था इमरजेंसी का समय Moradabad News

मुरादाबाद (प्रेमपाल सिंह) । आपातकाल का समय डरावना और भयभीत करने वाला था। जबरन लगान की वसूली होती थी। नसबंदी का लक्ष्य भी दे रखा था। लेखपाल और कर्मचारी आते थे, बाजार से लोगों को पकड़-पकड़ कर ले जाते थे और नसबंदी करते थे। उस दौर में अच्छे-अच्छों को जेल जाना पड़ा था। उत्पीडऩ और अत्याचार की हद हो गई थी। जेल में भी शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गईं, जिसे याद करके आज भी मुरादाबाद के सोमदेव नागपाल सिहर उठते हैं। उत्पीडऩ और अत्याचार को यादकर उनकी आंखें भर आती हैं। वह बताते हैं कि आपातकाल के समय जितने भी नेता थे, उनको निरअपराध जेल भेज दिया गया था। लाठियों से मार-मारकर जेल में बंद कर दिया गया। वह चार माह जेल में रहे। इस दौरान परिवार भूखा रहा। इमरजेंसी के हालात थे तो आवाज उठाने पर मां-बाप ने परिवार को घर से बाहर निकाल दिया था। बच्चे किराए पर रहे और उधार का राशन लिया। जेल से रिहा होने के बाद पत्नी के जेवर बेचकर साइकिल खरीदी और घर में अगरबत्ती बनाने का काम शुरू किया। साइकिल से हल्द्वानी और काशीपुर तक जाकर अगरबत्ती बेचकर घर चलाना पड़ा। आपातकाल के हालात बताते हुए बोले, मैं 25 जून 1975 को फिरोजाबाद में था। उस दौरान तो न्यायपालिका को कुंठित कर दिया गया। समाचार पत्र प्रकाशित नहीं हुए। संपादकीय तक नहीं छापा था। रातों-रात अपने घर नवाबपुरा पहुंचे। तब उनकी उम्र करीब 30 वर्ष रही होगी। मुरादाबाद में इमरजेंसी का विरोध करने वाले रातों-रात एकजुट हो गए। लोग पत्रक बांटते थे। दीवारों पर पत्रक लगाते रहे। जो पकड़ा जाता था, उसको जेल भेज दिया जाता था। उस दौर को याद करते हुए कहते हैं कि लक्ष्मण प्रसाद, हंसराज चोपड़ा समेत दर्जनों लोगों को जेल भेज दिया गया। आखिरकार हरेक को जेल भेजना कब तक सहन करते तो इसका विरोध करने का निर्णय लिया। उस वक्त तो हर घर में एलआइयू, सीआइडी के लोग जबरन घुस आते थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोगों ने सत्याग्रह कर रखा था।

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आजादी के बाद दोबारा गुलामी सहन नहीं होती थी 

सोमदत्त कहते हैं कि आजादी के बाद दोबारा गुलामी सहन नहीं होती थी। इसलिए इसका विरोध करने का निर्णय लिया। पत्नी आशा रानी ने हमको विरोध करने के लिए घर से विदा किया। गले में माला थी। बाहर निकले तो सुभाष और अनिल भी साथ आ गए। आसपास के लोगों ने माला गले में डाल दी। उस वक्त आवाज उठाना बड़ी बात होती थी।

 भारत माता की जय-जयकार लगाई

सोमदत्त ने बताया कि बाजार में भारत माता की जय जयकार करते समय पुलिस आई और हमको गिरफ्तार करके ले गई। पूछा कि किसके कहने पर किया। हमने बोल दिया कि शाही इमाम के कहने पर। उसके बाद हमें कोतवाली ले जाया गया। वहां हवालात में अन्य सत्याग्रहियों की बेरहमी से पिटाई की जा रही थी। उस वक्त तो आवाज उठाने वालों पर डंडे चलते थे। वहां से कोर्ट ले जाया गया। हम गाड़ी में नहीं बैठे, पैदल ही पहुंचे। सुनवाई नहीं हुई तो भारत माता जिंदाबाद के नारे लगाए। अंदर से आदेश आ गया। हमसे पूछा कि आपने सरकार के खिलाफ बगावत की है। हमने कहा कि नहीं भारत माता की जय जयकार की है।

 एक माह ज्यादा काटी जेल

सोमदत्त ने बताया कि तीन माह की सजा हुई थी, लेकिन चार माह तक जेल में रहना पड़ा। जबकि कोर्ट ने तीन माह की सजा मुकर्रर की थी। 19 माह तक उत्पीडऩ हुआ। हमारा नाम डिग्री होल्डर रहा। जनसंघ की सरकार आई तो हमें सम्मान मिला। 

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