मुरादाबाद में मंदी का असर, टूटने लगी पीतल उद्योग की कमर Moradabad news
पीतल उद्योग की रीढ़ कहे जाने वाले दस्तकारों के पास काम नहीं है। जो खुद का काम कर रहे हैं उनके पास से खरीदार घट गए हैं।
मुरादाबाद। पीतल उद्योग के कारण पीतल नगरी का नाम पाने वाले जनपद मुरादाबाद पर मंदी की मार का काफी असर दिखने लगा है। पीतल उद्योग की रीढ़ कहे जाने वाले दस्तकारों के पास काम नहीं है। जो खुद का काम कर रहे हैं, उनके पास से खरीदार घट गए हैं। ऑर्डर दस फीसद रह गए हैं, यही कारण है कि वे अब दस्तकारी छोड़ कर रोजगार के दूसरे विकल्प तलाशने में जुट गए हैं।
दस्तकारों का कहना है कि उनके काम पर सबसे ज्यादा असर जीएसटी का पड़ रहा है। कच्चा माल महंगा हो गया है, जिससे उत्पाद के दाम भी बढ़ गए हैं और खरीदार माल लेने से हिचक रहा है। दस्तकारों की इन्हीं समस्याओं को लेकर दैनिक जागरण कार्यालय में परिचर्चा का आयोजन किया गया। इसमें दस्तकारों ने सरकारी नीतियों को इन सबके लिए जिम्मेदार ठहराया। दस्तकारों का कहना था कि जल्द ही ठोस कदम न उठाए गए तो आने वाले सालों में यह काम विलुप्त सा हो जाएगा और इस नगरी के आगे सिर्फ नाम के लिए ही पीतल लगाया जाएगा।
क्या कहते हैं दस्तकार और क्या हैं इनकी समस्याएं
सरकार का कहना है कि दस्तकार जीएसटी के दायरे से बाहर हैं। इसके बावजूद सामान चेक होने पर हमसे जीएसटी का बिल मांगा जाता है। जिन दस्तकारों ने रजिस्ट्रेशन करा भी लिया है तो उनके उत्पाद महंगे हो गए हैं, जिससे खरीदारी पर असर पड़ रहा है।
- दिलशाद हुसैन, राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता दस्तकार
नोटबंदी और जीएसटी ने अर्थव्यवस्था को हिलाकर रख दिया है, आज हमारे पास दस फीसद ऑर्डर भी नहीं बचे हैं। ऑनलाइन मार्केट में चीन हमसे सस्ता सामान बेच रहा है, जबकि हमारा उत्पाद महंगा है। अगर यह सब सही न हुआ तो जल्द ही स्थिति भयावह हो जाएगी।
-गानिम मियां, दस्तकार
अगर सिर्फ घरेलू निर्यात की बात करें तो वह भी घट गया है। यहां से पहले हम दूसरे प्रदेशों में उत्पाद बेचने जाते थे लेकिन, अब वही माल पकड़ लिया जाता है। जबकि हम जीएसटी के दायरे में भी नहीं आते। दूसरी ओर काम भी कम हो गया है। एक ओर जीएसटी दूसरी और मंदी की मार ने दस्तकारों को बेहाल कर दिया है।
- नासिर हुसैन साबरी, दस्तकार
फर्म में नौकरी मांगने जाओ तो वे कहते हैं कि आर्डर ही नहीं हैं तो काम कैसा। हमने खुद के लिए लोन का आवेदन किया था, उसका भी नहीं पता चला। दस्तकारों से आए दिन काम छीना जा रहा है। हमें अब मजदूरी मिलना तक मुश्किल हो गया है।
- इश्तियाक, दस्तकार
सरकार कम से कम हमें एक ऐसा सार्टिफिकेट दे दे जिससे हम बता सकें कि हम जीएसटी के दायरे में आते हैं कि नहीं। सामान एक जगह से दूसरी जगह तक ले जाने में इतनी जांच होती है कि दस्तकर इससे डरा हुआ है और वह काम छोड़ रहा है।
- दिलशाद हुसैन, दस्तकार
हम दस्तकारों को सहूलियतें सिर्फ कागजों पर दी गई हैं। हकीकत में ऐसा कुछ नहीं है, हम जो खुद का सामान बनाते हैं वह भी कोई नहीं खरीद रहा। पहले हमारे पास ऑर्डर रहते थे लेकिन, अब ऑर्डर भी नहीं हैं, पेट भरने के लिए कई लोग दूसरा काम करने लगे हैं।
- जहूरउद्दीन, दस्तकार
हम लोगों के पास एक से दो महीने पहले इतना काम था कि ओवर टाइम तक करना पड़ता था। हम छह के छह दिन काम करते थे, हमारे पास आर्डर थे। अब सिर्फ सप्ताह में तीन दिन काम कर रहे हैं। काम मांगने जाना पड़ रहा है लेकिन, निर्यातकों के पास भी काम नहीं है।
- जावेद आलम, दस्तकार
कोई भी उत्पाद ढलाई, छिलाई, पॉलिश और नक्काशी के बाद तैयार होता है। अब इनमें से कई कामगारों के पास काम नहीं है, उन्हें दूसरे काम तलाशने पड़ रहे हैं। छिलाई करने वालों का तो बुरा हाल है, कई लोग बेरोजगार हो चुके हैं।
- मुहम्मद नसीम, दस्तकार