गोली लगने के बाद भी छुड़ा दिए थे दुश्मनों के छक्के
मुरादाबाद: कारगिल युद्ध को 19 साल बीत चुके हैं। देश के वीर सपूतों ने इस युद्ध में अपने प्राणों क
मुरादाबाद: कारगिल युद्ध को 19 साल बीत चुके हैं। देश के वीर सपूतों ने इस युद्ध में अपने प्राणों की बाजी लगाकर कारगिल युद्ध में विजय हासिल की थी। किसी मा का लाल तो किसी का सुहाग शहीद हुआ था। जाबाजों ने सीने पर गोली खाते हुए पाकिस्तानी सेना को पीछे खदेड़ा। कारगिल की जीत भारतीय सेना के अदम्य साहस और ताकत का उदाहरण है। अपने शहर के नवीन नगर निवासी सीपी सक्सेना एडवोकेट के पुत्र अखिलेश सक्सेना ने भी अपने कौशल से दुश्मनों को धूल चटाई थी। कैप्टन अखिलेश सक्सेना ने कारगिल युद्ध में आर्टीलरी विंग की तीन महत्वपूर्ण टुकडि़यों का नेतृत्व किया था। द्रास क्षेत्र में पाकिस्तानी घुसपैठिए ऐसे स्थान पर थे जहा से भारतीय फौजी सीधे उनकी बंदूकों के निशाने पर थे। इसके चलते भारतीय सेना उस क्षेत्र पर कब्जा नहीं कर पा रही थी। भारतीय सेना के दो हमले विफल हो चुके थे। ऐसे समय में कैप्टन अखिलेश सक्सेना को कारगिल क्षेत्र में दुश्मनों से सीधा मोर्चा लेने के लिए कमाड सौंपी गई थी। कमाड संभालने के बाद उन्होंने वह कर दिखाया जिसकी उनसे उम्मीद थी। जब तक जीत हासिल नहीं हुई वह अपनी टुकड़ी के साथ तब तक बराबर लड़ते रहे। भारत सरकार ने उनकी वीरता पर उन्हें गैलेंट्री अवार्ड से सम्मानित किया था।
अखिलेश दो जुलाई 1999 को देर रात लगभग तीन बजे जब तोलोलिंग चौकी को पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त कराकर आगे कूच कर करने के लिए सैनिकों को निर्देशित कर रहे थे। उसी वक्त दुश्मनों की तीन गोलियों से वह घायल हो गए थे। हाथों में गोलिया लगने के बावजूद भी हिम्मत नहीं हारी और खून से लथपथ अखिलेश ने दुश्मनों का डटकर सामना किया। दुश्मन ऊंची चोटी पर होने के कारण 20 गुना ताकतवर थे और पहाड़ियों में छिपे होने के कारण लोकेशन की जानकारी नहीं मिल पा रही थी। आगे बढ़ने से रास्ते में बिछी लैंडमाइन, पत्थर, गोली और बम से हमला हो रहा था। वह बुरी तरह से जख्मी हो गए। तत्पश्चात उन्हें विशेष विमान से सैनिक अस्पताल लाया गया, जहा उनका इलाज लगभग एक साल तक चला। उप्र के राज्यपाल द्वारा राज भवन में सम्मानित किया। मुरादाबाद के संगठनों ने भी अखिलेश की बहादुरी पर उन्हें सम्मानित किया।
इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ देश की सेवा में गए
कैप्टन अखिलेश सक्सेना का चयन एमएनआर रुड़की व दिल्ली इंजीनियरिंग कालेज में हो गया था और उन्होंने फीस भी जमा कर दी थी। एनडीए की परीक्षा भी वह दे चुके थे और प्रथम प्रयास में सफलता हासिल की थी। साक्षात्कार में सफल होने पर उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ दी। कैप्टन अखिलेश सक्सेना के पिता सीपी सक्सेना एडवोकेट कहते हैं कि युद्ध भूमि पर बेटे की बहादुरी पर गर्व है। कहते हैं कि देश भर से बहनें फौजियों के राखिया भेजती हैं, जिससे इन वीर सपूतों का मनोबल दोगुना हो जाता है।