देववाणी संस्कृत भाषा से युवाओं का मोह हो रहा भंग
मुरादाबाद (अनुज मिश्र): संस्कृत भाषाओं की जननी और देववाणी कही जाती है। यह पौराणिक भाषा है।
मुरादाबाद (अनुज मिश्र): संस्कृत भाषाओं की जननी और देववाणी कही जाती है। यह पौराणिक भाषा है। हिंदू धर्म ग्रंथों का आधार भी संस्कृत ही है, लेकिन वर्तमान में यह हाशिए पर है। स्नातक और परास्नातक में चल रही प्रवेश प्रक्रिया से यह बात सामने आई है। स्नातक और परास्नातक में प्रवेश अंतिम चरणों में है। एमपीजे रुहेलखंड विश्वविद्यायल से संबद्ध मुरादाबाद के पाच कॉलेजों में तीन में संस्कृत की स्नातक और परास्नातक में 50 से अधिक सीटें है। एक कॉलेज में केवल स्नातक में ही संस्कृत विषय है। लेकिन, प्रवेश लेने वाले अभ्यर्थियों की संख्या दहाई के भीतर ही सीमित हो गई है। बाकी एक में विषय ही नहीं है।
प्रोफेशनल कोर्सेज की तरफ बढ़ रहा रुझान
कॉलेज से जुड़े जानकारों ने बताया कि छात्र-छात्राओं का रुझान प्रोफेशनल कोर्सेज की तरफ बढ़ रहा है। जिन विषयों में रोजगार की संभावना अधिक है वह उनकी पहली पसंद बन रहे हैं। हालाकि, संस्कृत भाषा से पढ़ाई करने के बाद भी रोजगार की असीम संभावनाएं है। यह एक वैज्ञानिक भाषा है। अन्य विषयों की अपेक्षा इसमें मेहनत अधिक है। ऐसे में अभ्यर्थी इससे दूरी बना रहे हैं। कॉलेजों में संस्कृत की सीट और प्रवेश (स्नातक)
कॉलेज-सीट-प्रवेश
हिंदू कॉलेज-60-12
केजीके कॉलेज-80-08
गोकुलदास कॉलेज-80-12
दयानंद कॉलेज-80-05 परास्नातक
कॉलेज-सीट-प्रवेश
हिंदू कॉलेज-80-04
केजीके कॉलेज-80-05
गोकुलदास कॉलेज-60-03
नोट: प्रवेश प्रक्रिया अभी चल रही है। दो साल पहले कुछ और थे हालात :प्राचार्य
दो साल पहले संस्कृत विषय में कुछ ही सीटें खाली रहती थीं। इधर दो साल से संस्कृत में छात्र-छात्राओं का रुझान घटा है। यह चिंताजनक है।
-डॉ. आरके बंसल, प्राचार्य, हिंदू कॉलेज संस्कृत सारे संसार को शिक्षित करने वाली भाषा है। शिखर तक पहुंचने के लिए यह भाषा सशक्त माध्यम है। रोजगारपरक विषयों की ओर छात्र-छात्राएं भाग रहे हैं। जबकि संस्कृत भाषा से शिक्षा ग्रहण कर रोजगार के तमाम अवसर है।
- एसडी द्विवेदी, प्राचार्य, केजीके कॉलेज सम्भल में भी संस्कृत शिक्षा का हाल बुरा
सम्भल जिले में कुल 38 डिग्री कालेज हैं। निजी कालेज में सम्भल के एमजीएम में संस्कृत स्नातकमें है लेकिन परास्नातक में नहीं। प्राचार्य डॉ. आबिद हुसैन बताते हैं कि इसमें भी केवल छह प्रवेश हुए। रोशन सिंह स्मारक महाविद्यालय में स्नातक में 80 सीटें हैं। प्रवेश केवल आठ ने लिया है। यही स्थिति रजपुरा, धनारी, गवा के कालेजों की भी है। सम्भल और गुन्नौर तहसील में स्थापित 28 राजकीय, निजी, सहायता प्राप्त कालेजों में संस्कृत विषय केवल स्नातक में है। इन जगहों पर करीब 800 सीटें संस्कृत की है। इसमें से प्रवेश आठ से 10 फीसद ही हो सका है। अमरोहा में भी खाली हैं सीटें
अमरोहा में कुल 53 डिग्री कालेज हैं। इनमें से अधिकाश में संस्कृत विषय है ही नहीं। जेएस हिन्दू पीजी कालेज में तीन वर्ष पूर्व जहा 150 बच्चे संस्कृत पढ़ रहे थे वहीं इस वर्ष महज 30 दाखिले हुए हैं। गजरौला के आनंद डिग्री कालेज में 50 की 50 सीटें खाली हैं। किसी ने आवेदन ही नहीं किया। हसनपुर के एचडीएसडी दूल्हेपुर अहीर महाविद्यालय में 80 में से साठ और एसएल डिग्री कालेज हाकमपुर में साठ में से 50 सीटें खाली पड़ी हैं। जेएस हिन्दू डिग्री कालेज की संस्कृत विभाग की एचओडी डॉ. सीमा शर्मा ने बताया कि दुनिया भर के देशों में जहा संस्कृत का प्रसार हो रहा है वहीं अपने देश में यह हाशिए पर आती जा रही है। रामपुर के प्राइवेट कालेजों में विषय ही नहीं
रामपुर के प्राइवेट कालेजों में संस्कृत विषय ही नहीं है। राजकीय रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय में संस्कृत पढ़ाई जा रही है, लेकिन यहा भी तमाम सीटें खाली हैं। बीए में संस्कृत की 60 सीट हैं, जिनमें अभी तक आठ छात्रों ने ही प्रवेश लिया है। संस्कृत की विभागाध्यक्ष डा. कुसुमलता बताती हैं कि पिछले साल केवल 11 छात्रों ने दाखिला लिया था, जबकि उससे पहले 41 छात्र थे। इसका कारण पिछले साल से दाखिले की प्रक्रिया का आनलाइन होना है। पहले मैनुअल प्रक्रिया थी तो छात्र को मोटिवेट किया जाता था। अब ऐसा नहीं हो पा रहा है। दूसरे समाज में परिवर्तन आ रहा है और बच्चे संस्कत पढ़ने से कतरा रहे हैं।