लेवी पर चावल खरीदने की व्यवस्था कारोबार को देगी संजीवनीMoradabad News
रामपुर में धान की बड़े पैमाने पर खेती होती है। तराई क्षेत्र होने के कारण धान की पैदावार अच्छी है।
मुस्लेमीन, रामपुर : रामपुर में धान की बड़े पैमाने पर खेती होती है। तराई क्षेत्र होने के कारण धान की पैदावार अच्छी है। इस कारण यहां किसान धान की दो-दो फसलें उगाते हैं। धान का उत्पादन अच्छा होने के कारण यहां राइस मिलें भी बड़ी संख्या में हैं। जिले में करीब डेढ़ सौ राइस मिलें लगी हैं लेकिन, पिछले पांच साल से राइस मिलों के सामने कई समस्याएं खड़ी हो गई हैं, जिस कारण चावल उद्योग आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। चावल उद्योग के मंदी के दौर से गुजरने के दो मुख्य कारण हैं। एक तो केंद्र सरकार ने लेवी पर चावल खरीदना बंद कर दिया है। पहले राइस मिलें जो चावल तैयार करती थीं, उसे सरकार लेवी पर खरीदती थी लेकिन, अब ऐसा नहीं हो पा रहा है। दूसरे प्रदेश सरकार ने राइस मिलों को मोटे धान की खरीद पर कमीशन देना बंद कर दिया है। पहले सरकार ढाई प्रतिशत कमीशन देती थी। राइस मिल स्वामियों का कहना है कि सरकार मदद करे तभी चावल उद्योग चल पाएगा, वर्ना यह कारोबार चौपट हो जाएगा। केंद्र सरकार को फिर से लेवी पर चावल खरीदने की व्यवस्था लागू करनी चाहिए।
हरियाणा और पंजाब जैसी हो व्यवस्था
बिलासपुर राइस मिलर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष अमृत पाल ङ्क्षसह कहते हैं कि बिलासपुर में 18 राइस मिलें थीं। इनमें से सात बंद हो गई हैं। सरकार ने धान का मूल्य तो बढ़ा दिया, लेकिन मिलों से चावल नहीं खरीद रही है। कामन वन धान की कीमत 1835 रुपये प्रति ङ्क्षक्वटल है। मिलें अगर इस रेट पर धान खरीदती हैं तो 2750 रुपये ङ्क्षक्वटल पर चावल तैयार होता है, जबकि मार्केट में इस चावल की बिक्री 2650 रुपये ङ्क्षक्वटल पर ही हो रही है। पहले सरकार राइस मिल से 60 प्रतिशत चावल लेवी पर खरीदती थी। लेकिन,अब ऐसा नहीं है। सरकार को लेवी पर चावल खरीदना चाहिए। ऐसा करने पर ही मिलें चल पाएंगी, वर्ना चावल उद्योग चौपट हो जाएगा। पंजाब और हरियाणा में सरकार धान खरीद कर मिलों को देती है और मिलें चावल तैयार कर सरकार को देती हैं। वहां की सरकारें चावल खरीद का कमीशन और धान कूटने की फीस मिलों को देती हैं, जबकि उत्तर प्रदेश में समितियों से चावल खरीद कराई जा रही है और सरकार इन्हें ही कमीशन दे रही है।
धान की फसल में किसानों द्वारा कीटनाशक दवा का उपयोग किया जा रहा है, जबकि कई देशों ने ऐसा चावल खरीदने पर रोक लगा दी है। इस कारण चावल निर्यात भी प्रभावित हुआ है। बिलासपुर की मिलों से चावल का निर्यात भी होता रहा है, लेकिन अब बहुत कम निर्यात हो रहा है। रसायनिक दवाओं के इस्तेमाल के कारण निर्यात होने वाले चावल के सैंपल फेल हो जाते हैं। पहले उनकी राइस मिल एक सीजन में 35 हजार ङ्क्षक्वटल चावल तैयार करती थी। लेकिन अब 20 हजार ङ्क्षक्वटल भी तैयार नहीं हो पाएगा।
- अमृतपाल ङ्क्षसह गिल
जिले में 150 राइस मिलें हैं, जिनमें से दो दर्जन से ज्यादा बंद हैं जो मिलें चल रही हैं वे भी लगातार नहीं चल पा रही हैं।
- विपिन कुमार पप्पी रीजनल चेयरमैन, उत्तर प्रदेश राइस मिलर्स एसोसिएशन