गजब! दुनिया के फुटबॉल मैदानों में गूंजती है सम्भल की सीटी, विश्वास ना हो तो देखिए
सम्भल में सींग और हड्डियों से विभिन्न हस्तशिल्प उत्पाद तैयार किए जाते हैं। यहीं की सीटी यूरोपीय देशों के साथ फुटबाल खेलने वाले देशों में खूब गूंज रही है।
मुरादाबाद [राघवेंद्र शुक्ल] । सम्भल जिले में मृत जानवरों के सींग और हड्डियों से विभिन्न वस्तुएं तैयार की जाती हैं। इन्हीं में से एक है सीटी, जिसकी गूंज यूरोप तक में सुनी जा सकती है। जर्मनी सहित विश्व फुटबॉल से जुड़े अन्य यूरोपीय देशों में इसकी मांग बढ़ी है।
फुटबाल रेफरी व ट्रेनर करते हैं पसंद
फुटबॉल के मैदान में रेफरी से लेकर पालतू जानवरों के ट्रेनर तक इसे सभी ने पसंद किया है। चार बार फीफा विश्व कप जीत चुके जर्मनी में तमाम फुटबॉल मैदानों में इस समय सम्भल की सीटी ही गूंज रही है। ट्रेनिंग हो या खेल, यहां दोनों ही क्षेत्रों में हॉर्न मेड यानी सींग से निर्मित सीटी की मांग है। सम्भल के सरायतरीन इलाके में भैंस के सींग से बनाई जाने वाली सीटी खास है। इसकी आवाज दमदार है और मजबूती बेमिसाल।
प्रत्येक महीने यूरोप हैं १५ हजार सीटियां
हाल ही में जर्मनी से सीटी का आर्डर कानपुर की तीन कंपनियों को मिला तो उन्होंने इसे बनाने का जिम्मा यहां के कारीगरों को सौंपा है। हाल यह है कि हर माह 10 से 15 हजार सीटी कानपुर के जरिये जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों, खासकर फुटबॉल खेलने वाले देशों को भेजी जा रही है। हड्डी और सींग से बटन, चश्मा, सजावटी वस्तुएं आदि उत्पादों में नित नए डिजाइन के साथ विश्व में अपनी अलग पहचान बनाने वाले सम्भल के कारीगरों ने फिर एक शानदार प्रयोग किया है। जब उन्हें हॉर्न मेड सीटी का आर्डर मिला तो इसमें भी उन्होंने निपुणता दिखाई।
कठिन श्रम से तैयार होती है सीटी
शहर के सरायतरीन में सींग कारोबार से जुड़े मुहम्मद निशात और मुहम्मद आलम के यहां हर माह 15,000 सीटी का आर्डर आता है। उनके निजी कारखाने में कारीगर दिन रात मेहनत कर सीटी को नया लुक दे रहे हैं। इस काम में डेढ़ दर्जन से अधिक कारीगर जुटे हुए हैं। निशात बताते हैं कि सींग से सीटी बनाने में काफी मेहनत लगती है। पूरी प्रक्रिया में एक कारीगर के पास सीटी 17 से 18 बार आती है तब जाकर वह जब फाइनल स्टेज में आती है। सीटी की खुबसूरती देखते ही बनती है।
सीटी कई डिजाइन में बनती है
सबसे बड़ी सीटी 85 एमएम यानी 8.5 सेंटीमीटर की है जबकि 65 एमएम यानी 6.5 सेमी की सीटी सबसे छोटी होती है। दोनों सीटी के रेट भी अलग अलग हैं। बड़ी सीटी की कुल लागत 50 से 80 रुपये बैठती है, जबकि छोटी 40 से 60 रुपये। कानपुर की कंपनी के जरिये जर्मनी पहुंचते-पहुंचते दाम 200 से 800 रुपये तक हो जाता है। सीटी बनाने के लिए पहले सींग को सुखाया जाता है। फिर इसके अलग-अलग टुकड़े काटे जाते हैं। ठोस भाग अलग किया जाता है और खोखला अलग। ठोस भाग से एक से दो जबकि खोखले से तीन से पांच सीटी तैयार होती हैं।
इंफेक्शन फ्री बनाई जाती है सीटी
सींग को रासायनिक क्रियाओं के बाद ऐसा बनाया जाता है कि मुंह में कोई इंफेक्शन न हो। छोटे टुकड़े कर इसे खराद मशीन पर डिजाइन दिया जाता है। डिजाइनिंग के बाद इसे तराशने, सुराख बनाने का काम होता है। अंत में पालिश आदि का काम होता है। यूरोपीय देशों में मांग बरकरार रहने से सम्भल के कारीगरों में उत्साह बढ़ा है। इनके अन्य उत्पादों को भी सीटी के जरिये पहचान और नया बाजार मिलने की उम्मीद बन रही है।