Delhi Fire : बूढ़े कंधों पर उठा जवान बेटों का जनाजा, हर आंख रही नम Moradabad News
देर शाम करीब साढ़े सात बजे समीर का शव पहुंचा। इसके बाद तीनों शव दफन करने की तैयारी शुरू हो गई। एसडीएम कांठ प्रेरणा सिंह व छजलैट थाना प्रभारी प्रिंस शर्मा समेत दर्जनों मौजूद रहे।
मुरादाबाद, जेएनएन। छजलैट के गांव कुरी रवाना में सोमवार को दिल्ली अग्निकांड में मृत तीन युवकों के शव आए तो हरेक की आंखें नम हो गईं। चीख व चीत्कार के बीच पूरा गांव गम में डूब गया। जवान बेटों को कंधा देने वाले पिता की आंखों के आंसू सूख गए।
दिल्ली के फिल्मिस्तान इलाके में रविवार तड़के लगी भयंकर आग में मुरादाबाद के तीन युवकों की भी मौत हुई। धुंए के गुबार में फंसे तीनों युवकों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया था। तीनों मृतक छजलैट थाना क्षेत्र के कुरी रवाना गांव के रहने वाले थे। इनमें से इमरान व इकराम पुत्रगण जमील अहमद सगे भाई थे, जबकि तीसरा समीर पुत्र स्व. शमीम अहमद उनका पड़ोसी था। पोस्टमार्टम के बाद तीनों शव दिल्ली पुलिस ने परिजनों के सुपुर्द किए । सुबह से ही कुरी रवाना गांव में आसपास के गांवों की भीड़ जमा होने लगी। सभी तीनों बेटों को अंतिम विदाई देना चाहते थे। खुशहालपुर, संजरपुर, पूरी नंगला, कूडा बैरमपुर, चंगेरी भीकनपुर, सदरपुर व छजलैट के सैकड़ों लोग एकत्रित थे। सगे भाइयों की कब्र आसपास खोदी गई। उनके ठीक बगल में समीर का कब्र खोदी गई। शाम करीब सवा चार बजे इमरान व इकराम के शव एक साथ गांव पहुंचे। जलील अहमद के दरवाजे पर सैकड़ों लोग जमा हो गए। महिलाओं की भीड़ छतों पर चढ़ गई। इमरान व इकराम के परिजन व करीबी दहाड़ मारकर रोने लगे। घर की महिलाओं को संभालना मुश्किल हो गया। गांव की गलियों से उठी चीख व चीत्कार ने सभी की आंखें नम कर दीं।
एंबुलेंस चालक से मारपीट
सगे भाइयों का शव लेकर दिल्ली से कुरी रवाना गांव पहुंचे एंबुलेंस चालक की कुछ युवकों ने पिटाई कर दी। ग्रामीणों की सूचना पर छजलैट पुलिस जब तक मौके पर पहुंची, तब तक चालक एंबुलेंस लेकर रवाना हो चुका था। हमलावर की तलाश पुलिस ने शुरू कर दी। ग्रामीणों की निशानदेही पर हमलावर युवक की बाइक पुलिस ने कब्जे में ले लिया। एंबुलेंस चालक को बचाने के दौरान गांव के ही एक युवक को भी हमलावरों ने पीटा। इसको लेकर देर तक गांव में तनाव का माहौल रहा।
बूढ़े कंधों पर जवान दो बेटों का जनाजा
कुरी रवाना गांव के रहने वाले जमील अहमद को विरासत में गुरबत की जिंदगी मिली थी। सिर पर छत तो दूर दो वक्त की रोटी के लिए उन्हें हर रोज जिंदगी की जंग से जूझना पड़ता था। परिजनों की परवरिश के लिए मजदूरी ही एक मात्र विकल्प रहा। वह पांच बेटों के पिता बने। इमरान बड़ा पुत्र था। पिता व परिजनों को गुरबत से निजात दिलाने की कमान इमरान ने अपने हाथ में ली। वह छोटे भाई व दोस्त सरीखे इकराम को साथ लेकर दिल्ली निकल गया। वहां दोनों भाइयों ने अथक मेहनत की। पिता का सपना साकार हुआ। पक्की छत परिवार को मिली। जमील अहमद आज तीन मंजिला मकान के मालिक हैं। अफसोस कि जीवन की जंग में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले वह होनहार बेटे असमय दर्दनाक हादसे का शिकार हो गए, जिनका सपना परिवार को आकाश की उंचाई तक ले जाने का था। बेटों का जनाजा कंधे पर ढोते ही जमील अहमद फफक पड़े।
पलकों पर ही ठहर गया आंसू का सैलाब
दोनों बेटों को सुपुर्दे खाक करने वाले जमील अहमद देर तक रो भी नहीं सके। आंख में उतरे आंसुओं के सैलाब को पलकों तक समेट कर रखने की असफल कोशिश करते रहे। जमील अहमद के बड़े पुत्र इमरान की दो पत्नियां हैं। पहली पत्नी मरियम है। वह दिल्ली मेंं रहती है। दस वर्षीय पुत्र अली, मरियम के साथ रहता है। दूसरी पत्नी शहाना की तीन बेटियां हैं। वह गांव में रहती है। तीनों बेटियां आयशा, आफिया व अरफिया अभी छोटी हैं। इमरान के छोटे भाई इकराम के भी दो बच्चे हैं। पत्नी शबाना खातून व बेटी जुराना व पुत्र माज का रो रो कर बुरा हाल है। इन सभी के परवरिश का भार अब जमील अहमद के बूढ़े कंधे पर आ गया है। दर्दनाक हादसे ने जमील अहमद व उनकी पत्नी मुनिजा खातून के अलावा छोटे बेटों जीशान, रिजवान व गुफरान समेत पूरे कुनबे को झकझोर दिया है। गुफरान फिलहाल अविवाहित है।
मौत ने रोकी समीर की राह
दिल्ली अग्निकांड के तीसरे शिकार समीर खान पुत्र स्वर्गीय शमीम अहमद की राह रोक कर शनिवार को मौत खड़ी हो गई। उसके चचेरे भाई वहाजुद्दीन के मुताबिक समीर को शनिवार के लिए गांव आना था। फुफेरे भाई मानू की शादी में शामिल होना था। समीर संग काम करने वाले शादाब ने शनिवार को साथ में गांव चलने को कहा। इस पर समीर ने कहा कि एक माह पहले ही तो वह गांव से आया है। उसने गांव आने से इन्कार कर दिया। तब न तो समीर को पता था और न ही शादाब को खबर रही कि काल ने कुछ और ही कुचक्र रचा है।
चाचू कब आएंगे पापा
समीर चार भाइयों में सबसे छोटा था। परिजन उसके विवाह का तानाबाना बुन रहे थे। बड़े भाई नसीम ने बताया मां खतीजा खातून, छोटे भाई फहीम व फैजान समीर का शव लेने दिल्ली गए हैं। मां समीर की शादी करने का सपना संजोये थी। अरमान पूरे होने से पहले सपने ढेर हो गए। इस बीच नसीम का छह वर्षीय पुत्र उनके पास पहुंचा। पूछने लगा चाचू कब आएंगे। पुत्र के इस सवाल से नसीम अवाक रह गया। वह पुत्र को बता पाने में असमर्थ रहा कि समीर जिंदा घर नहीं लौटेगा।
मां से मकान ठीक कराने का वादा करके आया था दिल्ली
घर चलाने में अम्मी को कोई परेशानी न हो, इसलिए मेरा बेटा दिल्ली आया था। मुझे नहीं पता था, यहां ऐसा हो जाएगा। जिस हाल में मेरा बेटा है, ऐसा तो न था मेरा लाल। हमेशा हंसता था, खुलकर बात करता था, आज खामोश क्यों हो गया है। मेरे घर को किसकी नजर लग गई है।
मुरादाबाद के गांव कुरी रवाना की रहने वाली खतीजा का रो-रोकर बुरा हाल था। क्योंकि उनके घर के एकमात्र कमाने वाले 22 वर्षीय बेटे समीर ने उनका साथ हमेशा के लिए छोड़ दिया। फिल्मिस्तान अनाज मंडी में हुए अग्निकांड में समीर की मौत हो गई। रुंधे हुए गले से खतीजा ने बताया समीर बहुत पढ़ा-लिखा नहीं था। लेकिन, काफी समझदार था। घर की ङ्क्षचता थी, परिवार की ङ्क्षचता थी। इसलिए मुरादाबाद छोड़कर दिल्ली आया था। वह घर पर उम्मीद देकर निकला कि आएगा तो अपनी मेहनत के पैसे लेकर आएगा। घर ठीक कराएगा, कुछ नया सामान लेकर आएगा। उसने दिलासा दिया था कि अम्मी सब ठीक हो जाएगा, लेकिन जो कहा वैसा तो नहीं हुआ। ऐसा तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरा बेटा, जो मेरे आंचल में पला है, उसका शव मेरे हाथों में आएगा। जिन हाथों से कभी उसे खाना खिलाया था, आज उन्हीं हाथों में उसका जनाजा आ गया है। बेटे को खोने के गम के साथ ही खतीजा को अपने घर की भी ङ्क्षचता हो रही है कि अब परिवार का क्या होगा।