बोर्ड परीक्षा में मिले थे कम अंक, फिर भी बने एसपी
मुरादाबाद। दो-चार कदम चलने को चलना नहीं कहते, मंजिल तक जो न पहुंचे उसे रास्ता नहीं कहते। इन पंक्तियो
मुरादाबाद। दो-चार कदम चलने को चलना नहीं कहते, मंजिल तक जो न पहुंचे उसे रास्ता नहीं कहते। इन पंक्तियों के मायने को सही में साबित कर दिखाया है रामपुर के पुलिस अधीक्षक डा. विपिन ताडा ने। उन्होंने बोर्ड परीक्षाओं में भले ही कम अंक हासिल किए, लेकिन अपनी मंजिल पाने के लिए पूरी लगन से प्रयासरत रहे और कामयाबी भी हासिल की। पहले एमबीबीएस में सलेक्शन हुआ और फिर आईपीएस बन गए।
ज्यादा अंक लाने का बनाते हैं दबाव
आजकल बोर्ड परीक्षाओं में ज्यादा अंक हासिल करने के लिए अभिभावक अपने बच्चों पर तमाम दवाब बनाते हैं, जिस सब्जेक्ट में उनकी रुचि नहीं, उसे जबरन पढ़वाते हैं। ऐसा करने से बच्चे की रुचि नहीं बदल जाती, बल्कि दबाव में आने के कारण वह अपने लक्ष्य से भटक जाता है। बच्चे को उसकी रुचि के अनुसार ही आगे बढऩे का मौका मिले तो बेहतर होगा। जरूरी नहीं है कि परीक्षा में अधिक अंक लाकर ही बच्चा जीवन में सफल हो सके। परीक्षा में अधिक अंक से ज्यादा जरूरी है ज्ञान। इसकी मिसाल हैं पुलिस अधीक्षक डा. विपिन ताडा। वह बताते हैं कि हमने बेसिक शिक्षा छोटे से स्कूल में हासिल की। रोज साइकिल से स्कूल जाते थे। सातवीं कक्षा में अच्छे नंबर आए तो परिजनों ने आठवीं और नवमीं क्लास के बजाय हाईस्कूल का एग्जाम दिलवा दिया, जिसमें उनके मात्र 56 प्रतिशत अंक आए। इसके बाद इंटर में 62 फीसदी अंक प्राप्त हुए। उन्होंने डॉक्टर बनने का अपना लक्ष्य पहले से ही निर्धारित कर रखा था। इसके लिए उन्होंने पूरी लगन से पढ़ाई की। उन्होंने इंटर के बाद एक साल कोड्क्षचग की। पहले प्रयास में 2002 में एमबीबीएस के लिए सलेक्ट हो गए। इसके बाद राजस्थान के एक गाव में सरकारी अस्पताल में चिकित्साधिकारी बन गए। वहा आठ महीने तक रहे। तब उन्हें लगा कि डॉक्टर बनकर चंद मरीजों की सेवा की जा सकती है, लेकिन सिविल सेवा में रहकर बहुत से लोगों की सेवा का मौका मिलता है। उन्होंने इसी नजरिये से सिविल सेवा की तैयारी शुरू कर दी। 2011 में भारतीय पुलिस सेवा के लिए उनका सलेक्शन हो गया और वह आज रामपुर में पुलिस अधीक्षक हैं। उनका कहना है कि अभिभावकों को बोर्ड परीक्षा में अधिक अंक लाने के लिए बच्चों पर दबाव नहीं बनाना चाहिए, बल्कि उनका लक्ष्य निर्धारित करें। जिस अच्छे काम में बच्चे की दिलचस्पी है उसे उसी क्षेत्र में आगे बढऩे का मौका दें। हमारा लक्ष्य तय होगा तो तीर सही निशाने पर लगेगा। हमें आइपीएस बनकर अपराधियों को सजा दिलाने के साथ ही समाज को बेहतर बनाने में भी बड़ा योगदान देने का अवसर मिला है।