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गंगा नदी में आधुनिक तरीके से हो रही डॉल्फिन की गणना, ब्रिटेन से पहुंची टीम Amroha News

जीपीएस से चिन्हित कर गूगल मैप पर डालकर मिलान कर उनकी लोकेशन देखकर गिनती कर रहे हैं। गणना 15 अक्टूबर तक करेंगे। इसके बाद सही संख्या के बारे में जानकारी हो सकेगी।

By Narendra KumarEdited By: Published: Tue, 15 Oct 2019 12:20 AM (IST)Updated: Tue, 15 Oct 2019 10:12 AM (IST)
गंगा नदी में आधुनिक तरीके से हो रही डॉल्फिन की गणना, ब्रिटेन से पहुंची टीम  Amroha News
गंगा नदी में आधुनिक तरीके से हो रही डॉल्फिन की गणना, ब्रिटेन से पहुंची टीम Amroha News

अमरोहा, जेएनएन। गजरौला के पतित पावनी गंगा नदी में डॉल्फिन की गणना के लिए ब्रिटेन से आई 

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वर्ल्‍ड वाइल्ड फंड की टीम ने गजरौला में डेरा डाल दिया है। टीम ब्रजघाट और नरोरा के बीच यह पता लगा रही है कि यहां कितनी डॉल्फिन हैं। गणना आधुनिक तरीके से की जा रही है। टीम के सदस्य डॉल्फिन दिखाई देने वाले स्थान को जीपीएस से चिन्हित कर गूगल मैप पर उनकी लोकेशन देखकर गिनती कर रहे हैं। 

गांगेय डॉल्फिन को स्थानीय भाषा में सूंस या सोंस भी कहा जाता है। जिस प्रकार जंगल के लिए बाघ जरूरी हैं, उसी प्रकार नदी की सेहत के आकलन को गांगेय डॉल्फिन भी जरूरी है। स्वच्छ पानी में ही डॉल्फिन जीवित रह सकती है। बताया जाता है कि गंगा नदी में पाई जाने वाली डॉल्फिन नेत्रहीन होती हैं, जबकि समुद्र में पाई जाने वाली डॉल्फिन देख सकती है। डॉल्फिन यहां ब्रजघाट से नरोरा तक काफी संख्या में पिछले दिनों मौजूद होने की बात सामने आई थी। इस बार गणना के लिए ब्रिटेन से वर्ल्‍ड वाइल्ड फंड की टीम पहुंची है, जो यहां ब्रजघाट गंगा तट से बुलंदशहर की सीमा के नरोरा तक के क्षेत्र में इसका पता लगा रही है। ब्रिटेन से आईं डॉ गिल ब्रोलिक का कहना है कि गणना विशेष तकनीक से की जा रही है। दो नाव में सवार टीम के सदस्यों को गंगा में जिस स्थान पर डॉल्फिन दिखाई देगी।

 दस साल पहले डॉल्फिन को घोषित किया था राष्ट्रीय जलजीव

जानकार बताते हैं कि पटना विश्वविद्यालय में जन्तुशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. रविन्द्र सिन्हा के अथक प्रयासों से पांच अक्टूबर 2009 को डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलजीव घोषित किया गया। अमरोहा के तिगरी धाम से जनपद बुलंदशहर के नरौरा तक गंगा क्षेत्र गांगेय डॉल्फिन के जीवन के लिए अनुकूल है।  2013 के सर्वे के अनुसार यहां 110-115 गांगेय डॉल्फिन थीं। प्रतिबंध के बावजूद गांगेय डॉल्फिन का शिकार चोरी-छिपे किया जाता है। कभी औद्योगिक इकाइयों द्वारा रासायनिक अवशेष गंगा क्षेत्र में प्रवाहित करने से जलीय प्रदूषण के कारण असामयिक मृत्यु हो जाती है। दो-तीन साल पूर्व ब्रजघाट में डॉल्फिन मरी हुई भी पाई गई थी। 

मादा की लंबाई नर गांगेय डॉल्फिन की तुलना में होती है ज्यादा

वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत गांगेय डॉल्फिन को संरक्षित घोषित किया गया है। पर्यावरण सचेतक समिति के राष्ट्रीय सचिव संजीव पाल का कहना है कि मादा डॉल्फिन की लंबाई न की तुलना में अधिक होती है। 


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