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कमीशन के खेल से चल रहे मंडी के काले कारोबार में बड़े-बड़े शामिल

किसानों के कल्याण के लिए बनी मंडी परिषद के अफसर कर रहे लूट

By JagranEdited By: Published: Thu, 04 Apr 2019 09:48 AM (IST)Updated: Thu, 04 Apr 2019 11:21 AM (IST)
कमीशन के खेल से चल रहे मंडी के काले कारोबार में बड़े-बड़े शामिल
कमीशन के खेल से चल रहे मंडी के काले कारोबार में बड़े-बड़े शामिल

मुरादाबाद : किसानों के कल्याण के लिए बनी मंडी परिषद के अफसर और कर्मचारी केवल अपने लाभ के लिए काम करने में जुटे हुए हैं। प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये का शुल्क वसूलने मंडी परिषद से किसानों को कोई लाभ नहीं हो रहा है। वहीं कर्मचारियों की हरकतों से व्यापारी भी ठगे जा रहे हैं। ठाकुरद्वारा में मंडी निरीक्षक नदीम अख्तर पर 35 लाख रुपये का सरकारी शुल्क हजम करने का आरोप लगा है। मंडी परिषद में कमीशन के खेल में सारे में नियम कानून को दांव पर लगा दिया जाता है। वहीं जिन अफसरों पर पूरी व्यवस्था की जिम्मेदारी होती है, वही अफसर इस पूरे मामले को दबाने में जुटे रहते हैं। मंडी परिषद में रसीद कटाने के साथ ही आढ़तियों के साथ सभी का कमीशन फिक्स है, अगर इस कमीशन में कोई हेराफेरी हो गई तो व्यापारियों का उत्पीड़न शुरू हो जाता है। साल 2016-17 में तैनात रहे मंडी सचिव ऊधम सिंह के कार्यकाल में यह घोटाला हुआ था। लेकिन बीते तीन सालों से इस घोटाले पर किसी भी अफसर की नजर नहीं गई। अब जब मंडी निरीक्षक नदीम अख्तर सेवानिवृत्त होने जा रहा है तब व्यापारियों की शिकायत के बाद यह मामला उजागर हुआ है। तत्कालीन अफसरों ने ऑडिट रिपोर्ट देखने के बाद इस मामले का पता लगाने की कोशिश नहीं की कि आखिर जो पैसा व्यापारियों के पास से आया वह कहां गया। इस मामले को लेकर अफसरों का रवैया बहुत ही लापरवाही पूर्ण रहा है।

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पैसा जमा नहीं हुआ, व्यापारियों को मिली एनओसी

बीते तीन सालों से विभागीय स्तर पर व्यापारियों को मंडी शुल्क जमा किए बिना अनापत्ति प्रमाण पत्र भी जारी कर दिए गए। जबकि नियम के अनुसार जब तक मंडी शुल्क जमा नहीं होता, व्यापारियों को एनओसी प्रदान नहीं की जाती है। अफसरों के द्वारा सहकारी समिति के व्यापारियों को एनओसी प्रदान करना भी अफसरों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है।

इन दो समितियों का डकारा गया पैसा

ठाकुरद्वारा में मंडी समिति का शुल्क डकारने का केवल दो मामले सामने आए हैं। जिनमें पहला मामला मैसर्स महिमा राइस मिल का है। इस मिल के संचालक के द्वारा अलग-अलग तिथियों में एक लाख 84 हजार रुपये का भुगतान चेक से किया गया था। लेकिन ऐन वक्त में चेक को कैंसिल कराने के बाद मंडी निरीक्षक ने भुगतान कैश में देने की बात कही। हालांकि, व्यापारी ने इस बात से मना किया, लेकिन सरकारी कर्मचारी की बात को मानते हुए कैश में पैसा दिया गया और मंडी निरीक्षक ने इसकी रसीद भी काट दी। यह पैसा सरकारी खाते में जमा करने की जगह निरीक्षक स्वयं डकार गया। वहीं दूसरा मामला बहुउद्देशीय विपणन समिति का है। इस समिति से लिया गया 11 लाख 54 हजार रुपये का मंडी शुल्क निरीक्षक ने अपने खाते डाल लिया। इन दोनों मामलों के उजागर होने के बाद ही इस पूरे खेल के बारे में मौजूदा अफसरों को जानकारी हुई।


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