शोरूम तक पहुंचने के बजाय फैक्ट्रियों में फंस रहे मुरादाबाद के निर्यातकों के आइटम, जानिये क्या है वजह
हस्तशिल्प निर्यात बढ़ने के साथ ही निर्यातकों के सामने कई प्रकार की समस्याएं खड़ी हो रही हैं। काम अधिक होने के कारण कंटेनर की कमी के कारण आर्डर कैंसिल होने का खतरा मंडराने लगा है। विदेश तक कंटेनर पहुंचाने का भाड़ा भी दो से तीन गुना तक पहुंच गया है।
मुरादाबाद, जेएनएन। हस्तशिल्प निर्यात बढ़ने के साथ ही निर्यातकों के सामने कई प्रकार की समस्याएं खड़ी हो रही हैं। काम अधिक होने के कारण कंटेनर की कमी के कारण आर्डर कैंसिल होने का खतरा मंडराने लगा है। वहीं विदेश तक कंटेनर पहुंचाने का भाड़ा भी दो से तीन गुना तक पहुंच गया है। कंटेनर की कमी के चलते शिपिंग कंपनियां भी भाड़ा बढ़ाती जा रही हैं। वहीं, सरकार की ओर से इस पर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं है।
कोरोना की पहली लहर के बाद से जब लाकडाउन खुलते ही स्थितियां लगातार बदलती चली गईं। कुछ दिन ठहराव के बाद निर्यात कारोबार ने जबरदस्त तेजी पकड़ी। चीन पर भरोसा टूटने का लाभ भारत को मिला। धातु हस्तशिल्प निर्यात का काम सीधे मुरादाबाद आने से आर्डर की भरमार हुई। सिंगल शिफ्ट में चलने वाली अधिकांश निर्यात फैक्ट्रियों में दो-दो शिफ्टों में काम होने लगा। काम तो तेजी से हुआ, लेकिन उनके सामने समस्या कंटेनर की उपलब्धता की खड़ी हो गई। कंटेनर समय से नहीं मिल पाने के कारण निर्यातकों के आर्डर बंदरगाह के लिए तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।
पीक टाइम में कंटेनर का संकटः अगस्त से मध्य सितंबर तक निर्यातकों के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण समय है। क्रिसमस के आर्डर इसी समय में रवाना करने होते हैं। इन दिनों कंटेनर नहीं मिलने के कारण फैक्ट्रियों में आर्डर पूरे होने के पैक माल का ढेर लग रहा है। हालात यह है कि फैक्ट्रियों से माल नहीं निकल पाने के कारण फैक्ट्रियां गोदाम बनती जा रही है। फैक्ट्रियों में काम करने के लिए भी जगह कम पड़ने लगी है।
दो गुना से ज्यादा हुआ किरायाः निर्यातकों को एक-एक कंटेनर के लिए भटकना पड़ रहा है। वहीं, कंटेनर प्राप्त करने के लिए 25 से तीस हजार रुपये अधिक खर्च करने के बावजूद कंटेनर नहीं मिल पा रहे हैं। मुरादाबाद हैंडीक्राफ्ट्स एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष नवेद उर रहमान का कहना है कि किराया भी लगातार बढ़ रहा है। विदेश तक पहुंचाने का किराया भी चार हजार डालर से बढ़कर 16 हजार डालर तक पहुंच गया है। लेकिन, आर्डर को किसी भी हाल में खरीदार तक पहुंचाने के लिए यह सब वहन करना मजबूरी है।
उठाना पड़ सकता है नुकसानः मुरादाबाद से प्रतिवर्ष आठ हजार करोड़ का निर्यात होता है। मुरादाबाद में बनने वाले हस्तशिल्प उत्पाद सजावट के होते हैं। सबसे अधिक कारोबार क्रिसमस पर होता है। पश्चिमी देशों में अधिकांश लोग क्रिसमस से पूर्व पुराने सजावटी आइटम हटाकर नए सिरे से घर साज सज्जा करते हैं। यही कारण है कि मुरादाबाद से निर्यात होने वाले आइटम से करीब 60 फीसद तक कार्य क्रिसमस से पहले ही होता है। अमेरिका सहित सभी पश्चिमी देशों के शोरूम में माल अक्टूबर तक सजने लगता है। अगर आर्डर से नहीं पहुंचते हैं तो निर्यातकों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।ईपीसीएच के महानिदेशक डा. राकेश कुमार ने बताया कि हम जहाज रानी और वाणिज्य मंत्रालय से लगातार संपर्क में हैं, ताकि कंटेनर की समस्या का हल निकाला जा सके। हमारे प्रयास से कंटेनर की उपलब्धता बढ़ी है, लेकिन यह कंटेनर मांग के अनुरूप नहीं हैं।
जुलाई में डिपो से निकले 4650 कंटेनरः कंटेनर डिपो के टर्मिनल प्रबंधक आशीष गौतम ने बताया कि कंटेनर डिपो से औसतन हर महीने 3000-3200 कंटेनर निकलते हैं। लेकिन, काम बढ़ने के बाद से जुलाई में 4650 कंटेनर रवाना किए गए। 18 अगस्त तक 2700 कंटेनर रवाना हो चुके हैं। अगस्त के बचे हुए दिनों में 4500 से अधिक कंटेनर रवाना हो जाएंगे।ईपीसीएच प्रशासनिक कमेटी के सदस्य और निर्यातक शरद बंसल ने बताया कि इस समय मुरादाबाद से तकरीबन ढाई से तीन हजार करोड़ रुपये के एक्सपोर्ट आर्डर प्लेस होने हैं। फैक्ट्रियों में लगातार काम चल रहा है और आर्डर रवाना नहीं हो रहे हैं। मुरादाबाद को अभी तत्काल में एक हजार कंटेनर की आवश्यकता है। लेकिन उपलब्धता उसके आधे की भी नहीं है। निर्यातक जिन परेशानी में कंटेनर की व्यवस्था कर रहे हैं, यह केवल वही जानते हैं।