कांठ बवाल के रोचक तथ्य, घटना से पहले ही दर्ज हो गया था मुकदमा, राज्य सरकार ने तलब की थी रिपोर्ट
मुकदमा दर्ज करने से लेकर कोर्ट में गवाही देने पहुंचे पुलिस कर्मी केवल मूकदर्शक की भूमिका अदा करते रहे। कोर्ट के आदेश में स्पष्ट लिखा गया है कि इस मामले में कांठ थाने में विवाद शुरू होने से पहले ही आरोपितों के नाम सहित मुकदमा दर्ज हो गया था।
मुरादाबाद [रितेश द्विवेदी]। कांठ बवाल के दौरान शासन तक हड़कंप मच गया था। गृह मंत्रालय ने इस मामले की रिपोर्ट राज्य सरकार से तलब की थी। इसके साथ ही उस दौरान इस पूरे मामले की जांच करने के लिए केंद्रीय खुफिया ब्यूरो के अधिकारियों को कांठ भेजा गया था। घटना के दौरान पथराव हुआ, रेलवे संपत्ति को नुकसान पहुंचने के साथ ही तत्कालीन डीएम की आंख में चोट भी लग गई थी। सात साल तक चली लंबी कार्रवाई के बाद अदालत में अभियोजन एक भी आरोपित पर दोष सिद्ध नहीं कर सका। अदालत के 58 पेज के फैसले में जिन खामियों को उजागर किया गया है, उसे देखकर लगता है कि पुलिस ने अपना काम ठीक से नहीं किया।
मुकदमा दर्ज करने से लेकर कोर्ट में गवाही देने पहुंचे पुलिस कर्मी केवल मूकदर्शक की भूमिका अदा करते रहे। कोर्ट के आदेश में स्पष्ट लिखा गया है कि इस मामले में कांठ थाने में विवाद शुरू होने से पहले ही आरोपितों के नाम सहित मुकदमा दर्ज हो गया था। इस मामले में पुलिस ने भविष्य की घटना को देखते हुए मुकदमा दर्ज करने का काम किया। एफआइआर के अनुसार चार जुलाई 2014 को दोपहर साढ़े 12 बजे से बवाल शुरू हो गया था। थाने में जो मुकदमा दर्ज हुआ वह विवाद होने से पहले ही पूरे प्रारूप में दर्ज कर लिया गया। पुलिस की इस कमी का लाभ आरोपित पक्ष को मिला। इसके साथ ही रेलवे ने संपत्ति नुकसान का जो मुकदमा दर्ज कराया,उसमें आज तक कोर्ट में इस बात की जानकारी नहीं दी गई, कि रेलवे की कितनी संपत्ति का नुकसान हुआ। इसके साथ ही कितनी ट्रेन इस बवाल के कारण प्रभावित हुई, उनके नाम और यात्रियों का विवरण भी कोर्ट में उपलब्ध नहीं कराया गया। जो पुलिस कर्मी कोर्ट में गवाह बनकर पहुंचे, उन्होंने किसी भी आरोपित को पहचाने से इन्कार कर दिया। पुलिस की इन्हीं खामियों के चलते कांठ बवाल के आरोपितों को कोर्ट से सजा नहीं हो सकी। लेकिन इस बवाल का कारण भी पुलिस ही बनी थी। पुलिस अपने कर्तव्यों का निर्वहन निष्पक्षता और जिम्मेदारी से करती तो शायद कांठ में बवाल न होता और बवाल के बाद जिम्मेदारी से साक्ष्यों का संकलन के साथ करती तो शायद कोर्ट से आरोपितों को सजा भी मिलती।
मृतक भी हुए दाेष मुक्त : बीते सात सालों तक चली सुनवाई के दौरान छह आरोपितों की मौत गई थी। इस फैसले के बाद वह भी दोषमुक्त हो गए। मृतकों में बेगराज निवासी कबीर नगर जनपद बिजनौर,डा.चंद्रहास सिंह निवासी कैलसा रोड अमरोहा, महेन्द्र गुप्ता निवासी कोट थाना कोतवाली जनपद सम्भल, सौरभ निवासी नौगांव सादात अमरोहा, धर्मकुमार जैन निवासी कांठ, महेन्द्र गुप्ता निवासी लाइनपार थाना मझोला मुरादाबाद को कोर्ट ने दोष मुक्त कर दिया। इन सभी आरोपितों की विवेचना के दौरान ही मौत हो गई थी।