Independence Day : ब्रिटिश सेना के कमांडर ने रखवा दिए थे अपनी ही बटालियन के हथियार, अंग्रेजों से की बगावत
Independence Day History Importance Significance 11 जनवरी 1956 को भारत सरकार द्वारा एक लेटर जारी करके स्वतंत्रता आंदोलन में द्वारिका सिंह दुबे के कार्यों को याद किया गया।
मुरादाबाद। भारत की आजादी में न जाने कितने बलिदानियों का लहू बहा है। न जाने कितनों ने जेल में ही दम तोड़ दिया है। इनमें से ही एक हैं कमाण्डर द्वारिका सिंंह दुबे। भले ही द्वारिका सिंंह न रहे हों लेकिन, कटघर निवासी उनके पौत्र अतुल दुबे बताते हैं कि उनके बाबा को ब्रिटिश सेना ने नजरबंद कर दिया था, इस दौरान ही इनकी मौत हो गई थी। आजादी के बाद तक उनकी पत्नी पार्वती दुबे को भारत सरकार की ओर से पेंशन मिलती रही लेकिन, 1967 में उनकी भी मौत हो गई।
अतुल दुबे ने यह सभी किस्से अपने पिता हरीश चंद्र दुबे से सुने थे। उनकी भी मृत्यु हो जाने के पश्चात अतुल ने अपने बाबा और दादी से जुड़ी सभी यादों को सहेज रखा है। अतुल बताते हैं कि पहले उनके बाबा ब्रिटिश सेना में ही कमाण्डर थे। लेकिन, महात्मा गांधी के आंदोलनों के बाद से बहुत से भारतीय जो अंग्रेजों के यहां नौकरी करते थे, उनके अंदर देशप्रेम की भावना जागती गई। 1930 में गांधी जी द्वारा शुरू की गई दांडी यात्रा के दौरान उनके बाबा द्वारिका सिंह भी गुपचुप तरीके से उनके साथ हो चले। लेकिन, कमाण्डर होने के नाते जब अंग्रेजों ने उन्हें भारतीयों पर कार्रवाई के आदेश दिए तो उन्होंने अपनी बटालियन के सभी हथियार रखवा दिए और आदेश मानने से इंकार कर दिया। इसके बाद अंग्रेजों ने उनके बाबा को नजरबंद कर दिया, इसके बाद उनके बाबा कभी वापस नहीं आए और वहीं उनकी मृत्यु हो गई।