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मुरादाबाद में कुत्तों का आतंक, सितंबर में 270 बच्‍चे बने शिकार, कुत्ते के काटने पर करें ये काम

Fear of dogs in Moradabad स‍ितंबर माह में 270 बच्चों को कुत्तों ने काटा। 134 लोगों को लगाई गई एंटी रेबीज डोज इसमें 45 नए मरीज । 2019 सितंबर माह में 850 बच्चों को कुत्‍तों ने काटकर क‍िया था जख्‍मी।

By Narendra KumarEdited By: Published: Wed, 07 Oct 2020 12:22 PM (IST)Updated: Wed, 07 Oct 2020 12:22 PM (IST)
मुरादाबाद में कुत्तों का आतंक, सितंबर में 270 बच्‍चे बने शिकार,  कुत्ते के काटने पर करें ये काम
मुरादाबाद में कुत्तों का आतंक, सितंबर में 270 बच्‍चे बने शिकार।

मुरादाबाद, जेएनएन। Fear of dogs in Moradabad। मौसम बदलने के साथ ही आवारा आतंक बच्चों को शिकार बना रहा है। गांव में खेलने वाले बच्चों पर हमला कर रहे हैं। मंगलवार को भीकनपुर, मूंढापांडे, गोट, रामपुर दोराहा, काशीपुर तिराहा, गागन वाली मैनाठेर आदि क्षेत्रों से 19 बच्चों को एंटी रेबीज डोज लगाई गई। ये सभी बच्चे तीन से छह साल की उम्र के हैं। इन बच्चों को उस वक्त शिकार बनाया गया जब ये घर के बाहर खेल रहे थे। इसमें तीन बच्चों पर उस समय हमला किया गया जब वे खेत से वापस आ रहे थे। 

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तांत्रिक के चक्कर में नहीं पड़ें कुत्ते के काटने पर

अधिकतर लोग तांत्रिकों से झड़वाने के लिए गांव में पहुंच जाते हैं। इससे कुत्ते का रेबीज तो खत्म नहीं होता लेकिन, बच्चे की जान जरूर खतरे में पड़ जाती है। जिला अस्पताल की ओपीडी में गांव से आने वाले ज्यादातर लोग सिहाली गांव में कुत्ते काटे का इलाज कराकर रेबीज डोज लगवाने के लिए पहुंचते हैं।

कुत्‍ते के काटने पर करें ये काम 

जख्म खुला छोड़ें, कुत्ता काट ले तो जख्म को साफ पानी से तब तक धोते रहें जब तक खून बहना बंद न हो जाए। इसके बाद टिटनेस का इंजेक्शन लगवा लें। कोई भी एंटी सेप्टिक क्रीम लगा सकते हैं। इसके बाद फौरन चिकित्सक को दिखाएं। 

सितंबर-अक्टूबर माह में मौसम ठीक रहता है। इस मौसम में कुत्ते प्रजनन के लिए परेशान रहते हैं। इसलिए झुंड बनाकर घूमते हैं। गांव-खेत में खेलने वाले बच्चों को काट लेते हैं। इस वजह से इन दिनों में कुत्ते काटे के मरीजाें की संख्या बढ़ जाती है।

डॉ. राजेंद्र कुमार, चिकित्सा अधीक्षक

सामुदायिक-प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर एंटी रेबीज डोज लगाई जा रही है। इसके लिए सभी केंद्रों पर फार्मासिस्टों को निर्देशित किया जा चुका है। जो लोग जिला अस्पताल पहुंचते हैं। उन्हें भी वहां से वापस नहीं भेजा जाता है।

डॉ. एमसी गर्ग, मुख्य चिकित्सा अधिकारी


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