बजट पूरा, फिर मिड डे मील का क्यों रोना
मुरादाबाद : आम तौर पर सुविधाएं मुहैया कराने और व्यवस्थाओं को चुस्त-दुरुस्त करने के लिए बजट
मुरादाबाद : आम तौर पर सुविधाएं मुहैया कराने और व्यवस्थाओं को चुस्त-दुरुस्त करने के लिए बजट का रोना रोया जाता है लेकिन रामपुर में हालात इससे उलट है। यहा बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों की निष्क्रियता का आलम है कि शासन से मिले करोड़ों रुपये खर्च ही नहीं हो पाए। बच्चों को बैग और ड्रेस भी अंतिम दिनों में दिए गए। मिड- डे मील योजना में भी पूरा बजट खर्च नहीं हो सका।
स्तर सुधारने के लिए सरकार है प्रयासरत
प्रदेश सरकार की ओर से बेसिक शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए हर साल करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं। बच्चों की ड्रेस से लेकर दोपहर भोजन और किताबों तक के लिए विभाग को धन जारी किया जाता है। शिक्षकों के वेतन, भत्ते आदि के लिए भी अरबों रुपये जारी किए जाते हैं। इसके अलावा विभागीय स्तर पर समय समय पर धन की माग की जाती रहती है। सरकार की मंशा बेसिक शिक्षा को बेहतर करने की है, लेकिन असल में इसका फायदा बच्चों को मिल ही नहीं पाता है।
बीस फीसद बच्चे लाभ से वंचित
चालू वित्तीय वर्ष की बात की जाए तो निश्शुल्क बैग व यूनिफार्म वितरण योजना में सिर्फ 168680 छात्रों को इसका लाभ मिल सका है। अब भी लगभग बीस फीसद छात्र योजना में लाभ से वंचित हैं। सरकार की ओर से मिड-डे मील योजना में विभाग को इस वित्त वर्ष में 12 करोड़ रुपये ही मिले हैं। जिले के लगभग दो लाख बच्चों के लिए मिले इस धन में 60 लाख रुपये खर्च होने से ही रह गए हैं।
कई योजनाओं पर नहीं खर्च हो पाए रुपये
इसके अलावा सर्व शिक्षा अभियान के तहत बच्चों की अनुरक्षण अनुदान, स्कूल चलो अभियान, सब पढ़ें सब बढ़ें, विद्यालय उत्सव आदि के लिए इस साल लगभग सवा सौ करोड़ रुपये का बजट था, शासन ने रुपये भी जारी कर दिए, लेकिन अफसर यह पैसा पूरा खर्च नहीं कर सके। हालाकि, अब अधिकारी तेजी से पैसा खर्च करने में जुटे हैं। जिला बेसिक शिक्षाधिकारी सर्वदानंद कहते हैं कि बजट को लेकर कुछ कह पाना संभव नहीं है। जैसे ही विभाग को पैसे मिलते हैं उन्हें खर्च करने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
विद्यालयों में नहीं मिलती अच्छी शिक्षा
भाकियू भानू के राष्ट्रीय महासचिव हनीफ वारसी का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालयों के हालात बेहद खराब हैं। कई स्कूलों में तो बच्चे मिड-डे मील खाकर ही वापस आ जाते हैं। स्कूलों में पढ़ाई लिखाई का बिल्कुल माहौल नहीं है। अध्यापक भी समय से नहीं आते हैं। सरकार को शिक्षा व्यवस्था सुधारने पर ध्यान देना चाहिए।