बड़े साहब की बैलगाड़ी की डिमांड पूरी Moradabad News
मातहत ने जुगाड़ करके गाड़ी भिजवा दी। फिलहाल बैल को ट्रक के साथ भेजा जाएगा। साहब भड़के तो बोले-यह मनमानी यहां नहीं चल पाएगी।
मुरादाबाद (मोहन राव)। फिल्म नदिया के पार का गाना 'कौन दिशा में लेके चला रे बटोहियाÓ याद है ना। गाने में हीरो हीरोइन बैलगाड़ी पर सवार होकर गाना गाते दिख रहे हैं। यहां भी बैलगाड़ी चर्चा में हैं। बड़े साहब को चाहिए थी। कहां से आए, इसी उधेड़बुन में एक सप्ताह पहले समीक्षा बैठक के बाद एक मातहत को रोक लिया। वह समझ गया कि कोई न कोई डिमांड करेंगे। साहब ने उनको बड़े प्यार से कुर्सी पर बैठाया और कह दिया एक बैलगाड़ी भिजवा दो। अनोखी फरमाइश से मातहत परेशान। पूछने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहे थे कि एक बैल वाली या दौ बैलों वाली। इस चुप्पी को साहब समझ गए, बोल पड़े कि एक बैल वाली चल जाएगी। फिर चुप्पी, तोड़ी बोल पड़े कि क्वार्टर पर भिजवा दो। मातहत ने दो जगह से जुगाड़ कर गाड़ी भिजवा दी। बैल को ट्रक में सामान जाने पर भिजवाना है।
धूप खाने वाली मैडम, साहब परेशान
विकास भवन में एक साहब अपनी मातहत मैडम से इस कदर परेशान हैं कि उनके तबादले के लिए भी कई बार हाथ-पांव आजमा चुके हैं। साहब अपनी परेशानी का सबब मैडम की काम चोरी बताते हैं। धूप खिली और मैडम काम छोड़ चली जाती हैं धूप सेकने। ऐसे में साहब के कंधों पर दोहरे काम की जिम्मेदारी आ जाती है। वैसे तो साहब बहुत मिलनसार हैं। चेहरे में मुस्कुराहट हमेशा रहती है लेकिन, मैडम ने साहब के चेहरे की मुस्कान ही छिन ली है। मैडम को इस बात की भनक तक नहीं है। साहब मौसम बदलने के इंतजार में है, ताकि मैडम अपनी कुर्सी पर बैठे। साहब को परेशान देख अन्य मातहत भी दुखी हैं लेकिन, मजाल क्या जो मैडम को यह बता सकें। हाल-फिलहाल तो साहब बाहर है। धूप नहीं खिलने पर मैडम को अंदर कमरे में रहकर ही काम करना पड़ रहा है।
विकास भवन में पसरा सन्नाटा
शब्दों के बाण और उसके नतीजों से विकास भवन में सन्नाटा पसरा है। एक मातहत ने मुंह क्या खोला, उनको अपनी कुर्सी तक गंवानी पड़ गई। कुर्सी तक गंवाने वाले का दर्द है कि बड़े साहब के द्वारा बोले गए शब्द ऐसे चुभे कि विकास भवन से ही बाहर आना पड़ा। खैर अब तो उनकी कुर्सी चली गई है। कर्मचारियों में इस बात की चर्चा है कि बड़े साहब को ऐसे शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए था या फिर नहीं। शब्दों के बाण के बाद मचे घमासान में विकास भवन में चर्चा का दौर शुरू हो गया है। समझदारों की जमात कह रही है कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं, जिसका खामियाजा कुर्सी गंवाकर भुगतना पड़े। खैर कुर्सी गंवाने वाले साहब विकास भवन छोड़ चुके हैं। अब कहावत सुनी और कही जा रही है अब पछिताए क्या होत, जब चिडिय़ा चुग गई खेत।
तुझे भी छोड़ूंगा नहीं
किसानों की शिकायतों से साहब परेशान रहते हैं। विकास भवन से लेकर दिल्ली रोड तक के दफ्तर में किसानों की शिकायत पहुंचने से साहब की पेशानी पर बल पड़ रहे हैं। कभी-कभार तो साहब का पारा इतना बढ़ता है कि कर्मचारियों पर गुस्सा निकाल देते हैं। कहते हैं मेरी गर्दन फंसी तो तुझे भी छोड़ूंगा नहीं। साहब तो बड़े अधिकारी है। खामोश आवाज सुनकर ही कर्मचारियों की घिघ्घी बंध जाती है। खाद की कमी पर अगर किसान ने शिकायत दर्ज कराई तो उसकी खैर नहीं। फाइल पर दस्तखत करते समय कर्मचारी कांपते रहते हैं। अब तो साहब के इस रवैये की चर्चा आम होने लगी है। विकास भवन में भी किसानों की शिकायतों का समाधान नहीं होने पर मातहतों पर ही पूरी भड़ास निकालती है। कुछ दिन पहले ही एक फाइल को देखकर साहब ऐसे भड़के कि कहने लगे कि यह मनमानी नहीं चल पाएगी।