Building construction : अमरोहा के हर मकान पर रहती है बाबू की नजर, आजकल खोल रहे पोल
Building construction मातहत कहता है कि बाबूजी बहुत होशियार हैं पूरा माल अपने मूल शहर में खपा रहे हैं दोनों में रस्साकशी जारी है। इसकी चर्चा शहर में भी है।
अमरोहा (अनिल अवस्थी )। शहर भर को अंगुलियों पर नचाने वाले बाबूजी आजकल बहुत परेशान हैं, खुद नाच रहे हैं। बेचारे नियोजित और सुंदर ढंग से शहर बसाने की वर्षों से जिम्मेदारी निभा रहे हैं। भवन निर्माण कराते ही नोटिस देते हैं, मगर हैं बहुत दयालु, गिराते कभी किसी का नहीं, बस सस्ते में समन्वय बैठा देते हैं। नजरें किसी से नहीं मिलाते मगर नजर हर मकान पर रखते हैं। समस्या तब खड़ी हो गई जब उनका मातहत ही पीछे पड़ गया। पहले तो वह भी खेल में शामिल रहता था, बाबूजी की नोटिस पर मिलकर डील करते थे, अब वह बाबूजी की कुर्सी पर ही नजरें गड़ाए है। दोनों एक दूसरे की पोल खोल रहे हैं। बाबूजी कहते हैं कि इसने नैनीताल में फ्लैट बनवाए हैं। कार से चलता है।
बड़े साहब बनाम छोटी मैडम
जिले की ही एक तहसील का किस्सा खूब चर्चा में है। तहसील में एक छोटी मैडम हैं। सुंदर स्वभाव वाली हैं, इसलिए कर्मचारियों से लेकर फरियादियों तक में अच्छे से पहचानी जाती हैं। उनकी कार्यशैली से भले ही किसी को शिकायत हो, उनसे किसी को शिकायत नहीं है। पर, पता नहीं क्यों, तहसील वाले बड़े साहब की उनसे नहीं बनती। दोनों एक दूसरे को निपटाने में लगे रहते हैं। जिले के बड़े साहब से एक दूसरे की शिकायतें कराते हैं। इसलिए रोज कोई न कोई नई चर्चा निकल पड़ती है कि दोनों में झगड़ा क्यों हैं। पुरुषवाद बनाम महिलावाद तक मामला पहुंच जाता है, मगर झगड़े की वजह आज तक किसी की समझ में नहीं आई है। दोनों ही एक-दूजे को बड़े साहब का रिश्तेदार बताकर उसे पैदल कराना चाहते हैं। मगर साहब बड़े सयाने हैं। दोनों के खेल समझ रहे हैं, जल्द ही गाज गिराने की तैयारी है।
इन्हें बीवी से बचाओ
सब अपने में व्यस्त मस्त थे, पर कोरोना ने हर आदमी को फुर्सत में कर दिया। साइडइफेक्ट हुआ कि इस फुर्सत में आदमी ने स्वयं को कम देखा, दूसरों को ज्यादा। यूं तो बाहर से पर्दा था लेकिन, अंदर बहुत कुछ बेपर्दा हो रहा था। अब बाहर का पर्दा हट रहा है तो अंदर के पर्दे वाले किस्से आम हो रहे हैं। फिलहाल, जिला स्तरीय दो अधिकारियों की पत्नियां बगावत पर उतर आई हैं। एक तो दफ्तर आते-जाते साहब के मोबाइल को गूगल की तरह सर्च करती हैं। सख्त निगरानी से परेशान साहब कचहरी तक पहुंच चुके हैं। दूसरे वालों की ज्यादा ही प्रेमभाव से भरी हैं, जिससे भी मिलती हैं, अत्यधिक प्रेम से ही मिलती हैं। कई से तो इतना अपनापन हो गया है कि चर्चाएं हो रही हैं। ये अपने पतिदेव की दूसरी हैं। उनके प्रेम के किस्से पतिदेव तक बधाई वाले अंदाज में पहुंच जाते हैं।
मोबाइल वाले अंगुली दूत बने
बेशक, संचार तकनीक से विकास क्रांति आई है, मगर इस क्रांति का हथियार बना मोबाइल अब दोधारी तलवार सा बन गया है। अफसर इसी से परेशान हैं। नई भर्ती वाले चाहे जूनियर अफसर हों, बाबू हों या शिक्षक सब इसी में अंगुली करने में लगे रहते हैं। ये युवा कारिंदे इसके इतने दीवाने हैं कि जब तक अफसर इनके सीधे सीधे अंगुली न करें, तब तक इन्हें पता ही नहीं चलता कि कोई सरकारी काम भी करना है। और जनता के काम की तो छोड़ ही दीजिए। बाबूजी मोबाइल में लगे रहते हैं, दूर दराज से आये फरियादी बैठे रहते हैं। पूछो तो कह देते हैं। डाटा तैयार कर रहे हैं। लखनऊ भेजना होता है। जब कभी कोई बड़ा साहब आउटपुट देखता है, तब पता चलता है कि कौन सा डेटा तैयार हो रहा था। यह गंभीर मसला बड़े साहब के दरबार तक पहुंच गया है। अभी पंचायतों का दौर जारी है।