Ayodhya Ram Mandir : रामसेवकों के लिए जीवन का अनमोल दिन रहा पांच अगस्त, कई की भर आईं आंखें
Ayodhya Ram Mandir कारसेवक अतुल गर्ग व हरपाल सिंह बताते हैं कि रामपुर जेल से छूटने के बाद वह 1653 रामभक्तों के साथ वह अयोध्या गए थे।
अमरोहा, जेएनएन। श्रीराम मंदिर के लिए जीवन भर आंदोलन करने वाले रामसेवकों के लिए पांच अगस्त, 20 का यह दिन जीवन की सबसे अनमोल घड़ी है। राम मंदिर आंदोलन में जेल काटने पर अब गर्व हो रहा है। हसनपुर के मुहल्ला होलीवाला निवासी राजकुमार आढ़ती के घर 15 अप्रैल 1949 को जन्मे श्रीओम गुप्ता की राम मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही। विहिप के नगर महामंत्री रहते हुए 13 अक्टूबर 1990 से आठ नवंबर 1990 तक पच्चीस दिन राम मंदिर निर्माण आंदोलन में रामपुर जेल काटने वाले 71 वर्षीय श्रीओम गुप्ता कहते हैं कि पांच अगस्त का यह दिन उनके जीवन के लिए सबसे अनमोल घड़ी है।
पच्चीस दिन की जेल काटने पर उन्हें गर्व हो रहा है। श्रीराम मंदिर का निर्माण पूर्ण होने के बाद रामलला के दर्शन करने को मिल जाएं यह जीवन की आखिरी तमन्ना है। मुहल्ला कायस्थान निवासी अतुल गर्ग ने भी राम मंदिर आंदोलन में 25 अक्टूबर से आठ नवंबर 1990 तक रामपुर में जेल काटी। सितंबर 1990 में पूरे महीने हसनपुर क्षेत्र में राम ज्योति घुमाई। उन्होंने बताया कि पुलिस के परेशान करने पर करनपुर माफी निवासी मंगल चौहान रामभक्तों को अपने घर शरण देते थे। तहसील क्षेत्र के गांव सांथलपुर निवासी एवं गंगेश्वरी के पूर्व विधायक हरपाल ¨सह ने भी वर्ष 1990 में 25 दिन राम मंदिर आंदोलन में रामपुर जेल में गुजारे थे। वह तीन बार राममंदिर आंदोलन में अयोध्या गए थे। छात्र जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुडे़ हरपाल वर्ष 1986 में गंगेश्वरी ब्लाक के खंड कार्यवाह थे।
श्रीराम मंदिर हेतु भूमि पूजन होने से वह खुशी से ओतप्रोत हैं इस दिन को जीवन का अनमोल दिन मानते हैं। जिला महामंत्री अभिनव कौशिक भी छात्र जीवन से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े रहे हैं। श्रीराम मंदिर निर्माण की नींव रखे जाने से वह खुशी से लवरेज हैं। बजाजा बाजार हसनपुर निवासी उमेश अग्रवाल ने भी करीब एक महीना राममंदिर आंदोलन में जेल में बिताए थे। वह मंदिर निर्माण के लिए हुए भूमि पूजन पर घी के दीये जला रहे हैं। जेल से छूटकर भी अयोध्या पहुंचे थे रामभक्त श्रीराम मंदिर के लिए आंदोलन करते समय रामभक्तों के मन में श्रीराम के प्रति इतना जज्बा था कि रामपुर की जेल से छूटकर वह सीधे अयोध्या ही पहुंचे थे।