मशरूम की खेती से किसानों को आत्मनिर्भर बना रहे अमरोहा के कामेंद्र Amroha News
पराली की मदद से पॉलीहाउस तैयार कर उगा रहे फसल। लॉकडाउन में कम लागत से अधिक आमदनी का पढ़ा रहे पाठ।
(जगजीत सिंह)अमरोहा। लॉकडाउन में ग्राम शाहपुर रझेड़ा के कावेंद्र मशरूम की खेती करने के साथ किसानों को नए तरीके अपनाने के लिये जागरूक कर रहे हैं। ग्राम में चार पॉली फार्म भी बनाए हैं। मशरूम की दिल्ली, राजस्थान व हरियाणा के बाजारों में काफी मांग है।
अमरोहा स्थित मंडी धनौना के क्षेत्र के गांव शाहपुर रझेड़ा के कविंद्र सिंह ने चौधरी चरन सिंह यूनिवर्सिटी मेरठ से एमएससी एग्रीकल्चर की डिग्र्री प्राप्त की। गुरुग्राम में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी की नौकरी को छोड़कर ग्राम में पिछले पांच साल से कृषि कार्य में लगे हैं। लॉकडाउन में युवाओं को खेतीबाड़ी से आमदनी का नया मंत्र दे रहे हैं। शारीरिक दूरी बनाकर एक दिन में एक घंटे की क्लास में आठ किसान तक आ रहे हैं।
मशरूम की खेती का मंत्र
मशरूम की खेती के लिए महंगी लागत से लगने वाले प्लांटों के बीच कामेंद्र के सामने बड़ी चुनौती थी। उन्होंने कुल तीन लाख रुपए की लागत से पराली एवं बांस आदि से चार पॉली हाउस तैयार किए। इसमें भूसा, नारियल बुरादा, मिट्टी आदि से कम्पोज खाद तैयार कर उन्हें प्लास्टिक के बड़े-बड़े थैलों में भर कर मशरूम की बुआई के लिए तैयार कर पॉली हाउस में रख दिया। सिंचाई के लिए छोटी मोटर से चलित हाथ के फव्वारे को तैयार किया। इन पॉलीफॉर्म में उन्होंने मशरूम की खेती की। पॉलीहाउस का तापमान कम रखने के लिए उन्होंने कूलर के माध्यम से ठंडी हवा प्रवाहित की। उनके द्वारा की गई मेहनत का उन्हें फल भी मिला व मशरूम की अच्छी पैदावार हुई। बताते हैं कि इस खेती के सहारे रोजाना पांच से छह हजार तक कमाए जा सकते हैं।
पांच महीने होती है मशरूम की खेती
कामेंद्र बताते हैं कि मशरूम की खेती के लिए 15 डिग्री का तापमान उपयुक्त माना जाता है। इसके लिए 15 अक्टूबर से 15 मार्च तक का समय उपयुक्त होता है। 4 पॉलीफॉर्म में करीब 80 से एक लाख तक एक फसल से कमाई हो जाती है। उन्होंने बताया कि मशरूम उगाने के बाद वह पॉलीबैग में भरी मिट्टी को अपने खेतों में खाद के स्थान पर डाल देते हैं, जो भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाती है तथा दूसरी फसलों को रसायनिक खाद की आवश्यकता नहीं पड़ती है।