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खाली पेट, खाली टेट से जोखिम उठाकर घर पहुंच रहे कामगार

लॉकडाउन थ्री की अवधि भले ही अभी समाप्त नहीं हुआ है लेकिन राष्ट्रीय राजमार्ग रीवां रोड पर प्रवासी कामगारों की निकल रहे हुजूम का नजारा तो यही बता रहा है की लॉकडाउन का असर अब नही है? मालवाहक ट्रकों के ऊपर 40 डिग्री के धूप में जान जोखिम में डालकर यात्रा करने को विवश है ये प्रवासी कामगार।

By JagranEdited By: Published: Fri, 15 May 2020 06:55 PM (IST)Updated: Fri, 15 May 2020 09:31 PM (IST)
खाली पेट, खाली टेट से जोखिम उठाकर घर पहुंच रहे कामगार
खाली पेट, खाली टेट से जोखिम उठाकर घर पहुंच रहे कामगार

जासं, लालगंज(मीरजापुर) : लॉकडाउन थ्री की अवधि भले ही अभी समाप्त नहीं हुआ है लेकिन राष्ट्रीय राजमार्ग रीवां रोड पर प्रवासी कामगारों की निकल रहे हुजूम का नजारा तो यही बता रहा है की लॉकडाउन का असर अब नही है? मालवाहक ट्रकों के ऊपर 40 डिग्री के धूप में जान जोखिम में डालकर यात्रा करने को विवश है ये प्रवासी कामगार।

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लॉकडाउन की अवधि बढ़ने के बाद रोजी रोटी चले जाने से परेशान प्रवासी कामगार अपने राज्यों के लिए रवाना हो रहे हैं। जेठ मास की तपती धूप में ट्रक के केबिन पर पैदल साइकिल के साथ ही जिसे जहां के लिए वाहन मिला वहां के लिए निकल रहा हैं। रास्ते में जो वाहन मिल जाए उसे अगले पड़ाव तक के सफर का सहारा बना रहे हैं। हालांकि लालगंज में सुबह के समय कई प्रवासी जान जोखिम में डालकर टैंकर, ट्रक और ट्रेलर की खुली छत पर ही सवार होते हुए देखे गए।

यूपी के सीएम योगी आदित्य नाथ के तमाम आश्वासन की जो जहां है वही रुके रहे के बाद भी प्रवासी कामगार भागने को विवश है। सरकरों के तमाम प्रयास के दावों के बावजूद प्रवासी कामगारों को अपने घरों तक पहुंचने का समुचित इंतजाम नहीं मिल पा रहा है। रोजी रोटी छिनने से बेहाल ए कामगार पैदल ही घरों की ओर चल पड़े हैं। गुरुवार को मुंबई और दमन द्वीव के श्रमिकों का जत्था पैदल ही अपने राज्य बिहार के लिए रवाना हुआ और लालगंज के आगे चल रहा था। रास्ते में हर वाहन हो हाथ देकर रोकने का प्रयास करते हैं जो रुक गया उसे ही अगले पड़ाव तक का सहारा बना लेते हैं, लेकिन इस काम में वह अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं। बिहार जा रहे शंकर, पंकज, महेंद्र, हरिलाल आदि कामगारों ने बताया की रात के समय एमपी महाराष्ट्र के बार्डर पर एक ट्रक को हाथ दिया। उसके रुकते ही सभी जान जोखिम में डालकर आगे सफर के लिए रवाना हो गए। इनका कहना था कि जहां तक के लिए वाहन मिल जाता है उस पर बैठ जाते हैं, नहीं तो पैदल चलते रहते हैं। महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, आंध्रप्रदेश एवं बंगलुरु आदि को अलविदा करते हुए हजारों कामगार प्रतिदिन बिना खाए पिए हौसलों के बल पर पैदल उड़ाने भर रहे है। बीच-बीच में कुछ स्थानों पर लोग उनके भोजन आदि का भी इंतजाम कर देते हैं। प्रवासी कामगार बने कमाई का जरिया

लालगंज के वीरेंद्र कुमार, अनील, शिवशंकर, कन्हैया लाल मुंबई में प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करते थे। लॉकडाउन के बाद फैक्ट्री बंद हो गई अब प्रवासी कामगार के सामने परदेश से वापस स्वदेश लौटने को चुनौती के रूप में लिया और पैदल, ट्रक, साईकिल आदि से निकल दिए। ट्रक बस से वापस भेजने के नाम पर पहले दलालों ने सात सौ रुपये ऐठ लिए उसके बाद ट्रक को 28 सौ भाड़ा चुकता करने के बाद भी ट्रकों के ऊपर जान जोखिम में डालकर यात्रा करने के लिए विवश है। सिर्फ मुंबई से मीरजापुर जनपद में आने का एक ट्रक एक लाख भाड़ा कमा रहे है जबकि माल लादते तो इतना भाड़ा कभी नहीं पाते थे। शुक्रवार को गुजरात के अहमदाबाद से मीरजापुर आने के लिए 17 कामगारों का जत्था बस से प्रति व्यक्ति 3500 रुपये भाड़ा देकर कानपुर तक पहुंचा।अब कानपुर से मीरजापुर तक तीन सौ किलोमीटर की दूरी पैदल चलने का हौसला रखे हुए है। जिसमें आदर्श, चिरागरोशन, अश्विनी सिंह, आशीष कुमार आदि लोगो ने अपनी पीड़ा जागरण को दूरभाष पर बयां की।


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