..आधी रोटी खाएंगे, रायफल से गोली चलाएंगे!
असलहों के लिए जनपद के लोग खासकर आज की युवा पीढ़ी बहुत ही लालायित दिख रही है, इसकी बानगी तो कलेक्टर कार्यालय पर असलहा का फार्म लेने के लिए उमड़े लोगों को देखकर ही पता चल रहा है। राजनेता, ठेकेदार, व्यापारी, व्यापारी, प्रभावशाली लोग सहित जनता की रक्षा करने वाले वर्दीधारी भी आजकल खुद ही असलहे की लाइन में लगे हुए है। फार्म बिक्री के चलते कलेक्टर कार्यालय में असलहा बाबू सहित अन्य कर्मचारियों की तो चांदी हो गई है।
सिर छुपाने के लिए हाकिम के दरबार में जब एक अदद आवास की अर्जी लेकर नागरिक पहुंचा तो कार्यालय में लोगों की लंबी कतारें देखी। एकबारगी पैर ठिठक गए कि आज भी अपने आवास की अर्जी नहीं दे पाएगा। थोड़ी हिम्मत करके आगे बढ़ा और लाइन में लगे जनाब से पूछा तो पता चला कि इतनी लंबी लाइन असलहे के फार्म लेने के लिए और जमा करने के लिए मिल रहा है। यह देख लग रहा था मानो जिले का हर कोई असलहाधारी बन जाना चाहता हो। लाइन में खड़े रसूखदार भी कम लालायित नहीं दिख रहे थे। यहां तो नेता, ठेकेदार, व्यापारी, प्रभावशाली लोगों के साथ ही वर्दीधारी भी नजर आ रहे थे। फार्म लेने के लिए हाकिम साहब के कार्यालय में असलहा बाबू की ओर हाथ जोड़े लोग गुजारिश कर रहे थे। यह देख हैरान-परेशान नागरिक पसीना पोंछता हुआ नीम के पेड़ की मंद हवाओं का सुख लेने चल पड़ा।
अरे यह क्या, हाकिम के परिसर में असलहा का फार्म लेने के लिए स्कार्पियों, बोलेरो, पजेरो, सफारी की भी लाइन दिखी। एक जनाब पजेरो से उतरते ही पूछ बैठे, 'कलेक्टर साहब का कार्यालय कहां है'। नागरिक ने हतप्रभ हो पूछा, 'अरे भई बात क्या है आप परेशान नजर आ रहे हैं'। वे बोल उठे, 'पता नहीं है, मुख्यमंत्री असलहा के लाइसेंस पर रोक हटा लिए हैं उसी का फार्म जमा करना है। इसकी काफी समय से प्रतीक्षा की जा रही थी। उन्हें ज्योंही इशारा कर दफ्तर बताया, वे समर्थकों के साथ फार्म लेने के लिए दौड़ पड़े। ऐसा लग रहा था मानों असलहा लेने के लिए लोगों की दौड़ लगी हुई है। बगल में चाय की दुकान पर समोसा-चाय लेने वालों की भी लाइन लगी रही। एक महापुरुष सरीखे नजर आ रहे चचा बोल पड़े, जल्दी लाओ भई सुबह से कुछ खाया नहीं। दूसरे भी बोल पड़े, भई सुबह ही घर से निकल दिया लेकिन असलहा बाबू गायब मिले। वे लौटे तो अब सुनने को तैयार ही नहीं हो रहे। बाहर तो लंबी लाइन जस की तस बनी है, लेकिन अंदर से लोगों की आवाजाही लगी है।
नागरिक को बर्दाश्त नहीं हुआ, पूछा-असलहा का लाइसेंस केतने रुपया क मिलत बा। उन्होंने कहा, फर्मवा त छह सौ रुपया क ही मिलत बा लेकिन खर्चा अधिक बा। दूसरा बोला, काहे साहब। वह बताए कि फार्म खरीदने के बाद हर विभाग से नो-ड्यूज लेना पड़ रहा है। साथ में थाना, ब्लाक, तहसील से सत्यापन भी त करावे के बा। तब तक हाकिम की गाड़ी परिसर में घुसी तो कुछ निगाहें खुशी से चमक उठीं। तभी अंगरक्षकों से घिरे नेताजी हाकिम के पास धमक पड़े। बोले, जान-माल क सवाल बा। एक लाइसेंस क अर्जी जमा करा दें। थोड़ी देर बाद एक और नेता जी अपने सिपहसालारों के साथ हाकिम के कार्यालय पहुंचे। उन्होंने हाकिम से अपने लिए और परिचितों के लिए असलहा लाइसेंस को जारी करने की पैरवी करते हुए लखनऊ में कई बड़े हाकिमों का भी हवाला दिया। नागरिक तो एक अदद आवास के लिए ही परेशान था। उसे सिर छिपाने के लिए छत की जरूरत थी लेकिन जीवन में पहली बार असलहे के लिए इतनी बड़ी भीड़ और खद्दरधारियों को देख उसकी आंखें फटी रह गईं। उसकी सुनने वाला कोई नहीं मिला सो हालात से हताश-निराश हो बुदबुदाता हुआ वह अपने छप्पर की ओर लौट गया कि आधी रोटी खाएंगे रायफल से गोली चलाएंगे..!