कम बारिश वाले क्षेत्रों में कैच क्राप फसल की बोवाई किसानों के लिए लाभकारी
कम बारिश वाले क्षेत्रों में कैच क्राप फसल की बोवाई किसानों के लिए लाभकारी
कम बारिश वाले क्षेत्रों में कैच क्राप फसल की बोवाई किसानों के लिए लाभकारी
जागरण संवाददाता, मीरजापुर : जनपद में कम बारिश होने से किसान परेशान हैं, ऐसे में 60-65 दिनों में तैयार होने वाली तिलहनी फसल तोरिया अथवा लाही की कैच-क्राप की बोआई किसानों के लिए लाभकारी साबित होगी, इससे किसानों के नुकसान की भरपाई कर हो सकेगी। किसान राजकीय बीज भंडार व कृषि विज्ञान केंद्र से उन्नतिशील व प्रमाणित बीज प्राप्त कर सकते हैं।
किसानों के लिए मौसम की मार अत्यंत असहनीय हो गई है। क्षेत्र में खरीफ में अधिकांश किसान धान की खेती करते हैं, परंतु आवश्यकता के अनुसार वर्षा नहीं होने से कमोबेश सूखे की स्थिति उत्पन्न हो गई। सिंचाई सुविधा वाले क्षेत्रों में किसानों ने धान की रोपाई किया है। वहीं सिंचाई विहीन क्षेत्र में नर्सरी खराब हो रही है। बरसात होने पर रोपाई करने पर भी उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और आर्थिक रूप से धान की खेती नुकसानदायक होगी। कृषि विज्ञान केंद्र अध्यक्ष डा. श्रीराम सिंह ने बताया कि रबी सीजन आने में काफी समय है। खरीफ और रबी के बीच के अन्तराल में खेत खाली ही रहने से नुकसान होगा इस समय खेत और अपने उपलब्ध संसाधन का उपयोग करके किसान 60-65 दिनों में तैयार होने वाली तिलहनी फसल तोरिया अथवा लाही की फसल कैच-क्राप की बोआई कर सकते हैं। साथ ही तोरिया की कटाई के बाद नवम्बर में रबी सीजन मे गेंहू की फसल ले सकते हैं। इस प्रकार खरीफ मे हुए नुकसान की भरपाई कर सकते हैं। तोरिया से 12 से लेकर 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज पा सकते हैं।
- तोरिया की एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में बुवाई के लिए 4 किग्रा बीज पर्याप्त होता है। बुवाई के पहले खेत तैयार करने के बाद तोरिया के बीज को 10 ग्राम थीरम (4 किग्रा बीज) से अथवा 10 ग्राम मैन्कोजेब से उपचारित करके लाइन में 30 सेमी कतार से कतार में बुवाई करें। पौधे के बीच 25-30 सेमी की दूरी रखें। घना होने पर पहली सिंचाई या बोने के 20-25 दिनों पर घने पौधो को निकालकर समायोजित कर लेना चाहिए, इससे उपज अच्छी होगी। तोरिया की टाइप 9, भवानी, पीटी 303, पीटी 30, उत्तरा, तपेश्वरी और आजाद चेतना आदि जातियां प्रचलित हैं। सामान्यत: तोरिया की बुवाई अगस्त के अंतिम सप्ताह से सितंबर के प्रथम सप्ताह तक करना चाहिए। केवल भवानी प्रजाति की बुवाई सितंबर के दूसरे पखवारे में करें।
खाद एवं उर्वरक कृषि विज्ञान केंद्र अध्यक्ष डा. श्रीराम सिंह ने बताया कि असिंचित दशा में 50 किग्रा नाइट्रोजन, 30 किग्रा फास्फेट, 30 किग्रा पोटाश और 30 किग्रा सल्फर के साथ ही खेत की अंतिम जुताई के समय 40 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद डालें। सिंचाई होने पर 100 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फास्फेट, 50 किग्रा पोटाश, 30 किग्रा सल्फर के साथ ही अंतिम जुताई के समय 40 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग करें। 200 किग्रा जिप्सम का प्रयोग अपेक्षाकृत अधिक लाभप्रद होगा। बुवाई के 15-20 दिनों के बाद निराई व गुडाई करके अवांछित खरपतवार एवं घने पौधों को निकालना चाहिए। सिंचाई के लिए बरसात नहीं होने पर फसल को फूल आने के पहले पानी कमी न होने पाए। हल्की सिंचाई करनी चाहिए। खेत में जल निकासी की व्यवस्था हो।