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नियमों की आड़ में निष्प्रभावी हो रहा सूचना का अधिकार

सूचना का अधिकार अधिनियम को नियमों का हवाला देकर निष्प्रभावी बनाया जा रहा है। जनपद में कई मामले ऐसे सामने आए हैं जब आवेदक से सूचना के लिए या तो मोटी रकम मांग ली गई या निजता प्रभावित होने का बहाना बनाकर सूचना देने से इंकार कर दिया। ताजा प्रकरण पुलिस अधीक्षक कार्यालय मीरजापुर का है जहां जनसूचना के तहत मांगी गई साधारण जानकारियों को यह कहकर टाल दिया गया कि यह उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली-2015 के नियम 4 (2) (ख) (पांच) के अनुसार संबंधित लोक प्राधिकरण की दक्षता प्रभावित करता है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 15 Oct 2019 06:01 PM (IST)Updated: Tue, 15 Oct 2019 06:01 PM (IST)
नियमों की आड़ में निष्प्रभावी हो रहा सूचना का अधिकार
नियमों की आड़ में निष्प्रभावी हो रहा सूचना का अधिकार

मनोज द्विवेदी, मीरजापुर :

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सूचना का अधिकार अधिनियम को नियमों का हवाला देकर निष्प्रभावी बनाया जा रहा है। जनपद में कई मामले ऐसे सामने आए हैं जब आवेदक से सूचना के लिए या तो मोटी रकम मांग ली गई या निजता प्रभावित होने का बहाना बनाकर सूचना देने से इंकार कर दिया। ताजा प्रकरण पुलिस अधीक्षक कार्यालय मीरजापुर का है जहां जनसूचना के तहत मांगी गई साधारण जानकारियों को यह कहकर टाल दिया गया कि यह उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली-2015 के नियम 4 (2) (ख) (पांच) के अनुसार संबंधित लोक प्राधिकरण की दक्षता प्रभावित करता है।

सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत आवेदक ने अधीक्षक कार्यालय मीरजापुर से कुल सात बिदुओं पर सूचनाएं मांगी। इसमें पुलिस विभाग में कितने अधिकारी, कर्मचारी के पद हैं और कितने पदों पर तैनाती है। बाल अपराध की संख्या कितनी है और उसे रोकने के क्या उपाय किए गए। जनपद में कितने लोगों को पासपोर्ट जारी किए गए, कितने पासपोर्ट का सत्यापन होना बाकी है। जनपद में 2018-19 में कितने बाल अपराध, दुष्कर्म, अपहरण व हत्या के मामले हुए। इस अवधि में कितनी सड़क दुर्घटनाएं हुईं। यातायात विभाग द्वारा 2018-19 के दौरान कितने चालान काटे गए, कितना शमन शुल्क वसूला गया। 2018-19 में जिले में नक्सल प्रभाव रोकने के लिए कितना बजट आया और कहां उपयोग किया गया। उपरोक्त यही सूचनाएं पुलिस अधीक्षक कार्यालय से मांगी गई जिसके जवाब में सिर्फ एक लाइन का उत्तर मिला जिसमें यह लिखा है उक्त समस्त बिदुओं के संदर्भ में अवगत कराना है कि उत्तर प्रदेश सूचना का अधिकार नियमावली-2015 के अनुसार सूचना इतनी विस्तृत नहीं होनी चाहिए कि उसको संकलन रूप में संसाधनों को आननुपाती रूप से विचलन अंत‌र्ग्रस्त हो जाने के कारण संबंधित लोक प्राधिकरण की दक्षता प्रभावित हो जाए। विभाग द्वारा सरकारी शब्दावली में दिया गया यह जवाब स्पष्ट करता है कि नियमों के टकराव में आम आदमी को दिए गए इस सशक्त अधिकार को क्षीण बनाया जा रहा है।

विभाग करते हैं मनमानी

सूचना का अधिकार अधिनियम -2005 में यह स्पष्ट है कि आवेदक द्वारा मांगी गई सूचना 30 दिनों के अंदर देनी होगी। इस अवधि में ही विभाग आवेदक से ज्यादा सूचना व पेपर व्यय के लिए धन की मांग कर सकता है। 30 दिन की अवधि पूरी होने के बाद आवेदक को नि:शुल्क सूचनाएं उपलब्ध करानी होगी। लेकिन नियमों को ताक पर रखकर कई विभाग महीना बीत जाने के बाद भी आवेदक से शुल्क की मांग करते हैं। मझवां ब्लाक के गोधना निवासी अखिलेश सिंह से दस हजार व हलिया के आवेदक से 65 हजार रुपये मांगने के ताजा मामले इसके उदाहरण हैं।

विभागों में नहीं बने पटल

एक तरफ सरकार यह दावा करती है कि हर विभाग में एक जनसूचना अधिकारी का पद सृजित है जो आवेदकों के प्रार्थना पत्र प्राप्त करके तय समय में सूचनाएं उपलब्ध कराना सुनिश्चित करेगा। लेकिन जनपद में कम ही विभाग हैं जो आवेदक से सीधे आवेदन लेते हों। आवेदकों से डाक द्वारा सूचना मांगने के लिए कहा जाता है जबकि इसे हाथों-हाथ रिसीव कराया जा सकता है। पुलिस अधीक्षक कार्यालय में भी आवेदक हर टेबल तक पहुंचा लेकिन आवेदन नहीं लिया गया, अंत में डाक से भेजना पड़ा।


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