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भारत छोड़ो आंदोलन के पर्व पर लगे लाखों पौधे, भूमि पर नहीं

जिले ही नहीं पूरे प्रदेश में विशेष पर्वो पर पौधरोपण करने का कार्य किया जाता रहा जिससे जिला हराभरा रहे। लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पा रहा हैं। इसकी मुख्य वजह कागजों पर काम कर देना भी माना जा रहा हैं। खानापूर्ति तरीके से किए जाने वाले कार्य के कारण वादिया

By JagranEdited By: Published: Wed, 01 Jul 2020 08:47 PM (IST)Updated: Wed, 01 Jul 2020 08:47 PM (IST)
भारत छोड़ो आंदोलन के पर्व पर लगे लाखों पौधे, भूमि पर नहीं
भारत छोड़ो आंदोलन के पर्व पर लगे लाखों पौधे, भूमि पर नहीं

जागरण संवाददाता, मीरजापुर : जिले ही नहीं, पूरे प्रदेश में विशेष पर्वों पर पौधारोपण का कार्य किया जाता रहा जिससे हर हिस्से में हरियाली रहे, लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पा रहा हैं। इसकी मुख्य वजह पौधारोपण ज्यादातार कागजों पर ही किए जाने की बात सामने आ रही है। खानापूर्ति तरीके से किए जाने वाले कार्य के कारण वादियां हरी-भरी होने की बजाय पहले से और वीरान होती जा रही हैं। तेजी से जंगलों में हो रहे कटान के चलते औषधि पेड़ों की कमी होती जा रही है। यही कारण है कि आज भी पहले की तरह ही जंगल खानाबदोश की तरह उजाड़ लग रहा है। जो कुछ पौधे बचे भी हैं, उसको भी खनन व भू-माफिया उजाड़ने में लगे हुए हैं।

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भारत छोड़ो आंदोलन के 77वीं वर्षगांठ के पर्व नौ अगस्त 2019 को प्रदेशभर में 22 करोड़ पौधरोपण किया गया था। इसमें लगभग 50 लाख पौधे जिले में भी लगाए गए थे। इसके लिए प्रशासन, विकास विभाग, पंचायती राज विभाग व वन विभाग, स्वास्थ्य, बेसिक, माध्यमिक, महाविद्यालय समेत समस्त विभाग को लगाया गया था। पौधे लगाने की कार्रवाई भी युद्धस्तर पर की गई, लेकिन परिणाम कुछ खास नहीं निकला। इन पौधों का समय-समय पर रखरखाव न होने के कारण कुछ दिन बाद ही सूख गए। यही नहीं, सबसे बड़ी बात यह रही कि शासन ने महात्मा गांधी के 150वीं वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए उनके पसंद के पौधे नीम, आम, साल, सहजन, बरगद, मौलश्री आदि को लगाने का निर्देश दिया था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। अधिकांश जंगली पेड़ों को लगाए गए जो घटिया किस्म के थे। पौधों की गिनती कराने के लिए पेड़ की डालिया तक तोड़कर लगा दी गई जिससे वे कुछ दिन बाद ही सूख गई। पौधरोपण के लिए मजदूरों से लेकर पंचायती व विकास विभाग की भारी भरकम टीम लगाई थी। पौधरोपण पर लगभग 25 लाख रुपये का खर्च भी आया था। आज जिले में उस समय के कितने पौधे हैं, यह विभाग नहीं बता पा रहा है। सड़कों के किनारे से काटे गए हजारों फलदार पौधे, लगाए एक भी नहीं

सड़कों से गुजरने वाले राहगीरों को गर्मी के दिनों में छाया के लिए पूर्व में पौधे लगाए गए थे। ये पौधे लोगों को छाया देने के साथ साथ फल भी देने का काम करते थे जिससे लोगों को रोजी-रोटी मिलती थी। आम जनता को मौसम आने पर ताजे फल भी मिल जाते थे, लेकिन जब से सड़क चौड़ीकरण करने का कार्य तेज हुआ तो पेड़ों की कटाई भी तेजी से हुई। जिस तेजी से पेड़ काटे गए उतनी तेजी से पौधे नहीं लगाए गए। यही कारण है कि आज वे सड़के वीरान हैं। दूर-दूर तक कही छांव नहीं मिलती हैं। राहगीर धूप से बचने के लिए कई किमी छाये की तलाश में चलता रहता है। यहां लगाए गए पौधे

मड़िहान, ड्रमंडगंज, लालगंज, छानबे, अहरौरा, चुनार, जमालपुर, बरकछा रेंज, समस्त ब्लाकों के गांवों, विद्यालयों, डिग्री कालेजों, अस्पतालों, सीएचसी पीएचसी, सावर्जनिक स्थलों आदि स्थानों पर। वर्जन

अभियान के दौरान जहां भी पौधे सूखने की जानकारी दी जाती है वहां पौधे लगाने का काम किया जाता है। जहां तक सड़क किनारे पौधे लगाने की बात है तो इस पर काम चल रहा है। जल्द ही पौधे लगाने का कार्य शुरू किया जाएगा।

- राकेश चौधरी, प्रभागीय वनाधिकारी


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