Move to Jagran APP

थानों की कार्यशैली आज भी निभा रही गंगा-जमुनी तहजीब

आजादी के 70 साल बाद भी जनपद के थानों में हिदी भाषा का इस्तेमाल पूरी तरह से नहीं किया जा रहा है। हिन्दी के साथ -साथ उर्दू और फारसी भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है। इन्हीं भाषाओं में मुकदमें लिखे जा रहे हैं। इसके अलावा अन्य कार्य भी किए जा रहे हैं।। ये भाषाए हमारी आम बोलचाल में भी शामिल है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 27 Nov 2019 06:28 PM (IST)Updated: Wed, 27 Nov 2019 06:28 PM (IST)
थानों की कार्यशैली आज भी निभा रही गंगा-जमुनी तहजीब
थानों की कार्यशैली आज भी निभा रही गंगा-जमुनी तहजीब

प्रशांत यादव, मीरजापुर

loksabha election banner

आजादी के 70 साल बाद भी जनपद के थानों में हिदी भाषा का इस्तेमाल पूरी तरह से नहीं किया जा रहा है। हिन्दी के साथ-साथ उर्दू और फारसी भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है। इन्हीं भाषाओं में मुकदमें लिखे जा रहे हैं। इसके अलावा अन्य कार्य भी किए जा रहे हैं। ये भाषाएं हमारी आम बोलचाल में भी शामिल हैं जिसे कभी खत्म नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इसे समाप्त करने के लिए हमें हिन्दी भाषा गहराइयों से सीखना होगा। लेकिन इन भाषाओं की समझ के लिए थानों पर उर्दू अनुवादक रखे गए हैं ताकि किसी प्रकार की समस्या पैदा नहीं हो।

मुगलों का साम्राज्य समाप्त हो गया है। अंग्रेज भी दो सौ साल देश में राज कर चले गए लेकिन आज भी हमारी प्रथा और अधिकांश कार्य इन्हीं मुगलों व ब्रिटिश राज्य की तर्ज पर चल रहे हैं। बात की जा रही है थानों के कार्याें व मुकदमों में इस्तेमाल किए जाने वाले उर्दू व फारसी शब्दों की, जहां आज भी थानों और चौकियों पर हिदी शब्द का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जा रहा है। विभागीय कार्य हो या मुकदमा लिखने का काम हर क्षेत्र में उर्दू और फारसी शब्द का बखूबी इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके लिए किसी थाने के मुंशी ने प्रशिक्षण नहीं लिया है। उर्दू और फारसी के शब्दों का इस्तेमाल करते हुए मुकदमें लिखने की प्रैक्टिस करते हैं। हालांकि उनकी समस्या का हल निकालने के लिए उर्दू अनुवादक रखे जाते हैं ताकि मुकदमों समेत अन्य कार्य में किसी प्रकार की परेशानी नहीं हो। वर्तमान समय में लगभग 50 प्रतिशत उर्दू व फारसी भाषा का इस्तेमाल किया जाता है। मुकदमों में कुछ शब्द तो उर्दू व फारसी शब्दों में लिखे जाते हैं लेकिन वे हमारी आम बोलचाल की भाषा में प्रसिद्ध होने के कारण हमें अटपटा नहीं लगता और हम भी उसी भाषा को समझते और बोलते भी हैं। इसके चलते न पुलिस को परेशानी होती है न ही आम जनता को इस भाषा को समझाने में कठिनाई होती है, लेकिन सच्चाई यहीं है कि अभी भी देश प्रदेश और जनपदों में इस्तेमाल किए जाने वाले अधिकांश शब्द उर्दू और फारसी के होते हैं।

इनसेट

पुलिस के रोजमर्रा उपयोग में हैं ये शब्द

हस्बतलबिदा- पूछताछ के लिए बुलाना, मुकीम- रुकना, थाना-हाजा- थाने पर उपस्थिति, जुर्म दफा- अपराध धारा, जुदा खाना-अलग से, मसरूका -मुकदमे का गया माल, वाज याफ्ता-मुकदमे में बरामद किया माल, फर्द- स्पेशल दस्तावेज, जामा तलाशी- व्यक्ति की तलाशी, खाना तलाशी-स्थान की तलाशी, जुराइम- अपराध, हस्बजैल-उपरोक्तानुसार, हस्ब कायदा - नियमानुसार, मुर्तिब - तैयार करना, फिकरा - पैराग्राफ, मौतबिरान - गवाह, अदम सबूत- साक्ष्य के अभाव में, अदम वकवा या अदम वकू- जांच के दौरान प्रमाणित होना कि घटना घटित नहीं हुई। फर्द, तहरीर, मजमून, शहादत, फिकरा और मौजा सहित करीब तीन दर्जन से अधिक ऐसे शब्द पुलिस की फाइलों और दैनिक कामकाज में इस्तेमाल किए जाते हैं। उर्दू और फारसी के ये शब्द दशकों से पुलिस की फाइलों में चल रहे हैं, जिनका अर्थ हर कोई नहीं समझ पाता। किसी मामले की एफआईआर हो या मुकदमें की प्रगति रिपोर्ट पुलिस इन्हीं शब्दों का प्रयोग करती है।

-------------

बोलते उर्दू, और समझते भी उर्दू

अक्सर थाने के कामकाज में तहरीर शब्द का इस्तेमाल होता है। इसका मतलब आवेदन या सूचना पत्र होता है। इसके अलावा जांच को पुलिस की आम भाषा में तफ्तीश लिखा जाता है। साथ ही किसी स्थान से लापता व्यक्ति या अन्य सजीव को लाए जाने को दस्तयाब कहा जाता है। इसके अलावा निर्जीव के लिए बरामद शब्द काम में लिया जाता है। पूछताछ के लिए दरियाफ्त शब्द लिखा जाता है। गांव के लिए मौजा शब्द तो गांव के मुखिया के लिए मौजिज शब्द का उपयोग किया जाता है। विवरण के लिए मजमून शब्द का उपयोग किया जाता है। साक्ष्य के लिए अदालत में पेश होने को शहादत कहा जाता है। जबकि किसी मामले में दूसरी बार होने वाले बयान को तितंबा लिखा जाता है।

------------

इन शब्दों में है अंतर

आरोपी का मतलब किसी मामले में दूसरे पक्ष की ओर से जिस पर आरोप लगाए जाते हैं। जबकि इसकी दूसरी कड़ी में आरोप पुलिस जांच में साबित होने पर उक्त व्यक्ति को मुल्जिम लिखा जाता है। इसके बाद आरोप न्यायालय में सिद्ध हो जाने के बाद उक्त व्यक्ति को मुजरिम लिखा जाता है। काफी पहले से पुलिस इस्तेमाल कर रही है।

------------------

वर्जन

थानों में इस्तेमाल किए जा रहे उर्दू और फारसी भाषा हमारी आम बोलचाल में है। इससे कोई परेशानी नहीं होती है फिर भी प्रत्येक थाने में उर्दू अनुवादक रखे गए हैं। -डा. धर्मवीर सिंह पुलिस अधीक्षक


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.