होनहार दिव्यांग को गर मिले मदद तो टाप करे यूपीएससी
छोटी-मोटी शारीरिक दिव्यांगता से ही बड़े-बड़े लोगों के हौंसले पस्त हो जाते हैं। लेकिन इस दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें न तो शारीरिक दिव्यांगता ही रोक पाती है और न ही समाज का मानसिक दबाव ही उनकी राह का रोड़ा बन पाता है। शहर के एक ऐसे ही दिव्यांग युवा संजय कुमार हैं जो शरीर से तो
जागरण संवाददाता, मीरजापुर : छोटी-मोटी शारीरिक दिव्यांगता से ही बड़े-बड़े लोगों के हौसले पस्त हो जाते हैं। लेकिन इस दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें न तो शारीरिक दिव्यांगता ही रोक पाती है और न ही समाज का मानसिक दबाव ही उनकी राह का रोड़ा बन पाता है। शहर के एक ऐसे ही दिव्यांग युवा संजय कुमार हैं जो शरीर से तो 85 फीसद दिव्यांग हैं लेकिन मस्तिष्क से सौ फीसद दुरुस्त। उस पर हौसला ऐसा कि थोड़ी आर्थिक मदद मिले तो आसमान छू लेना भी उनके लिए कम होगा।
केबीपीजी कालेज से एमए तीसरे सेमेस्टर के छात्र संजय कुमार का हौसला देख कोई भी दांतों तले अंगुलियां दबा लेगा। 85 फीसद दिव्यांग संजय एक बार यूपीएससी की परीक्षा दे चुके हैं लेकिन उनका आत्मविश्वास इतना मजबूत है कि वे एक वर्ष की मेहनत में ही यूपीएससी की परीक्षा टाप करने का लक्ष्य बना चुके हैं। शहर कोतवाली क्षेत्र के किशुन प्रसाद की गली निवासी संजय कुमार पुत्र उमेश चंद्र कसेरा की जिदगी इसी आत्मविश्वास की डोर के सहारे बुलंदियों तक पहुंचना का माद्दा रखती है। संजय ने बताया कि वे हाईस्कूल से लेकर स्नातक तक द्वितीय श्रेणी में अच्छे नंबरों से पास हुए हैं। इस समय वे केबीपीजी कालेज में एमए तृतीय वर्ष के छात्र हैं और उनकी तमन्ना है कि वे एक दिन आइएएस अधिकारी बनकर न सिर्फ अपने परिवार का सहारा बनेंगे बल्कि समाज व देश के लिए भी कुछ बेहतर करेंगे। संजय ने बताया कि अब तक उन्हें समाजसेवियों व सरकार की मदद मिलती रही है जिससे वे आगे बढ़ रहे हैं लेकिन यूपीएससी की परीक्षा पास करने के लिए अच्छे कोचिग संस्थान में दाखिला जरुरी है। उन्होंने बताया कि यदि कोई व्यक्ति, संस्था, सरकार उनकी मदद कर कोचिग संस्थान में दाखिला करा दे तो एक साल में ही वे यूपीएससी टाप करके दिखा सकते हैं।
एम्स में चल रहा इलाज
85 फीसद तक दिव्यांग संजय कुमार ने बताया कि उनका एक वाल्व खराब हो चुका है जिसका इलाज दिल्ली के एम्स में चल रहा है। वे चलने में अक्षम हैं और ट्राइसाइकिल ही सहारा है लेकिन यह सब कमियां उनकी पढ़ाई, उनके लक्ष्य को नहीं डिगा पा रहीं और लगातार कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें बैटरी से चलने वाले ट्राइसाइकिल की जरुरत है लेकिन यहां के सरकारी विभाग से यह ट्राइसाइकिल नहीं दी जाती।