Year Ender 2020: सियासत ने ढूंढा आपदा में अवसर, कोरोना काल में सभी सियासी दलों ने जनता की नब्ज टटोली
Year Ender 2020 कोरोना काल में सभी सियासी दलों ने जनता की नब्ज पकड़ने के लिए पूरा जोर लगाया। आपदा में अवसर का मंत्र भले ही भाजपा ने दिया लेकिन इस मंत्र को हर राजनीतिक पार्टी ने आत्मसात किया।
मेरठ, जेएनएन। राजनीति राज मतलब शासन और नीति यानी उचित समय और उचित स्थान पर उचित कार्य करने की कला। जो सियासी दल या व्यक्ति नीति को समझ लेता है, उसको शासन करने में कभी मुश्किल नहीं आती। कोरोना काल में सभी सियासी दलों ने जनता की नब्ज पकड़ने के लिए पूरा जोर लगाया। आपदा में अवसर का मंत्र भले ही भाजपा ने दिया, लेकिन इस मंत्र को हर राजनीतिक पार्टी ने आत्मसात किया। महामारी के समय भी कुछ दल सक्रिय रहे, तो कुछ की तंद्रा नहीं टूटी। सबकुछ थम गया, लेकिन राजनीति न कभी थमी है और न थमेगी। सत्ता ने जनहित के कार्य करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, तो विपक्ष ने इन कार्यों की आलोचना-विवेचना करने में पूरा जोर लगाया। सालभर यही रस्साकशी चलती रही...
भाजपा, 'पार्टी विद डिफरेंस
केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकारें हैं। इसलिए सबसे पहले बात इसी दल की। जनपद में भी भाजपा का वर्चस्व है, यह कहना गलत नहीं होगा। मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट से लेकर इस क्षेत्र की अधिकतर विधानसभा सीटों पर इसी दल का कब्जा है। कोरोना काल में भाजपा ने एक बार फिर साबित किया कि इसके जनता की पहली पसंद बनने के पीछे कई कारण हैं। पार्टी साल में कभी निष्क्रिय नहीं दिखी। शिक्षक-स्नातक एमएलसी चुनाव में पहली बार प्रत्याशी उतारना हो या फिर संगठन स्तर पर परिवर्तन। हर स्तर पर ऊर्जा का प्रवाह बना रहा।
एमएलसी चुनाव में दिखाया दम
भाजपा ने पहली बार एमएलसी चुनाव में प्रत्याशी उतारे तो इस मैदान के पुराने खिलाडिय़ों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। जैसा कि हर उम्मीदवार के साथ होता है, पुराने महारथियों को भी अपनी जीत पक्की दिख रही थी। लेकिन नवंबर-दिसंबर में चुनाव नजदीक आते-आते इन महारथियों के माथे की सिलवटों ने सारी तस्वीर साफ कर दी। नतीजे आए तो कमल ही कमल खिला दिखा। शिक्षक सीट पर भाजपा प्रत्याशी श्रीचंद शर्मा ने ओमप्रकाश शर्मा की 48 साल पुरानी बादशाहत तोड़ दी। उन्होंने आठ बार के एमएलसी ओमप्रकाश को हराकर साबित कर दिया कि संगठन ने इस चुनाव में कितनी ताकत झोंक रखी थी। श्रीचंद ने जीत का श्रेय मेरठ-सहारनपुर मंडल के शिक्षकों और भाजपा कार्यकर्ताओं को दिया। स्नातक सीट पर भी भाजपा ने 24 साल का वर्चस्व तोड़ा। भाजपा प्रत्याशी दिनेश कुमार गोयल ने स्नातक सीट पर जीत दर्ज कर नया इतिहास लिख दिया। उन्होंने चार बार के लगातार विजेता रहे व उप्र माध्यमिक शिक्षक संघ (शर्मा गुट) के प्रांतीय उपाध्यक्ष हेम सिंह पुंडीर को हराकर यह जीत दर्ज की। माना जाता है कि लाकडाउन के दौरान ही भाजपा ने एमएलसी चुनाव की पूरी रणनीति बना ली थी।
बुलंदशहर सदर सीट पर उपचुनाव
बुलंदशहर सदर विधानसभा सीट पर भाजपा का कब्जा बरकरार रहा। भाजपा प्रत्याशी ने इस सीट पर 20,962 मतों से विजय हासिल की। दूसरे स्थान पर बसपा के प्रत्याशी रहे। भाजपा विधायक वीरेंद्र सिंह सिरोही के निधन के बाद यह सीट खाली हुई थी। भाजपा ने दिवंगत विधायक की पत्नी उषा सिरोही पर भरोसा जताते हुए उन्हें मैदान में उतारा। उनके सामने बसपा ने इसी सीट पर पूर्व विधायक दिवंगत हाजी अलीम के छोटे भाई और बुलंदशहर ब्लाक प्रमुख हाजी यूनुस को प्रत्याशी बनाया। रालोद-सपा गठबंधन से प्रवीण कुमार सिंह प्रत्याशी बनाए गए और कांग्रेस ने सुशील चौधरी पर दांव लगाया था। पहली बार चुनाव मैदान में उतरी आजाद समाज पार्टी ने मोहम्मद यामीन पर दांव खेला। यामीन ने उम्मीदों पर खरा उतरते हुए तीसरा स्थान प्राप्त किया।
संगठन को कसा
भाजपा लगातार संगठन को कसती रही। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पावरहाउस कहे जाने वाले मेरठ को लेकर पार्टी बहुत संजीदा रही। प्रदेश संगठन में दो सह संगठन मंत्री बनाए गए। एक को मेरठ और दूसरे को बनारस कार्यक्षेत्र दिया गया। मोहित बेनीवाल क्षेत्रीय अध्यक्ष बनाए गए।
मुख्यमंत्री आए, किया ऊर्जा का संचार
13 दिसंबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मेरठ आए। मुख्यमंत्री ने सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय में किसानों व छात्रों को संबोधित किया। मेरठ में 325 करोड़ की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। सीएम योगी संबोधन के दौरान अपराधियों को कड़ा संदेश देना नहीं भूले। वहीं, योगी पहली बार हरमन सिटी स्थित पार्टी कार्यालय पर भी पहुंचे। उधर, इससे पहले प्रभारी मंत्री श्रीकांत शर्मा की लगातार मेरठ पर नजर बनी रही। साल बीतते-बीतते केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी किसानों के बीच पहुंचीं और उन्हें कृषि कानूनों के बारे में जागरूक किया।
नहीं मनाई होली
पार्टी ने इस बार कोरोना की वजह से होली नहीं मनाई। कोरोना से भाजपा महानगर अध्यक्ष के करीबी की मौत से पार्टी को बड़ा आघात पहुंचा। पार्टी के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं की कोविड जांच कराई गई। नेताओं ने जनता से सार्वजनिक रूप से मिलना स्थगित किया और संवाद का वर्चुअल माध्यम अपनाया।
बसपा रही 'संक्रमणग्रस्त
बसपा कोरोना काल में संक्रमणग्रस्त रही। पूरे साल कोई रैली, धरना-प्रदर्शन यहां तक कि ज्ञापन भी नहीं दिया। हालांकि प्रवासी मजदूरों व अन्य जरूरतमंदों को खाना आदि व अन्य मदद जरूर की। पार्टी आंतरिक स्तर पर ही बैठक-चर्चा में मशगूल रही। इस बीच संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए नवंबर में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को बदल दिया। प्रदेश अध्यक्ष मुनकाद अली हटाए गए। उप्र विस उपचुनाव में खराब प्रदर्शन का खामियाजा मुनकाद को भुगतना पड़ा। बसपा अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भीम राजभर को अपनी पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई का नया अध्यक्ष बनाया। उधर, जिलाध्यक्ष मोहित जाटव बनाए गए।
सपा करती रही सत्ता से सवाल
समाजवादी पार्टी ने सालभर सत्ता से सवाल कर-कर के विपक्ष की पूरी जिम्मेदारी निभाई। वहीं, लाकडाउन के दौरान उसके कार्यकर्ता जगह-जगह जनता की सेवा में लगे रहे। चाहे वे प्रवासी मजदूर हों या फिर अन्य जरूरतमंद। सपा सभी तक पहुंची और खान वे अन्य जरूरत का सामान उपलब्ध कराया। सपा नेता अतुल प्रधान भाजपा नेताओं की आंखों की किरकिरी बने रहे। सरधना क्षेत्र में खाद्य सामग्री बंटवाने पर उन पर लाकडाउन उल्लंघन और महामारी एक्ट में मुकदमे दर्ज हुए। प्रवासी मजदूरों की बदहाली का मुद्दा हो या फिर कृषि कानूनों का विरोध। सपा के स्वर हमेशा बुलंद रहे। कृषि कानूनों के विरोध पर जिलाध्यक्ष राजपाल सिंह समेत कई नेता और कार्यकर्ता गिरफ्तार किए गए। दिसंबर में मुख्यमंत्री के आगमन पर भी सपा के कई नेता नजरबंद कर दिए गए। इससे पहले लाकडाउन के बाद सपा ने राजपाल सिंह को जिलाध्यक्ष घोषित किया। हालांकि महानगर अध्यक्ष अब तक तय नहीं कर पाई।
कांग्रेस व अन्य दलों ने 'दर्ज कराई उपस्थिति
कांग्रेस पार्टी ने कोरोना काल में जनपद में बराबर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। लाकडाउन के दौरान पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू गिरफ्तार हुए तो जिले में भी विरोध स्वरूप लल्लू रसोई शुरू की गई। इसमें खाना बनाकर श्रमिकों और अन्य जरूरतमंदों को उपलब्ध कराया गया। कृषि कानूनों को लेकर भी पार्टी मोर्चा लिया। पार्टी जिलाध्यक्ष अवनीश काजला समेत अन्य वरिष्ठ नेता व कार्यकर्ता नजरबंद किए गए। गिरफ्तारी दी गई। इससे पहले अवनीश काजला को जिलाध्यक्ष पद से हटाकर प्रदेश सचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। हालांकि नया जिलाध्यक्ष घोषित न हो पाने के कारण यह जिम्मेदारी भी उन पर बनी हुई है। उधर, अन्य दलों में राष्ट्रीय लोकदल, वाम दल और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी भी सत्ता की नीतियों का विरोध करते रहे।