मंजिल की जुस्तजू : तकनीक की कड़ियों से जुड़कर प्रवासी कामगार आपस में सुझा रहे वैकल्पिक रास्ते
कामगार अब वाट्सअप से जुड़कर हर समस्या का समाधान कर रहे है। वाट्सअप पर एक ग्रुप के माध्यम से आपस में घर जाने से लेकर पुलिस की सुचना तक सभी जानकारियां शेयर कर रहे हैं।
मेरठ, [सुशील कुमार]। यूं तो कोरोना का भी अंत होगा और लॉकडाउन से भी पार पाएंगे लेकिन विपदा काल की ये तस्वीरें ताउम्र जेहन में चलचित्र की भांति उथल-पुथल मचाती रहेंगी। खासतौर पर मजदूर पेशा और रोजाना खाने-कमाने वालों के लिए तो ये बातें अगली पीढिय़ों के लिए किस्सागोई सी बन जाएंगी। जहां-तहां फंसे तमाम कामगार अपने घर-गांव पहुंच चुके हैं। कुछ निकलने की जद्दोजहद में हैं। वे मेहनत से खाते- कमाते हैं, कभी खैरात के भरोसे नहीं रहते। लेकिन इस वक्त पैसे का अभाव है और संसाधनों का टोटा..। प्रशासन से अपेक्षित सहयोग नहीं मिला तो छत्तीसगढ़ के कामगारों ने तकनीक को सामाजिक नजदीकी का जरिया बना लिया। वाट्सएप ग्रुप बनाकर एक दूसरे को जोड़ा, ताकि घर पहुंचने का कोई रास्ता निकल सके, किसी को कोई उपाय सूझ जाए। यह जुड़ाव तकनीक से ही संभव हो सका।
टीपीनगर थाने के सुशांत सिटी के टंकी पार्क क्षेत्र में रहने वाले गेंदाराम, रमेश साहू, मिथिलेश, ओंकार साहू, हेमलता गांव पेंडरी थाना धामड़ा जनपद दुर्ग (छत्तीसगढ़) के निवासी हैं। सभी लोग चार साल पहले काम की तलाश में मेरठ आए थे। ठेकेदार के साथ कई बिल्डिंग बनवा चुके। लॉकडाउन में काम धंधा बंद हुआ तो घर लौटने के सिवा कोई चारा नहीं बचा। गेंदाराम ने इसके लिए थाने में अपना और साथियों का रजिस्ट्रेशन कराया, पर कोई मदद नहीं मिली। गेंदाराम निरक्षर हैं, बावजूद उन्होंने तकनीक का सहारा लिया।
ग्रुप में 42 कामगार जुड़े
वाट्सएप ग्रुप बनाकर जिले में रहने वाले छत्तीसगढ़ के सभी कामगारों को इसमें जोड़ा। फिलहाल ग्रुप में 42 कामगार जुड़े हैं। ग्रुप में तमाम जानकारियां शेयर की जा रही हैं। मसलन, घर पहुंचने की वैकल्पिक व्यवस्था, निजी खर्चे पर बस हायर करना आदि-आदि। सभी अपनी राय भी दे रहे हैं। गेंदाराम बताते हैं, प्रशासन ने उन्हें खुद की बस किराये पर करने का ऑफर भी दिया था लेकिन सब मिलकर भी इतनी रकम नहीं जुटा सकते, लिहाजा प्रशासन के बुलावे और इमदाद का ही इंतजार कर रहे हैं।
22 हजार बंगाली, घर जाना चाहते हैं 22 सौ
मेरठ में बंगाल के कारीगरों का बड़ा समूह रहता है। देहलीगेट क्षेत्र में 22 हजार बंगाली कारीगर हैं, जिनमें 22 सौ घर जाना चाहते हैं। थाने में सभी ने रजिस्ट्रेशन कराया है लेकिन अभी मदद नहीं मिल पाई। उन्होंने भी वाट्सएप ग्रुप बनाकर अपने संगी-साथियों को जोड़ लिया। ग्रुप में मैसेज दिया गया कि खुद के खर्च पर जाने वाले तैयार हैं तो बस किराये पर कर ली जाएगी। कुछ लोग तैयार हुए तो छह-छह हजार रुपये एकत्र कर किराये पर बस ली। कुछ लोग घर रवाना हो भी चुके हैं। परतापुर में काम करने वाले बिहार और झारखंड के लोगों ने भी वाट्सएप ग्रुप के जरिए अपने लोगों को जोड़ा है। ऐसे लोगों की संख्या करीब 2500 है।
प्रशासन भेजता है वाट्सएप मैसेज
प्रशासन ने सभी कामगारों के वाट्सएप नंबर लिए हुए हैं। वाट्सएप ग्रुपों से जुड़े प्रमुख लोगों को थानों से आवश्यक सूचना दे दी जाती है, जिसे वे ग्रुप में फारवर्ड कर देते हैं। इससे पता चल जाता है कि बस, ट्रेन कब कहां से मिलेगी अथवा उन्हें कहां पहुंचना है।
इनका कहना है
लॉकडाउन में कामगार भी तकनीक का सहारा लेकर एक दूसरे को जोड़ रहे हैं। उन्होंने ग्रुप बनाकर अपने ठेकेदार भी नियुक्त कर दिए है, जो उन्हें घर पहुंचाने के लिए कागजी औपचारिकताएं पूरी करा रहे हैं। अभी तक लगभग 15 हजार कामगार की जानकारी आई है, जो घर जाना चाहते हैं। ट्रेन और बस से आठ हजार कामगारों को भेजा भी जा चुका है। बचे हुए लोगों को भेजने की तैयारी है।
- अजय साहनी, एसएसपी