पछुआ हवा : घर-घर मच्छर, थर-थर विभाग Meerut News
चुनाव की सियासत और शहर में नेताओं के बदलते रंग पर आधारित यह रिपोर्ट। साथ ही स्वास्थ्य विभाग में सुविधाओं को लेकर तीखा व्यंग कसती यह रिपोर्ट।
[संतोष शुक्ला] मेरठ। हाड़ कंपाने वाली सर्दी में फ्रीज हो गए मच्छरों ने पारा चढ़ते ही फोर जी की गति से उड़ते हुए स्वास्थ्य विभाग को चुनौती दे दी। एक मच्छर से लडऩे में पूरा तंत्र हांफ जाता है। मलेरिया, डेंगू, फाइलेरिया, चिकनगुनिया से लड़ने में कई अधिकारी खुद संक्रमित हो गए। लार्वा नष्ट करने की मशीनों में लार्वा पाए गए। डीएम की कोठी से कमिश्नर के कार्यालय तक लार्वा मिल चुके हैं। इधर, मच्छरों ने छिड़काव में उपयोग किए जाने वाले रसायनों से पार पा लिया, इसीलिए सर्दी में ही मच्छरों ने अलार्म बजाना शुरू कर दिया। अब संचारी रोग नियंत्रण कार्यRम में दस्तक अभियान के तहत आशा वर्कर घर-घर मच्छरों की खोज करेंगी। उन्हें पंफलेट देंगी। निश्चित है कि लोगों के घरों के गमलों, फ्रीज, बर्तनों और एसी में लार्वा मिलेंगे। ये वही वर्ग है, जो मच्छरों के प्रकोप पर विभागों को घेरने पहुंच जाता है।
मारवाड़ी की ट्रिपल जंप, कमल फाउल
महानगर की भगवा सियासत में पतझड़ के नए नजारे हैं। कल तक के तूफानी कमलदत्त शर्मा फाउल होकर रनवे से बाहर हो गए, और कल के अरविंद मारवाड़ी ने सियासी रनवे पर टिपल जंप लगाकर दिग्गजों को भी चौंका दिया। विवादों की रस्सी पर चलते हुए कमल बड़ी मुश्किल से संतुलन साधते रहे। कमल की पैरवी भी कुछ कम नहीं थी, किंतु तकदीर में उम्मीदों की पंखुड़ियों का सूखना ही लिखा था। मारवाड़ी ने सालभर में सियासी नब्ज को बखूबी समझकर हर तीर निशाने पर चलाया। उनकी इस खूबी से नई पीढ़ी सीखेगी भी। पिछले महामंत्री संजय त्रिपाठी खिलाफ हवा में बैकसीट पर पहुंचे तो वहां पुराने मित्र विवेक ने गर्मजोशी से स्वागत किया। महेश बाली और पीयूष शास्त्री के सितारे मुद्दत बाद चमके हैं। कैंट और शहर विस सीटों के लिए नए चेहरों पर महत्वाकांक्षाओं की बदली उमड़ने लगी है। देखें कमल कहां खिलेगा।
सियासत के पिताहम का डोलता सिंहासन
कहते हैं कि सत्तासीन दल सियासत के गियर बाक्स को अपने कब्जे में रखता है। एमएलसी चुनावों में लंबी पारी खेलने वाले मेरठ के दिग्गज राजनीतिज्ञ पंडित ओमप्रकाश शर्मा इस वक्त कड़ी परीक्षा से गुजर रहे हैं। उम्र के साथ विचारधारा भी उम्रदराज हो चली है। भाजपा ने महारथी को घेरने के लिए चक्रव्यूह तैयार किया है। ओमप्रकाश को शिक्षक और स्नातक सीटों पर अजेय माना जाता रहा है, ऐसे में भगवा दल ने संपर्क की सियासत तेज कर दी। मान्यता प्राप्त स्कूलों को भी वोट देने का अधिकार दिलाकर ओमप्रकाश शर्मा के सामने बड़ी खाई बना दी है। पंडितजी ने पारी जरूर लंबी खेली, पर बातें और भी हैं। उनके सामने भारतीय जनता पार्टी ने श्रीचंद शर्मा के रूप में सहज चेहरा उतारा है। भगवा संगठन आक्रामक रणनीति के साथ मैदान में है। कड़ा मुकाबला, किंतु इस जीत से राजनीति की दिशा बदलेगी।
मेरठ के भी अपने मिर्जा गालिब
मिर्जा गालिब अदब की दुनिया के आफताब हैं। शायरी की तमाम नस्लें उनकी रोशनी में फलती-फूलती रही हैं। गालिब की नफासत भरी जिंदगी में दर्द का अफसाना भी खूब रहा। इन दिनों उनकी याद के कई धागे मेरठ के आसमान में अचानक इंद्रधनुष की मानिंद उभर आए हैं। गालिब की शायरी में कायनात को समझ लेने का आत्मबल भी है तो इश्क-ए-हकीकी भी है। गालिब 1857-58 में मेरठ में महफिल लगाना बहुत पंसद करते थे। मेरठ के शायर पापुलर मेरठी इन दिनों गालिब के शेरों में अपने मिसरों को जोड़कर साहित्य में नया रंग भर रहे हैं। गालिब और मैं, नाम से किताब साहित्य प्रेमियों के बीच जल्द उपलब्ध होगी। मेरठी फरमाते हैं कि इसमें गालिब के शेरों को सम्मान बख्शते हुए बीच में नई पंक्तियां जोड़ी गई हैं। इसके जरिए शायर ने हास्य व्यंग्य से समाज को थपथपाने और झकझोरने का प्रयास किया है।