UP Election 2022: कितना प्रभावी रहेगा जाटलैंड की चुनावी पिच पर अमित शाह का मास्टर स्ट्रोक, पढ़ें रिपोर्ट
UP Vidhan Sabha Election 2022 वेस्ट यूपी में भाजपा ने चुनावी रणनीति को और तेज कर दिया है। इसी क्रम में गृहमंत्री अमित शाह नई दिल्ली में आज दो सौ जाटों से मिलेंगे। डा. संजीव बालियान कर सकते हैं टीम की अगुआई रालोद को घेरेंगे।
संतोष शुक्ल, मेरठ। पश्चिमी उप्र की चुनावी पिच पर गृहमंत्री अमित शाह ने डेरा डाल दिया है। कैराना में जनसंपर्क कर जहां पलायन का मुद्दा फिर गरमाया, वहीं अब नई दिल्ली में पश्चिमी उप्र के जाटों से मिलकर चुनावी मास्टर स्ट्रोक लगाएंगे। भाजपा के रणनीतिकार जाटों को साधने की दिशा में इसे बड़ा कदम बता रहे हैं। सिवाल-छपरौली पर रालोद को घेरने में जुटी भाजपा लखनऊ में सत्ता तक पहुंचने की डगर पश्चिम उप्र से तय होती है। किसान आंदोलन से पश्चिम उप्र में भाजपा की चुनौतियां बढ़ीं हैं।
संजीव बालियान की भूमिका
केंद्र सरकार ने भले ही तीनों कृषि कानूनों को वापस ले लिया, लेकिन इस बहाने रालोद ने जाटों के बीच खोई जमीन पाने के लिए लंबा होमवर्क किया। इसकी काट के लिए पार्टी ने केंद्रीय मंत्री डा. संजीव बालियान समेत सभी जाट नेताओं को किसानों के बीच उतारा। जाट राजनीति के लिए नाक का सवाल बन चुकी बागपत की छपरौली और मेरठ की सिवालखास सीट पर रालोद के चुनावी चेहरे को लेकर पार्टी का अंदरुनी आक्रोश सड़क पर आ गया। जाटों के विरोध की आंच चौ. जयंत सिंह तक पहुंची। भाजपा ने इस विरोध को नए सिरे से हवा दे दी। 22 जनवरी को कैराना और मेरठ का दौरा कर चुके गृहमंत्री अमित शाह बुधवार यानी 26 जनवरी को पश्चिम उप्र के दो सौ जाट नेताओं से नई दिल्ली में मुलाकात करेंगे। पश्चिम उप्र में भाजपा का चुनावी गणित बनाने में जुटे रणनीतिकार इस मुलाकात को बेहद अहम मान रहे हैं। इसे जाटों को साधने की दिशा में भाजपा का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है।
कैराना पर शाह का बड़ा प्रयोग
पश्चिम में गठबंधन भाजपा का गणित बिगाडऩे में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। चुनावी रणनीतिकार मानते हैं कि अमित शाह इस हलचल को कई माह पहले भांप चुके थे। इसीलिए 29 अक्टूबर को उन्होंने लखनऊ में कैराना पलायन का मुद्दा उठाकर चुनावी पारा चढ़ा दिया था। इसके बाद आठ नवंबर 2021 को सीएम योगी और 22 जनवरी 2022 को अमित शाह ने कैराना पहुंचकर पलायन पीडि़तों के परिवार से मुलाकात की। उन्होंने किसानों के इर्द गिर्द घूमती पश्चिम उप्र की राजनीति को कैराना के रूप में नया धु्रव दिया।
2014 से बदली जाट राजनीति की दिशा
खेतीबाड़ी बाहुल्य पश्चिम उप्र में जाट मतदाताओं की निर्णायक संख्या है। उनका राजनीतिक रसूख भी अन्य जातियों पर भारी पड़ा है। जाट भावनात्मक रूप से पूर्व प्रधानमंत्री चौ. चरण सिंह से जुडऩे की वजह से रालोद के ज्यादा करीब रहा है, लेकिन 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों से पश्चिमी उप्र का राजनीतिक विज्ञान बदल गया। 2014 के लोकसभा चुनावों से जाटों की बड़ी तादाद भाजपा के साथ चली गई। इसका असर 2015 विस एवं 2019 लोकसभा चुनावों में भी नजर आया। इधर, पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ. अजित सिंह के निधन से सहानुभूति और किसान आंदोलन की लहर पर सवार होकर रालोद ने पंचायत चुनावों में बेहतर प्रदर्शन किया। चौ. जयंत सिंह की राजनीति को भी नई आक्सीजन मिली। उन्होंने सपा के साथ गठबंधन कर पश्चिम की जाट बाहुल्य कई सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारा है, जिसकी घेरेबंदी में अब भाजपा ने मोर्चा खोल दिया है।