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पछुआ हवा: आज की टापर, कल की अफसर बिटिया, कोरोना काल में राहत देती खबर

कोरोना ने समाज के ऊपर जैसे निराशा की एक परत चढ़ा दी है। किंतु जिदंगी का दीया उम्मीदों के तेल पर जलता है। इसी बीच हाईस्कूल और इंटरमीडिएट का रिजल्ट आया तो छात्रों के चहकेे चेहरेेे।

By Taruna TayalEdited By: Published: Mon, 29 Jun 2020 05:02 PM (IST)Updated: Mon, 29 Jun 2020 05:02 PM (IST)
पछुआ हवा: आज की टापर, कल की अफसर बिटिया, कोरोना काल में राहत देती खबर
पछुआ हवा: आज की टापर, कल की अफसर बिटिया, कोरोना काल में राहत देती खबर

मेरठ, [संतोष शुक्ल]। कोरोना ने समाज के ऊपर जैसे निराशा की एक परत चढ़ा दी है। किंतु जिदंगी का दीया उम्मीदों के तेल पर जलता है। इसी बीच हाईस्कूल और इंटरमीडिएट का रिजल्ट आया तो छात्रों के चहकते चेहरों ने उम्मीदों का उजियारा जगा दिया। अंशू अपने मजदूर माता पिता के साथ दिगंबर जैन गल्र्स इंटर कालेज पहुंची उसका आत्मविश्वास देखने लायक था। अंशू ने कालेज टाप किया है, किंतु उसका सफर कहीं आगे तक है। इस टापर के स्वागत में प्रधानाचार्य बाहर निकल आईं। उन्होंने अंशु से हाथ मिलाया और दावे से कहा, तुम एक दिन आइएएस बनोगी। आत्मबल से लबालब अंशु ने थैंक यू मैम कहते हुए मैडम को भरोसा दिया कि उसकी भी मंशा कुछ ऐसी ही है। पास में खड़े अंशू के मां-बाप इस वार्तालाप में छुपी अपार संभावनाओं को सोचकर ही भावुक हो गए। उनकी आंखें ख्वाब कहां देख पाई हैं।

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पश्चिम के क्षितिज पर मेधा का सूरज

पश्चिम उत्तर प्रदेश खेतीबाड़ी, खेलकूद, सैनिकों की बड़ी संख्या और आक्रामक स्वभाव के लिए जाना जाता है, किंतु इससे अलग यहां की प्रतिभाएं आपको चौंका देंगी। हाईस्कूल और इंटर का रिजल्ट आया तो पश्चिम ने प्रदेशभर को हैरान कर दिया। बागपत जैसे छोटे और पिछड़े जिले की दो प्रतिभाओं ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट में प्रदेश में पहला स्थान प्राप्त किया। ये सच है कि सूबे में पढ़ाई का सूरज हमेशा पूरब से उगता हुआ माना गया। किंतु पश्चिम ने इस मिथक को तोड़ दिया है। बनारस धर्म, संगीत और साहित्य का शहर है। प्रयागराज पूरब का आक्सफोर्ड कहा गया, जहां से निकले अधिकारी देशभर में अलग-अलग दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं। लखनऊ ने दो दशक तक बोर्ड की परीक्षाओं में टापर दिया। बाराबंकी और फैजाबाद ने भी चौंकाया, किंतु बागपत ने पूरी तस्वीर बदली है। ये उर्वर मिट्टी से निकले हुए सपूत हैं।

काढ़ा की कुढऩ, डिप्रेशन में अब आयुर्वेद

बाबा रामदेव की कोरोनिल दवा पर मचे घमासान ने आयुर्वेद के सामने नई चुनौती खड़ी कर दी। हजारों साल की विरासत वाला आयुर्वेद अब नई परीक्षा से गुजर रहा है। एलोपैथ एंटीवायरल और वैक्सीन खोज में भटक रहा है। होमियोपैथ के अपने दावे हैं, किंतु आयुर्वेद की दर्जनों औषिधयां प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर कोरोना को नष्ट करने के लिए चर्चा में आ गईं। पतंजलि के दावों के बाद देशभर में उबाल आ गया। वैचारिक दंगल सज गए। एक खेमा बाबा के पक्ष में तो दूसरा विरोध में दहाडऩे लगा। खींचतान में नीम, गिलोय, तुलसी, मुलेठी और लौंग को फिर से अपनी ताकत साबित करनी पड़ रही है। ये सनातन परंपरा की अनदेखी है। बाबा रामदेव से वैचारिक विरोध वाले आयुर्वेचार्यों में भी भारी निराशा है। जिस काढ़ा को प्रधानमंत्री उपयोगी बता चुके हैं, उसे भी कोविड मरीजों को देने से हिचक समझ से परे है।

एक बाइक पर सात, ये कैसी करामात

यातायात के नियमों के परखच्चे कैसे उड़ते हैं, इसके लिए हर ट्रैफिक पुलिस अधिकारी को कम से कम एक बार मेरठ का अनुभव जरूर जुटाना चाहिए। यहां हर दो चौराहों के बीच दर्जनों बाइक सवार यातायात नियमों को चिढ़ाते हुए निकलते हैं। यातायात के तमाम संदेशों को सुनते हुए स्लोगन तो याद हो गए, किंतु उस पर अमल करने की मंशा मन में जाग ही नहीं पाई। एक बाइक पर सात लोगों की सवारी ने सभी को हैरान कर दिया। एक महिला और पांच बच्चों को बाइक पर बिठाकर सर्कस के अंदाज में युवक आगे बढ़ता गया। उधर, से ट्रैक्टर की खुली ट्राली में अनियंत्रित तरीके से भरी लोहे की सरिया पर बैठे दो युवक नियमों को रौंदते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। पुलिस बाइक सवारों के कागजात चेक कर रही थी। कहते हैं ये यातायात सप्ताह के पालन का ट्रेलर भर था।


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