Good News : दो बूंद सरसों के तेल से स्वाइन फ्लू होगा खत्म,जानिए कैसे
आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पुन: कारगर साबित हुई है, तेजी से पांव पसार रहे स्वाइन फ्लू का डर दिनाेंदिन बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में सरसों के तेल की बंदूें रामबाण बन रही हैं।
By Ashu SinghEdited By: Published: Wed, 20 Feb 2019 11:19 AM (IST)Updated: Wed, 20 Feb 2019 11:19 AM (IST)
मेरठ, [जागरण स्पेशल]। अंधेरे में तीर चला रही आधुनिक चिकित्सा पद्धति को आयुर्वेद ने फिर रोशन दिखाई है। सरसों की दो बूंद नाक में डालें और स्वाइन फ्लू का वायरस ढेर। चरक संहिता में वर्णित यह नुस्खा फंगस,बैक्टीरिया और प्रदूषण को भी रोकता है। तमाम मरीजों पर यह प्रयोग रामबाण साबित हुआ।
प्रतिमर्श नस्य विधि से ठीक हुए मरीज
चरक संहिता के तीसरे अध्याय एवं वागभट्ट में 121 प्रकार के ज्वरों का जिक्र है। इसमें वात श्लेष्मिक ज्वर ही आज का स्वाइन फ्लू है। ऐसे मरीजों को मखमल का मास्क पहनने एवं अलग कक्ष में रखने के लिए कहा गया है। आयुर्वेद विशेषज्ञों के मुताबिक नाक में दो-दो बूंद सरसों तेल डालने से बारिक से बारीक कण गले व फेफड़े तक नहीं पहुंच पाते हैं। इसे प्रतिमर्श नस्य कहते हैं,जिसमें तिल के तेल का भी प्रयोग कर सकते हैं। अगर कोई तेल नहीं डाल सकता तो वह नाक में उसकी कोटिंग कर सकता है।
पीएम-10 से भी बचाव
अंगुली में थोड़ा सा तेल लगाकर नाक में घुमाने से वायरस और फंगस इसमें चिपक जाएंगे। तेल में गाढ़ापन एवं एंटीसेप्टिक गुणधर्म होने से पीएम-10 के कण से लेकर कोई भी प्रदूषण इसमें फंस जाता है। बता दें कि इन्हीं गुणधर्म की वजह से आचार को खराब होने से बचाने के लिए सरसों का तेल डाला जाता है। यह म्यूकोसा के अंदर गीलापन रखता है,जिससे सूंघने की क्षमता बनी रहती है। आंखों की रोशनी भी बढ़ती है।
नाक का ताप 33 डिग्री होने से बढ़ता है वायरस
माइक्रोबायोलोजिस्ट डा.अमित गर्ग कहते हैं कि स्वाइन फ्लू का वायरस ठंड में संक्रमित होता है। बारिश,गर्मी एवं आर्द्रता की वजह से फरवरी के तीसरे सप्ताह में रोजाना औसतन 15 नए मरीज मिल रहे हैं। इधर,आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में नाक के जरिए इलाज का विधान है। नाक से लेकर गले तक एच1एन1 वायरस करीब 48 घंटे तक रुकता है,जिस दौरान इसे खत्म किया जा सकता है।
20 नए मरीज मिले,आंकड़ा 234 तक पहुंचा
मेरठ में प्रदेश के सर्वाधिक मरीज हैं। नई दिल्ली के नजदीक होने से रोजाना आवाजाही से वायरस संक्रमित हो रहा है। मेडिकल कॉलेज की लैब ने मंगलवार को 40 सेंपलों की जांच की,जिसमें 20 में एच1एन1 की पुष्टि हुई। जनवरी से अब तक 896 सैंपलों में 342 में बीमारी मिली है। इसमें मेरठ के 234 और अन्य पड़ोसी जिलों के 108 मरीज हैं।
इनका कहना है
आयुर्वेद में 121 प्रकार के ज्वर वर्णित हैं। स्वाइन फ्लू से मिलते जुलते लक्षणों वाले मरीज के मूत्र को विशेष विलयन में जांचने का सूत्र बताया गया है। तुलसी पत्र,नीम,गिलोय एवं पीपल की पांच-पांच पत्तियों का काढ़ा बनाकर पिएं व संजीवनी वटी भी लें।
-डा.ब्रजभूषण शर्मा,वरिष्ठ आयुर्वेदाचार्य
आयुर्वेद में प्रतिमर्श नस्य का विधान स्वाइन फ्लू के वायरस को गले में जाने ही नहीं देगा। ऐसे में फेफड़ा सुरक्षित रहने से निमोनिया नहीं होता। नाक में दो बूंद तेल डालने का यह नुस्खा आसान और सटीक है। किंतु सरसों का तेल शुद्ध हो बेहतर। वनस्पा और वासा का काढ़ा भी कारगर है।
-डा.चंद्रचूड़ मिश्र,अस्सिटेंट.प्रोफेसर,महावीर आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज
प्रतिमर्श नस्य विधि से ठीक हुए मरीज
चरक संहिता के तीसरे अध्याय एवं वागभट्ट में 121 प्रकार के ज्वरों का जिक्र है। इसमें वात श्लेष्मिक ज्वर ही आज का स्वाइन फ्लू है। ऐसे मरीजों को मखमल का मास्क पहनने एवं अलग कक्ष में रखने के लिए कहा गया है। आयुर्वेद विशेषज्ञों के मुताबिक नाक में दो-दो बूंद सरसों तेल डालने से बारिक से बारीक कण गले व फेफड़े तक नहीं पहुंच पाते हैं। इसे प्रतिमर्श नस्य कहते हैं,जिसमें तिल के तेल का भी प्रयोग कर सकते हैं। अगर कोई तेल नहीं डाल सकता तो वह नाक में उसकी कोटिंग कर सकता है।
पीएम-10 से भी बचाव
अंगुली में थोड़ा सा तेल लगाकर नाक में घुमाने से वायरस और फंगस इसमें चिपक जाएंगे। तेल में गाढ़ापन एवं एंटीसेप्टिक गुणधर्म होने से पीएम-10 के कण से लेकर कोई भी प्रदूषण इसमें फंस जाता है। बता दें कि इन्हीं गुणधर्म की वजह से आचार को खराब होने से बचाने के लिए सरसों का तेल डाला जाता है। यह म्यूकोसा के अंदर गीलापन रखता है,जिससे सूंघने की क्षमता बनी रहती है। आंखों की रोशनी भी बढ़ती है।
नाक का ताप 33 डिग्री होने से बढ़ता है वायरस
माइक्रोबायोलोजिस्ट डा.अमित गर्ग कहते हैं कि स्वाइन फ्लू का वायरस ठंड में संक्रमित होता है। बारिश,गर्मी एवं आर्द्रता की वजह से फरवरी के तीसरे सप्ताह में रोजाना औसतन 15 नए मरीज मिल रहे हैं। इधर,आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में नाक के जरिए इलाज का विधान है। नाक से लेकर गले तक एच1एन1 वायरस करीब 48 घंटे तक रुकता है,जिस दौरान इसे खत्म किया जा सकता है।
20 नए मरीज मिले,आंकड़ा 234 तक पहुंचा
मेरठ में प्रदेश के सर्वाधिक मरीज हैं। नई दिल्ली के नजदीक होने से रोजाना आवाजाही से वायरस संक्रमित हो रहा है। मेडिकल कॉलेज की लैब ने मंगलवार को 40 सेंपलों की जांच की,जिसमें 20 में एच1एन1 की पुष्टि हुई। जनवरी से अब तक 896 सैंपलों में 342 में बीमारी मिली है। इसमें मेरठ के 234 और अन्य पड़ोसी जिलों के 108 मरीज हैं।
इनका कहना है
आयुर्वेद में 121 प्रकार के ज्वर वर्णित हैं। स्वाइन फ्लू से मिलते जुलते लक्षणों वाले मरीज के मूत्र को विशेष विलयन में जांचने का सूत्र बताया गया है। तुलसी पत्र,नीम,गिलोय एवं पीपल की पांच-पांच पत्तियों का काढ़ा बनाकर पिएं व संजीवनी वटी भी लें।
-डा.ब्रजभूषण शर्मा,वरिष्ठ आयुर्वेदाचार्य
आयुर्वेद में प्रतिमर्श नस्य का विधान स्वाइन फ्लू के वायरस को गले में जाने ही नहीं देगा। ऐसे में फेफड़ा सुरक्षित रहने से निमोनिया नहीं होता। नाक में दो बूंद तेल डालने का यह नुस्खा आसान और सटीक है। किंतु सरसों का तेल शुद्ध हो बेहतर। वनस्पा और वासा का काढ़ा भी कारगर है।
-डा.चंद्रचूड़ मिश्र,अस्सिटेंट.प्रोफेसर,महावीर आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज
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