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Tokyo Olympics: चौथी बार ओलिंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करेंगी सीमा अंतिल, पढ़िए इनके संघर्ष की कहानी

मेरठ की बहू सीमा अंतिल चौथी बार ओलिंपिक गेम्स में देश का प्रतिनिधित्व करने जा रही हैं। इससे पहले सीमा वर्ष 2004 के एथेंस ओलिंपिक 2012 के लंदन ओलिंपिक और 2016 के रियो ओलिंपिक में भी शिरकत कर चुकी हैं।

By Himanshu DwivediEdited By: Published: Mon, 12 Jul 2021 01:05 PM (IST)Updated: Mon, 12 Jul 2021 04:50 PM (IST)
Tokyo Olympics: चौथी बार ओलिंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करेंगी सीमा अंतिल, पढ़िए इनके संघर्ष की कहानी
सीमा अंतिल देश का चौथी बार प्रतिनिधित्‍व करने जा रही हैं।

(अमित तिवारी) मेरठ। Tokyo Olympics: चक्का फेंक में नए मीट रिकार्ड के साथ टोक्यो ओलिंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली मेरठ की बहू सीमा अंतिल चौथी बार ओलिंपिक गेम्स में देश का प्रतिनिधित्व करने जा रही हैं। इससे पहले सीमा वर्ष 2004 के एथेंस ओलिंपिक, 2012 के लंदन ओलिंपिक और 2016 के रियो ओलिंपिक में भी शिरकत कर चुकी हैं। फिलहाल मास्को में प्रशिक्षण ले रहीं सीमा के अनुसार इस बार उनके साथ पिछले तीन साल का निरंतर प्रशिक्षण है। पटियाला के प्रदर्शन के बाद भी उनके पास दो से तीन मीटर की अतिरिक्त थ्रो है जो उन्हें मेडल पोडियम तक पहुंचाने में सक्षम होगा।

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कोच बहादुर सिंह ने किया दोबारा खड़ा

सीमा ने बताया कि 2010 कामनवेल्थ गेम्स के पहले वह खेल छोड़ने वाली थीं। उसी दौरान भारतीय एथलेटिक्स टीम के चीफ कोच बहादुर सिंह ने दोबारा खेल में खड़ा किया। उसी दौरान मित्तल चैंपियन ट्रस्ट थी जो खिलाड़ियों की मदद कर आगे बढ़ाया करती थी। ट्रस्ट की सीईओ मनीषा मल्होत्र और संचालक रामधन यादव ने मदद की। कामनवेल्थ गेम्स 2010 में पदक जीतने के बाद ट्रस्ट ने सीमा को प्रशिक्षण के लिए अमेरिका भेजा और यहां से उनके खेल करियर का नया दौर शुरू हो गया। वर्तमान में सीमा की मैनेजर बेला बिरकोवा हैं।

पहली बार खुद को आजमाने के लिए फेंका था डिस्कस

सीमा के अनुसार स्टेडियम में पहली बार डिस्कस देखा और आजमाने के लिए फेंका तो 22 मीटर की दूरी तय की। यह देख नार्दर्न रेलवे में कार्यरत सीमा के करीबी पवन कुमार ने सीमा को डिस्कस के लिए प्रेरित किया। पहले तो सीमा हंसी लेकिन फिर डिस्कस में भविष्य तलाशने को मेहनत शुरू की। वर्ष 1995 में अंडर-14 जूनियर नेशनल में सीमा ने 28.28 मीटर की दूरी नाप कर नए रिकार्ड के साथ स्वर्ण पदक जीता और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।

बड़े भाइयों से मिली प्रेरणा

सीमा के परिवार में अधिकतर लोग पेशे से वकील हैं। बड़े भाई आनंद पाल अंतरराष्ट्रीय स्तर के पहलवान रहे हैं। दूसरे भाई अमित पाल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हाकी में स्वर्ण पदक जीते थे और उनका चयन साई में हुआ। दोनों भाइयों की उपलब्धि देखकर ही सीमा ने खेल को चुना और स्टेडियम जाना शुरू किया। पानीपत जिले के खेवड़ा गांव की रहने वाली सीमा ने स्कूल नेशनल में लंबी कूद, शाटपुट और ऊंची कूद में पदक जीते थे। उन्हें जो स्पर्धा पसंद आती वह उसी में खेलतीं और अच्छा प्रदर्शन करतीं। खेल में रुचि देख सीमा के पिता विजयपाल और माता पार्वती ने भी उन्हें खेल में आगे बढ़ने को प्रेरित किया।

दौड़ हाथ से, थ्रो होती है पांव से

सीमा का कहना है कि वर्तमान खिलाड़ी समझते हैं कि वजन बढ़ाने से ही अच्छी थ्रो हो सकती है। जबकि यह सोच बिलकुल गलत है। थ्रो करने की तकनीक सही होनी चाहिए। यह ध्यान रखें कि दौड़ हाथों से और थ्रो पांव से की जाती है। इसलिए अपने शरीर को जिमनास्ट की तरह फिट रखना चाहिए। तभी बेहतरीन थ्रो कर सकते हैं।

..तो और बेहतर होता प्रदर्शन

लगातार सफर की थकान के बाद भी सीमा ने पटियाला में संपन्न हुई 60वीं इंटर-स्टेट नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 63.72 मीटर की दूरी तय की। सीमा का कहना है कि प्रतियोगिता के ठीक पहले वह 19 जून को मास्को से 1400 किमी दूरी तय कर बेलारूस पहुंची। वहां 25 जून को इवेंट खत्म हुआ। वहां से पटियाला पहुंची। एक दिन बाद ही प्रतिभाग किया।

रोजाना छह से आठ घंटे करती हैं ट्रेनिंग

मास्को में ट्रेनिंग कर रही सीमा ने बताया कि वह हर दिन सुबह सात बजे उठती हैं। एक घंटे योगाभ्यास के बाद नौ बजे से दोपहर एक बजे तक थ्रो का प्रशिक्षण करती हैं। इसके बाद शाम को पांच बजे से ट्रेनिंग शुरू होती है। न्यूट्रीशन का आनलाइन कोर्स कर अपने खान-पान का ख्याल रखती हैं।

शादी के पहले भी उप्र से खेल चुकी हैं सीमा

सीमा ने बताया कि मेरठ में शादी होने के बाद से वह यूपी से खेल रही हैं। शादी के पहले भी वह उत्तर प्रदेश की टीम से राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती थी। साथ ही हरियाणा के लिए भी खेलती थी।

अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियां

  • कामनवेल्थ गेम्स मेलबर्न 2006 में रजत पदक
  • कामनवेल्थ गेम्स दिल्ली 2010 में कांस्य पदक
  • कामनवेल्थ गेम्स ग्लास्गो 2014 में रजत पदक
  • कामनवेल्थ गेम्स गोल्ड कोस्ट 2018 में रजत पदक
  • एशियन गेम्स इंचियोन 2014 में रजत पदक
  • एशियन गेम्स जकार्ता 2018 में कांस्य पदक
  • वल्र्ड जूनियर चैंपियनशिप 2002 में कांस्य पदक
  • बेलारूस नेशनल चैंपियनशिप 2021 में स्वर्ण पदक  

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