डॉक्टरों की सुरक्षा में हुई थी चूक, लखनऊ से आए किट पहन लेते तो हो सकते थे संक्रमित Meerut News
मेरठ में कोरोना का इलाज कर रहे डाक्टरों के लिए कुछ समय पहले एक कीट लाए गए थे। बाद में पता चला था कि यह कोरोना किट है ही नहीं अगर यह पहनकर डाक्टर इलाज करते तो संक्रमण हो जाता।
मेरठ, [संतोष शुक्ल] । कोरोना संक्रमण की सरसराहट ने मेडिकल कैंपस में बेचैनी पैदा कर दी। मेडिकल प्रशासन ने स्टाफ को संक्रमण से बचाने के लिए लखनऊ से पीपीई किट मांगा। हुआ यूं कि लखनऊ से स्वाइन फ्लू व अन्य बीमारियों से बचाव वाली सामान्य पीपीई किट भेज दी गई। प्राचार्य ने वक्त रहते किट को रिजेक्ट कर डाक्टरों पर मंडराते संक्रमण का खतरा टाल दिया। मेरठ से लखनऊ तक खबर तूफान की तरह फैली। जांच में पता चला कि ये कोरोना किट थी ही नहीं। अगर डाक्टर किट पहनकर कोरोना वार्ड में डयूटी कर लेते तो उन्हें संक्रमण तय था। मेडिकल में एक भी स्टाफ संक्रमित हुआ तो सैकड़ों स्टाफ को कमरे में बंद करना पड़ेगा। इलाज का भयावह संकट खड़ा होगा। इमरजेंसी वार्ड में भी एक संक्रमित मरीज घूम चुका है। डाक्टरों को भय है कि इस तूफानी समय में संक्रमण किसी भी दरार से घुस सकता है।
बीमा मांगें अपने भगवान
संक्रमण की सुरंग में फंसी जिंदगी न जाने कब बाहर निकलेगी। सरकारी चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह कोरोना के इलाज में उलझ गई है। संक्रमित मरीजों के इलाज में महीनों की डयूटी। जो बचे हैं, उन्हें संक्रमित क्षेत्रों की सीलिंग, सैंपलिंग, मीटिंग और ट्रेनिंग से फुर्सत नहीं मिलती। देर रात घर पहुंचते हैं। वो बेशक कोरोना योद्धा हैं, किंतु पहली बार हाथ में जिम्मेदारी का ढाल थामने से तंग भी नजर आ रहे हैं। इधर, सरकार की नजर निजी डाक्टरों को मैदान में उतारने पर गई, किंतु उन्होंने सीएमओ के सामने सरकार से 50 लाख रुपए का बीमा दिलाने की शर्त रख दी। मुख्यमंत्री जन आरोग्य मेले में भी प्राइवेट डाक्टरों ने जनसेवा के लिए दो घंटे नहीं दिए। स्वास्थ्य विभाग को मलाल है कि दुनिया की सबसे बड़ी त्रसदी में भी निजी डाक्टरों ने सहयोग के दो बोल और दो कदम निकालने का बड़प्पन नहीं दिखाया।
रसोई का सियासी स्वाद
जहां तहां फंसे गरीबों के लिए शहरभर में दर्जनों स्थानों पर दिन रात भोजन पकाया जा रहा है। नगर के सभी विधायक संजीदगी के साथ सेवा के मैदान में हैं। राजनीतिक रूप से अपना प्रचार करना उनका लोकतांत्रिक अधिकार भी है। रसोइयों में भोजन के साथ सियासत की खिचड़ी भी पक रही है। मोदी किचन से अब मोदी योगी किचन भी बन गई। महानगर की किचन में संगठन और जनप्रतिनिधियों के बीच लाभ हानि का अघोषित गुणा-गणित रोज नए करवट लेता है। इनकी रसोई बनाम मेरी रसोई की भी आंखमिचौली है। सियासत के ईंधन से सेवाभाव की लंबी रेलगाड़ी खींची जा रही है। राहत कोष में दान देने और दिलाने का भी पूरा ब्योरा डायरी में मेंटेन किया जा रहा है। राशन से लेकर भोजन के पैकेटों पर नेताओं के नाम हैं। प्रयास है कि एक बार महराज जी की नजर पड़ जाए तो बात बने।
गमछा को गले लगाकर
मास्क के पीछे भागती जनता को अचानक ब्रेक लगा। पीएम मोदी ने गांव की संस्कृति में रचा बसा गमछा को मास्क के रूप में इस्तेमाल करने का मंत्र दिया, तो बड़ी संख्या में लोगों ने इस लुप्तप्राय परिधान को फिर से गले लगा लिया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीतिक राजधानी भाजपा में मोदी के मंत्र का तेजी से असर हुआ। क्षेत्रीय अध्यक्ष अश्वनी त्यागी ने गमछे को मास्क बना लिया तो कई अन्य भी इसी राह पर चल पड़े। सांसद व विधायक भी मोदी-योगी रसोई में गमछे में नजर आ रहे हैं। उन्होंने गमछे का पूरा सफर और महत्व याद कर लिया है। गमछे में कोई खर्च नहीं है। ये नाक और मुंह को सुरक्षा तो देगा ही, गर्मियों में धूप और लू से भी बचाएगा। ये मोदी के मंत्र का सहज असर है कि भाजपाइयों के गले में गमछे की रौनक गर्मी में बनी रहेगी।