मूलभूत जरूरतें और ढांचे में हुआ है सुधार, नौकरी पर ध्यान दे सरकार
जागृति विहार में फारुख की फर्नीचर की दुकान पर अलाव से आग की लपटें उठीं तो शर्मा जी की चाय की दुकान से सरककर कई लोग यहां आ जमे। एक-दो स्टूल और कुर्सियां भी आसपास से खींचकर लोग बैठे तो चुनावी मुद्दों ने आग को हवा दी। हिदुओं के बीच भाईचारे से दुकान चला रहे फारुख अंदर से ढूंढ़कर सनमाइका उठा लाए।
मेरठ, जेएनएन। जागृति विहार में फारुख की फर्नीचर की दुकान पर अलाव से आग की लपटें उठीं तो शर्मा जी की चाय की दुकान से सरककर कई लोग यहां आ जमे। एक-दो स्टूल और कुर्सियां भी आसपास से खींचकर लोग बैठे तो चुनावी मुद्दों ने आग को हवा दी। हिदुओं के बीच भाईचारे से दुकान चला रहे फारुख अंदर से ढूंढ़कर सनमाइका उठा लाए। सनमाइका की आग ने लालिमा लिए जितनी तेजी पकड़ी उतनी ही गर्मी चुनावी बातचीत में आ गई थी। फारुख ने मौका दिया, सब कुछ बदल रहा है। हर जगह बदलाव दिख रहा है लेकिन पता नहीं कब हापुड़ रोड पर सुधार दिखाई देगा। वह हापुड़ रोड के रहने वाले हैं लेकिन दुकान यहां चलाते हैं, शर्मा जी के पड़ोस में। राजेंद्र ने कहा बहुत बदलाव है पहले की तुलना में। ढांचागत सुधार हुआ है। इस पर फारुख ने टोका, भाईसाहब महंगाई भी तो बहुत बढ़ गई है। मनोज ने उनका समर्थन किया। बोले, हां महंगाई तो है, इस पर सुधार की जरूरत है। नौकरी और रोजगार पर ध्यान देना चाहिए। महंगाई का कारण कोरोनाकाल में कामकाज प्रभावित होना भी हो सकता है। राजेंद्र ने फिर दखल दिया, बोले कोरोना ने बहुत परेशान किया। शायद सरकारें कुछ अच्छा करतीं लेकिन इन विपरीत परिस्थितियों ने उलझाकर रखा। आरिफ ने कहा, रोजगार के अवसर अगर बढ़ेंगे युवा आगे बढ़ेंगे। युवा जितना बेरोजगार होगा देश का नुकसान उतना ही बढ़ेगा। अजीत ने उन्हें रोका। बोले, रोजगार के लिए तो तमाम योजनाएं हैं। युवा वहां तक पहुंच नहीं पाते या फिर आवश्यक दस्तावेज व आइडिया में पीछे रह जाते हैं। युवा रोजगार के विकल्प से ज्यादा सरकारी नौकरी मांग रहे हैं। फिर राजेंद्र ने दखल दिया। बोले माहौल बदला है तभी तो तमाम कंपनियां निवेश कर रही हैं। बदमाशों का डर खत्म हुआ है। इससे रोजगार बढ़ेगा। हां यह बात तो है कि नौकरियां पर भी ध्यान देना चाहिए।
अनुज ने सुविधाओं पर बात घुमाई। बोले, बिजली, पानी समेत तमाम मूलभूत जरूरतों पर काम हुआ है। हाईवे, एक्सप्रेस-वे आदि बनते और शुरू होते सबने देखे। फिर भी अभी बहुत काम करने की जरूरत है। किसानों के लिए भी कदम अच्छे उठने चाहिए। अजीत मुद्दों से मुड़कर पार्टियों के वोट बैंक पर आ गए। बोले, जो पार्टियां जाति विशेष को अपना ही मतदाता समझती थीं, वे जातियां अब कई पार्टियों में बंट चुकी हैं। इसलिए चुनाव का माहौल हर साल बदलता जा रहा है। फारुख ने फिर अलाव में गर्मी बढ़ाई और सांस लंबी खींचकर बोले फिलहाल तो चुनावी टक्कर में दो पार्टियां हैं।