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जनता क‌र्फ्यू से जन-जन में जागा था महामारी से जंग का जज्बा

एक साल का सफर कई मायनों में अहम होता है लेकिन आज हम कोरोना के खिलाफ पहले बड़े कदम की याद ताजा करेंगे। ठीक एक साल पहले आज के दिन सरकार ने जनता क‌र्फ्यू लगाया था।

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 Mar 2021 10:01 AM (IST)Updated: Mon, 22 Mar 2021 10:01 AM (IST)
जनता क‌र्फ्यू से जन-जन में जागा था महामारी से जंग का जज्बा
जनता क‌र्फ्यू से जन-जन में जागा था महामारी से जंग का जज्बा

मेरठ, जेएनएन। एक साल का सफर कई मायनों में अहम होता है, लेकिन आज हम कोरोना के खिलाफ पहले बड़े कदम की याद ताजा करेंगे। ठीक एक साल पहले आज के दिन सरकार ने जनता क‌र्फ्यू लगाया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक अपील कैसे अभूतपूर्व अनुशासन और संयम का चरम पाठ बन गई। भागता मन और दौड़ती काया पूरी तरह थम गई। शहर ने सन्नाटा ओढ़ लिया। शाम को लोगों ने अपने घरों पर घंटा, घंटी, ढोल, शंख व मजीरा बजाते हुए वायरस को भगाने का युद्धघोष किया। कोरोना योद्धाओं का हौसला बढ़ाने को ताली-थाली बजाई। सुबह क‌र्फ्यू के बीच सन्नाटे ने अनुशासन का हिमालय छू लिया था, वहीं जन निनाद की महागूंज अनंत आकाश तक पहुंची थी। शहर की आंखों में यह दृश्य सदा के लिए दर्ज हो चुका है।

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घने शहर पर सूनेपन के निशान

चीन के वुहान शहर से निकला वायरस व‌र्ल्ड टूर पर था। देश के कई शहरों में यह दस्तक दे चुका था। बड़ी एवं घनी आबादी, संक्रामक माहौल और कुपोषण से घिरे देश में बेलगाम वायरस को रोकना आसान नहीं था। घनी बसावटों की वजह से मेरठ के सामने बड़ी चुनौती आई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनता क‌र्फ्यू की भावुक अपील को मेरठ ने बड़ी शिद्दत से आत्मसात किया। ठीक एक साल बाद शहरवासी याद कर रहे हैं कि कैसे दिन-रात रौनक से लबरेज घंटाघर अचानक सूना पड़ गया था। तस्वीरें देखकर मोहल्ले सिहर जाते हैं। गलियों में बच्चों की उछलकूद और कारोबार की गति शून्य हो गई। अभूतपूर्व सन्नाटों को निहारने के लिए घरों की खिड़कियां खुलती बंद होती रहीं।

आज भी कानों में गूंजती है जननिनाद की महागूंज

धर्म-जाति और दल का द्वंद दूर हो चुका था। खैरनगर के अंदर से भूमिया के पुल तक इक्का दुक्का लोग खड़े थे। सड़कों के किनारे आवासीय क्षेत्रों में हलचल बंद पड़ गई थी। हापुड़ अड्डा चौराहे पर सन्नाटे के बीच प्रशासन के वाहन निकल रहे थे। गढ़ रोड से लेकर बेगमपुल बच्चा पार्क तक सिर्फ खामोशी की सदाएं थीं। कमिश्नरी पार्क से लेकर मानसरोवर कालोनी और साकेत में गजब का अनुशासन नजर आया। विवि रोड के किनारे पांडव नगर से लेकर अन्य मोहल्लों में अपील का आश्चर्यजनक असर देखा गया। शाम पांच बजे तक जनता क‌र्फ्यू निर्धारित था, जिसके बाद शाम को घरों से उठने वाली घंटों और थालियों की आवाज गगनचुंबी होने लगी। यह वायरस को भगाने की संकल्पशक्ति का पहला मुहूर्त था।

कोरोना को हराने का संकल्प पीछे छूट रहा

जनता क‌र्फ्यू के बाद प्रदेश और फिर देशभर में लाकडाउन लगा। कोरोना का संक्रमण बढ़ता गया। लगभग 100 दिनों तक घरों में कैद होने के बाद कुछ-कुछ चीजें खुलने लगीं। अगस्त से माहौल पटरी पर आना शुरू हुआ, लेकिन सितंबर मेरठ पर बहुत भारी पड़ा और सबसे अधिक संक्रमण और मौतों का आंकड़ा इसी महीने में चढ़ा। खैर, दीपावली के बाद स्थितियां सुधरती गई संक्रमण भी काबू में आने लगा। यहीं हमें फिर अनुशासन और संयम दिखाने की जरूरत थी, लेकिन हम चूके। दो गज दूरी, मास्क जरूरी और सैनिटाइजर का साथ छोड़ने का परिणाम भी गत 20 दिनों में देखने को मिला है। एक बार फिर हालात हाथ से फिसल रहे हैं। इस बार भी मौका है, अगर संभले तो ठीक वरना परिणाम पिछले साल का हमारे सामने है।


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