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प्रधानमंत्री ने बताई थी यह पद्धति, नन्हीं पर्यावरण प्रेमी ईहा दीक्षित ने किया अमल, दे रहीं जल संरक्षण का संदेश

ईहा दीक्षित ने बताया कि जब वह पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिली थी तो उन्होंने इस पद्धति के बारे में बताया था। उन्होंने बताया था कि पुराणों में इस विधि का वर्णन हैं। वह अब नियमित रूप से इस पद्धति को अपना रहीं हैं।

By Taruna TayalEdited By: Published: Sat, 24 Apr 2021 05:51 PM (IST)Updated: Sun, 25 Apr 2021 11:45 AM (IST)
प्रधानमंत्री ने बताई थी यह पद्धति, नन्हीं पर्यावरण प्रेमी ईहा दीक्षित ने किया अमल, दे रहीं जल संरक्षण का संदेश
ईहा हजारों साल पुरानी मटका थिम्बक पद्धति का इस्तेमाल पौधों को पानी देने के लिए कर रही हैं।

मेरठ, [अमित तिवारी]: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गर्मी के दिनों में पौधों को पानी देने के लिए प्राचीन भारतीय पद्धति को अपनाने का आह्वान किया था। उसी आह्वान को प्रधानमंत्री बाल शक्ति पुरस्कार से सम्मानित मेरठ की नन्हीं पर्यावरण प्रेमी ईहा दीक्षित आगे बढ़ा रही हैं। हर सप्ताह शहर के किसी न किसी क्षेत्र में पौधारोपण करने वाली ईहा पौधारोपण के साथ ही जल संरक्षण का संदेश देते हुए हजारों साल पुरानी मटका थिम्बक पद्धति का इस्तेमाल पौधों को पानी देने के लिए कर रही हैं। इस पद्धति से पौधे सौ फीसद जीवित रहते हैं और एक पौधे के लिए एक महीने में केवल एक बार 10-15 लीटर पानी की ही जरूरत होती है।

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ईहा दीक्षित ने बताया कि जब वह पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिली थी तो उन्होंने उसे इस पद्धति के बारे में बताया था। उन्होंने बताया था कि पुराणों में इस विधि का वर्णन हैं। पहले वह कभी कभी ही इस पद्धति का प्रयोग करती थीं, लेकिन पिछली बार लाकडाउन में कुछ पौधे खराब होने के बाद नियमित रूप से इस पद्धति को अपना रहीं हैं। अभी तक लगभग पचास पौधों में विभिन्न स्थानों पर उन्होंने पौधों के साथ मटके लगा दिए हैं। इसके साथ ही पहले लगाए गए पौधों में भी बारी-बारी से मटके लगाने का काम चल रहा है।

कैसे लगाते हैं मटके 

इस पद्धति में मटके दो तरह से लगाए जाते हैं। पहली विधि में मटके में छोटा सा छेद करके उसके अंदर जूट या सन की रस्सी से गांठ लगा दी जाती है। एक बड़ा सा गड्ढ़ा करके पौधे के पास ही मटके को लगा दिया जाता है और रस्सी को पौधों की जड़ के आस-पास लगा देते हैं। इससे के शिकातत्व सिद्धांत के तहत मटके से पानी पौधों की जड़ों में पहुंचता रहता है। यह विधि काली मिट्टी और कम उपजाऊ मिट्टी में कारगर है। यदि मिट्टी रेतीली है तो दूसरी विधि बहुत ही कारगर है। इस विधि में मटके में छेद करने की जरूरत नहीं हैं। रेतीली मिटटी होने पर बालू रेत मिलाकर भी बिना छेद का मटका लगाया जा सकता है। पौधे के पास पानी से भरा घड़ा रखकर ऊपर से उसका मुंह ढक देना चाहिए। ईहा ने बताया कि मटके का मुंह बंद करने से पानी बहुत ही कम वाष्पीकृत हो पाता है।

महंगी नहीं है पद्धति

आमतौर पर लोगों का मानना है कि मटका लगाने की विधि महंगी और खर्चीली है, लेकिन यह एक सस्ती और आसान विधि है। आमतौर पर बाजार में पचास रूपये से लेकर डेढ़ सौ रूपये तक के मटके मौजूद हैं, जल और पर्यावरण संकट के सामने यह राशि बहुत ही छोटी है। इस विधि में गोल मटके का प्रयोग करना चाहिए ताकि नमी अधिक दूरी तक बनी रहे। मटका लगाने से पौधों का सर्वाइवल रेट शत-प्रतिशत तक होता है। इसके साथ ही जल की भी कम मात्रा की आवश्यकता होती है। इस विधि का प्रयोग करने से पौधों की बढ़ोतरी दर में बीस प्रतिशत तक का इजाफा देखने को मिलता है। लहसुन, तरबूज, सेम, कार्न, खीरा, पुदीना, आलू, प्याज, मटर, रोजमेरी, सूरजमुखी और टमाटर जैसे पौधे भी इस तरीके से घरों में उगाए जा सकते हैं। यह तरीका उन लोगों के लिए सबसे कारगर है, जो हरियाली तो चाहते हैं पर उनके पास जल और समय की किल्लत है।

जल की बचत

ईहा और उसके साथियों का कहना है कि मटका विधि को अपनाकर पर्यावरण और जल संरक्षण दोनों ही दिशा में सकारात्मक परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। पौधों और मटका लगाने का कार्य किसी भी मौसम में किया जा सकता है। इस विधि से तेज गर्मी के मौसम में एक पौधे के लिए दस से पंद्रह लीटर पानी लगभग दो सप्ताह के लिए काफी रहता है। वहीं सर्दी के मौसम में यहीं पानी एक महीने से अधिक समय तक चलता है। ग्रीन ईहा स्माइल ग्रुप के सदस्यों ने बताया कि पहले वह टैंकर से पानी मंगाकर पौधों में डालते थे, उससे पानी और समय दोनों ही अधिक लगते थे। इस तरह अब प्रति माह लगभग पांच से छह हजार लीटर पानी की बचत हो रही है। बरसात के मौसम में मटके का मुंह खोल देने पर वर्षा जल का संचय होता है। इससे अगले एक महीने तक पौधों को फिर पानी देने की आवश्यकता नहीं होती है।

मटका विधि के फायदे

आमतौर पर पौधे में बाल्टी से पानी देने पर केवल एक से दो लीटर पानी ही पौधों को मिल पाता है। बाकी पानी जमीन अवशोषित कर लेती है, लेकिन इस पद्धति में करीब 90 फीसदी तक पानी सीधे तौर पर पौधे की जड़ों तक पहुंचता है।

- मटका विधि से पौधों का सर्वाइवल रेट शत प्रतिशत तक प्राप्त होता है, तेज गर्मी के मौसम में भी पौधे हरे रहते हैं। इस विधि से लगाए गए पौधों की वृद्वि दर भी बीस प्रतिशत तक अधिक होती है।

-इसके अपनाने से समय और जल दोनों की ही बचत होती है।

-सब्जियों और फलों के वार्षिक और बारहमासी पौधों को उगाने के लिए भी यह पद्धति उपयोगी है।

गमलों में भी छोटे आकार के पानी के मटके लगाए जा सकते हैं।


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