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सदियों तक याद रहेगा वो 24 दिन का आंदोलन

किसानों के मसीहा महेंद्र सिंह टिकैत के आंदोलनों का मेरठ से रहा है गहरा नाता। कमिश्नरी पर 1988 के आंदोलन ने हिला दी थी प्रदेश और केंद्र सरकार।

By JagranEdited By: Published: Tue, 15 May 2018 02:38 PM (IST)Updated: Tue, 15 May 2018 02:38 PM (IST)
सदियों तक याद रहेगा वो 24 दिन का आंदोलन
सदियों तक याद रहेगा वो 24 दिन का आंदोलन

मेरठ । किसानों का उत्पीड़न जब चरम पर था और धरतीपुत्र सरकारी तंत्र की मनमानी से परेशान हो चुका था तब चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने उन्हें अपनी आवाज बुलंद करने का साहस दिया। बाबा टिकैत के आंदोलनों का मेरठ से गहरा नाता रहा है। 27 जनवरी 1988 को मुजफ्फरनगर के करमूखेड़ी बिजलीघर से शुरू हुआ उनका आंदोलन पुलिस की गोली से दो किसानों की मौत के बाद इतना फैला कि टिकैत मेरठ कमिश्नरी पर हजारों किसानों के साथ आ डटे। 24 दिन के आंदोलन से केंद्र और प्रदेश की सरकार हिल गई थी। मेरठ के इस आंदोलन ने बाबा टिकैत को देशभर के किसानों का मसीहा बना दिया। फरवरी 2007 को सीसीएस यूनिवर्सिटी में पहुंचकर उन्होंने आंदोलन कर रहे छात्रों को भी सही रास्ता दिखाया था।

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गैर राजनीतिक किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने किसानों की आवाज को बुलंद किया तो उनके सबसे पहले सबसे बड़े आंदोलन का गवाह मेरठ बना था। यह ऐसा आंदोलन था जिसने धरतीपुत्रों की ताकत का अहसास मनमौजी सरकारी तंत्र को भलीभांति कराया था। बाबा टिकैत के नेतृत्व में यह पहला आदोलन करमूखेड़ी बिजलीघर से शुरू हुआ हुआ था। पुलिस की गोली से दो किसानों की मौत हो गई। इसके विरोध में उन्होंने मेरठ कमिश्नरी घेरने का एलान किया। हजारों किसान 19 फरवरी तक डटे रहे। किसानों का यह पहला ऐसा संगम था, जिससे प्रत्येक राजनीतिक दल किसी भी कीमत पर जुड़ना चाहता था। लोकदल के अध्यक्ष हेमवती नन्दन बहुगुणा, जनमोर्चा नेता सतपाल मलिक, वीरेन्द्र वर्मा, आरिफ बेग, कल्याण सिंह, चन्द्रजीत यादव, गायत्री देवी, वीपी सिंह, शाही इमाम अब्दुल्ला बुखारी, मेनका गाधी, फिल्म अभिनेता राजबब्बर आदि तमाम नेता यहां पहुंचे। यह वही समय था जब मेरठ सांप्रदायिक दंगों की आग में झुलस रहा था लेकिन बाबा का आंदोलन मजबूती से चला। आन्दोलन को कुचलने के लिए पुलिस और पीएसी लगाई गई। ठंड अधिक होने के कारण सात किसानों की ठंड से मौत भी हुई पर किसानों ने धैर्य नहीं छोड़ा। मेरठ की जनता उस आंदोलन को सदियों तक नहीं भूल पाएगी। इसके बाद टिकैत ने 25 अक्टूबर 1988 को नई दिल्ली स्थित वोट क्लब पर आंदोलन का बिगुल फूंका।

इसके बाद चौधरी टिकैत ने एक आंदोलन सरधना तहसील पर किया। वहां तहसील की टीम ने कुछ किसानों को बकाया वसूली के लिए हवालात में बंद कर दिया था। इसके बाद टकराव हो गया था। वर्ष 2007 में चौधरी चरण सिंह विवि में छात्रों ने मूल्यांकन घोटाले के विरोध में आंदोलन किया। इसमें बाबा टिकैत पहुंचे और तत्कालीन वीसी एसपी ओझा से मिले और छात्रों को भी सीख दे गये। बाबा टिकैत की आज 7 वीं पुण्यतिथि है। उन्हें याद करने वाले लोगों की संख्या मेरठ में भी कम नहीं रहेगी।


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