भूखे 'भविष्य' को ज्ञान का निवाला
शहर के युवाओं ने स्टेशन पर भीख मांगने वाले बच्चों को शिक्षा का दान देने की व्यवस्था की है।
मेरठ, जेएनएन। शहर के युवाओं ने स्टेशन पर भीख मांगने वाले बच्चों को शिक्षा का दान देने की पहल की है। खानाबदोशों के पढ़ाई करने वाले बच्चों के भोजन का जुगाड़ करने की चिंता न रहे, इसके लिए युवाओं की टोली उनके खाने का भी इंतजाम कर रही है। ये बच्चे स्टेशन परिसर में भीख मांगते थे।
मेरठ सिटी स्टेशन में प्रवेश करने से पहले स्थित पीपल के विशाल पेड़ के नीचे पिछले करीब तीन माह से दोपहर में खासी चहल-पहल रहती है। यूथ पावर मेरठ के बैनर तले 15 लोग यहां जुटते हैं, उन्हें देखते ही आसपास बनी अस्थाई झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के बच्चे दौड़ते चले आते हैं। संस्था के राहुल राठौर ने बताया कि शुरुआत में पांच छह लोगों से आरंभ इस संस्था से आज 150 लोग जुड़ चुके हैं। पेशे से सिविल इंजीनियर राहुल मेरठ में निर्मित किए जाने वाले डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर प्रोजेक्ट से जुड़े हैं। उनके साथ मेरठ के कई विद्यालयों के छात्र और छात्राएं भी जुड़े हैं।
एमआइईटी में बी फार्मा प्रथम वर्ष की छात्रा तनु ने बताया कि कई बच्चे उद्दंड हैं, उन्हें डील करने में खासी परेशानी होती है। बताया कि उनकी कोशिश होती है कि सप्ताह में दो दिन जरूर इन बच्चों को पढ़ाएं।
हर सदस्य अलग-अलग दिन संभालता है जिम्मेदारी
संस्था के संयोजक राठौर ने बताया कि सभी लोग या तो नौकरीपेशा हैं या छात्र हैं। अपना काम और पढ़ाई प्रभावित न हो, इसके लिए संस्था से जुड़े लोगों ने इन बच्चों के बीच कार्य करने के लिए शेड्यूल बना रखा है। सप्ताह में जब भी लोग आते हैं तो उनकी संख्या कम से कम 15 और अधिकतम 20 होती है। कुछ बच्चों को पढ़ाने-लिखाने कुछ साफ-सफाई की आदत सिखाने और कुछ भोजन वितरण की जिम्मेदारी संभालते हैं। 28 से 30 बच्चे पढ़ने आते हैं। पढ़ने वालों में कई की उम्र तो 17-18 साल भी है। ये अभी अक्षर ज्ञान सीख रहे हैं।
तपन का काम सबकी रसोई से भोजन लाने का है। इसी तरह मासकॉम के छात्र चिराग, बैंक कर्मी अभिषेक, कंस्ट्रक्शन कंपनी में इंजीनियर सत्येंद्र और कमल नियमित रूप से आते हैं। रविवार को टीम के काफी सदस्य उपस्थिति होते हैं। संस्था के सदस्य बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखते हैं। चोटिल बच्चों की मरहम-पट्टी की जाती है।
'सबकी रसोई' से लाते हैं भोजन
स्टेशन परिसर के बाहर झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लोग मथुरा के हैं। इनमें कई परिवार बाराबंकी के भी हैं। बताया पुलिस और आरपीएफ जब तक उन्हें ठहरने देती है, तब तक रुकते हैं इसके बाद वह अगले पड़ाव पर चले जाते हैं। राठौर ने बताया कि बच्चों के लिए खाना वह सबकी रसोई संस्था द्वारा संचालित काउंटरों से खरीदकर लाते हैं। रोजाना 50 से 60 प्लेट खाने की वितरित की जाती हैं। सदस्य बच्चों के कपड़ों आदि की व्यवस्था भी करते हैं। संस्था का खर्च नौकरीपेशा लोगों द्वारा दिए गए चंदे से चलता है। राहुल ने बताया कि हमें युवाओं के समय की जरूरत है, जो इन बच्चों की जिंदगी में शिक्षा की अलख जगाने में सहयोग करें। सोशल मीडिया में समय लगाने की जगह ऐसे बच्चों की जिंदगी संवारने में समय का योगदान करें।