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पैदल यात्रियों का अधिकार आखिर है कहां, फुटपाथ और साइकिल ट्रैक पर तो हो रखे कब्‍जे Meerut News

पिछले दिनों नगर निगम के अवर अभियंता फुटपाथ की गणना करने निकले। पूरे शहर में शास्त्रीनगर ही ऐसा इलाका निकला जहां सड़क किनारे चलने लायक फुटपाथ हैं।

By Prem BhattEdited By: Published: Sun, 16 Feb 2020 11:22 AM (IST)Updated: Sun, 16 Feb 2020 11:22 AM (IST)
पैदल यात्रियों का अधिकार आखिर है कहां, फुटपाथ और साइकिल ट्रैक पर तो हो रखे कब्‍जे Meerut News
पैदल यात्रियों का अधिकार आखिर है कहां, फुटपाथ और साइकिल ट्रैक पर तो हो रखे कब्‍जे Meerut News

मेरठ, [दिलीप पटेल]। Special Column सड़क पर चलते समय क्या आपको लगता है कि पैदल चलने के लिये कुछ नहीं बचा है। पैदल चलने में दिक्कत होती है। क्या सड़कें सिर्फ गाड़ियों के लिये हैं? यह चर्चा अब जरूरी है। दरअसल, ईज ऑफ लिविंग सर्वे चल रहा है। रहने लायक शहर में इस मानक को भी परखा जाना है। पिछले दिनों नगर निगम के अवर अभियंता फुटपाथ की गणना करने निकले। पूरे शहर में शास्त्रीनगर ही ऐसा इलाका निकला जहां सड़क किनारे चलने लायक फुटपाथ हैं। वीआईपी इलाके सिविल लाइंस, साकेत, मानसरोवर, सूरजकुंड और डिफेंस कालोनी में पैदल यात्रियों के चलने का अधिकार छिन चुका है। फुटपाथ व साइकिल ट्रैक पर कब्जे हैं। कचहरी में भले न्याय मिलता है लेकिन यहां की सड़कें पैदल यात्रियों के साथ न्याय नहीं कर पा रही हैं। तो शुक्र मनाइए ईज ऑफ लिविंग सर्वे का। इससे विभाग अपनी गलती का एहसास कर रहे हैं।

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दावे हजार पर सब बेकार

शहर रहने लायक है या नहीं। यह सर्वे चल रहा हो और सड़क पर कचरे के ढेर लगे हों तो लोग यही कहेंगे दावे हजार पर सब बेकार। दिल्ली रोड शहर की लाइफ लाइन है। इस सड़क पर ही शहर का सबसे बड़ा खत्ता है। यूं कहें शहर के लिए बदनुमा दाग जैसा। कहने को तो नगर निगम ने एक साल पहले खत्ते को समाप्त कर दिया था लेकिन कचरा फिर पडऩे लगा। ब्यू कटर लगाए पर ये ब्यू कटर भी कचरे में समा गए। कचरा डालने वालों की रैकी के लिए दिन में कर्मचारी लगाए तो रात में डलना शुरू हो गया। पहले कचरा ही पड़ता था, अब डेयरी का गोबर भी। अब नगर निगम की कार्यशैली पर लोग सवाल तो करेंगे ही। आखिर शहर स्मार्ट सिटी बनने जा रहा है। व्यथा भी उस मार्ग की है, जिस पर रैपिड रेल भी दौड़नी है।

और बन गया विश्‍व कीर्तिमान

घर-घर होम कम्पोस्टिंग करेंगे। किचन का कचरा सड़क पर आना बंद हो जाएगा। मार्च तक 10,000 घरों में यह काम कर विश्व कीर्तिमान बनाएंगे। कुछ ऐसा ही ख्वाब स्वच्छता सर्वेक्षण 2020 की शुरुआत में दिखाया गया था। नगर निगम ने अपने दावे को सही साबित करने के लिए बाकायदा इसका शुभारंभ एक समारोह से किया था लेकिन यह ख्वाब कागजी कोरम पूरा करने के सिवा कुछ नहीं निकला। स्वच्छता सर्वेक्षण खत्म हो गया। अब तो निगम के अधिकारी भी इस पर बात नहीं करते। सुना है कि नगर निगम के पास इसका कोई लेखा जोखा नहीं है। किन घरों में होम कम्पोस्टिंग शुरू हो चुकी है, कितने घरों पर होम कम्पोस्टिंग के स्टीकर चस्पा हुए, नहीं पता। दीगर बात है कि एनजीओ अपने स्तर पर कागज तैयार कर रहे हैं क्योंकि प्रति घर 250 रुपये मिलना है। हो भी क्यों न, मामला सफाई का है।

कचरे में बिजली का भविष्‍य

‘मेरठ द सिटी ऑफ जुगाड़ टेक्नोलॉजी’ यह बात नगर आयुक्त ने उद्यमियों से जब कही थी तो इसके अलग-अलग मायने निकाले जा रहे थे। हालांकि असल बात तो कुछ और थी। वे जिस टेक्नोलॉजी के अभिभूत हुए उसके दम पर अब कचरे में बिजली का भविष्य तलाशा जा रहा है। गत दिनों यह संकेत एनजीटी के ओवरसाइट कमेटी के सदस्य व पूर्व मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश अनूपचंद्र पांडेय दे गए हैं। बात चली तो नगर आयुक्त के मन में छिपी बात निकल पड़ी। कहने लगे, मेरठ क्रांतिधरा है। एक व्यक्ति कचरे से बिजली बनाने पर 20 सालों से शोध कर रहा था। उसने कई तकनीकों को जोड़ यह तकनीक ईजाद की। जब पानी, कोयला से बिजली बनाने का संकट हो तब कचरे से बिजली बनाने की परिकल्पना साकार करनी होगी। हर शहर में कचरा है, लेकिन जीरो लैंडफिल टेक्नोलॉजी केवल मेरठ के पास।  


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