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वर्दी वाला : तब साहस मिलता था अब सजा, अतीत के आईने में गुम थ्री नाट थ्री राइफल

अतीत के आईने में गुम हुई थ्री नाट थ्री राइफल इतिहास बन गई। अंग्रेजों के जमाने से युद्ध का रुख बदलने वाली यह राइफल पहले संतरी से लेकर पुलिस अफसरों के हमराह तक के कंधों पर सजती थी। अब तो यह महज इतिहास बनकर रह गई है।

By Prem BhattEdited By: Published: Thu, 08 Oct 2020 01:49 PM (IST)Updated: Thu, 08 Oct 2020 01:49 PM (IST)
वर्दी वाला : तब साहस मिलता था अब सजा, अतीत के आईने में गुम थ्री नाट थ्री राइफल
उस समय जवानों के कंधों पर रखी रायफल उनका आत्मबल बढ़ाती थी।

मेरठ, [सुशील कुमार]। अतीत के आईने में गुम हुई थ्री नाट थ्री राइफल इतिहास बन गई। अंग्रेजों के जमाने से युद्ध का रुख बदलने वाली यह राइफल पहले संतरी से लेकर पुलिस अफसरों के हमराह तक के कंधों पर सजती थी। अब थानों के मालखाने में जमा हो चुकी है। हालांकि अब भी इसका अस्तिव बरकरार है। आज भी पुलिसकर्मियों के कंधों पर रायफल सजी हुई है। हालांकि उसका मतलब बदल गया है। उस समय जवानों के कंधों पर रखी रायफल उनका आत्मबल बढ़ाती थी। अब यह रायफल पुलिसकर्मियों को सजा देने के लिए उनके कंधों पर रखी जाती है। पिछले दिनों को पुलिस लाइन में 18 पुलिसकर्मियों को कंधों पर रायफल रखकर एक घंटा शाम तो एक घंटा सुबह मैदान के चक्कर लगवाए। मकसद, ताकि भविष्य में कोई गलती न कर सके। अर्थात रायफल अभी भी पुलिस के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है।

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एक दूसरे को काटती बातें

दिल्ली के निर्भया कांड के बाद महिला अपराध को प्राथमिकता से लिया जाता है। चार्ज संभालते ही हर अफसर का बयान होता है कि महिला अपराध पर पूरी तरह अंकुश लगाएंगे। हम यहां आपको चंद रोज पहले रोडवेज की अनुबंधित बस में महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म की वारदात के बारे में बताते हैं। आबरू लुटने के बाद महिला छह घंटे तक अस्पताल के स्ट्रेचर पर पड़ी रही। कार्रवाई के बजाए थाना प्रभारी सीमा विवाद में ही उलझे रहे, टालते रहे। उस समय पुलिस और प्रशासन के तीन शीर्ष अफसरों को चार्ज लेते समय दिए बयान याद नहीं आए। बाद में अफसर जागे तो चंद घंटों में आरोपितों को पकड़ लिया। वारदात के राजफाश में भी महिला को ही दोषी बना दिया। दर्शाया कि महिला अपनी सहमति से गई थी। अगर वह दङ्क्षरदों के पास सहमति से जाती तो फिर दुष्कर्म का हल्ला क्यों मचाती।

ये वर्दी है, सब चलता है

आपको आइपीसी न्याय के लिए दी गई है। इसका गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। यहां एक ऐसे केस की चर्चा है, जिसमें आरोपित दारोगा होने की वजह से दुष्कर्म पीडि़ता को न्याय नहीं मिल रहा है। लखनऊ तक पहुंची दुष्कर्म पीडि़ता को सीएम दरबार जाने से पहले ही पुलिस उठाकर वापस ले आई। उसके बाद दारोगा की पत्नी ने दुष्कर्म पीडि़ता पर भाई के साथ अगवा कर दुष्कर्म कराने का आरोप लगा दिया। पुलिस ने इस आरोप की सत्यता जाने बिना ही उसे जेल भेज दिया। इतना ही नहीं, मामले में आरोप पत्र भी कोर्ट में दाखिल कर दिया। सवाल है कि क्या दुष्कर्म पीडि़ता अपने भाई के साथ मिलकर दारोगा की पत्नी को दो बार अगवा कर दुष्कर्म करा सकती है। दोनों मुकदमे में दुष्कर्म पीडि़ता को पुलिस ने जेल भेज दिया। हम तो शीर्ष अफसरों से यही कहेंगे, इंसाफ करिए, नजरअंदाज नहीं।

दारोगा हटे तब बनी बात

अपराधियों को रोकने के लिए हर जनपद में कप्तान स्तर पर एसओजी का गठन किया जाता है, क्योंकि कोई भी बड़ा अपराध हो जाए तो तत्काल इस टीम को लगाकर बदमाशों की घेराबंदी की जाती है। ज्यादातर मामलों में सफलता भी मिली। यह टीम कप्तान की देखरेख में काम करती है। यहां टीम में तैनात पुलिसकर्मी ही दो फाड़ हो गए। कुछ पुलिसकर्मी दारोगा के गुट में आ गए, तो कुछ इंस्पेक्टर की टीम में काम कर रहे। कई मामलों में दोनों ही गुटों ने एक दूसरे की सूचनाएं बाहर भेज दीं। सूचनाएं बाहर आने से पुलिस के ऑपरेशन पर प्रभाव भी देखने को मिला। एसएसपी तक भी मामला पहुंचा तो गुट बंदी खत्म करने के लिए एक दारोगा को सरूरपुर थाने में तैनाती दे दी गई। माना जा रहा है कि दारोगा के जाने के बाद एसओजी एकजुटता की तरफ दौड़ती दिखाई दे रही है।


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