Special Column: हाल ए नगर निगम, ख्वाब दिखाने में हैं माहिर लेकिन ऐसे तो नहीं बनेंगे स्वच्छ Meerut News
स्वच्छ सर्वेक्षण की शुरुआत तो 2016 में हुई लेकिन नगर निगम से लेकर शासन तक के अधिकारी मेरठ शहर को कचरे से मुक्ति का ख्वाब दस साल से दिखा रहे हैं। पर हकीकत तो इससे जुदा है।
मेरठ, [दिलीप पटेल]। स्वच्छ सर्वेक्षण की शुरुआत तो 2016 में हुई, लेकिन नगर निगम से लेकर शासन तक के अधिकारी मेरठ शहर को कचरे से मुक्ति का ख्वाब दस साल से दिखा रहे हैं। बिल्कुल मुंगेरीलाल के हसीन सपनों जैसे। ख्वाब दिखाने का सिलसिला गांवड़ी में वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट के शिलान्यास से शुरू हुआ। ए-टू-जेड कंपनी के जरिए डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन की शुरुआत हुई। कंपनी आई, कुछ समय तक काम किया, और कमाई कर चलती बनी। फिर सोलापुर की कंपनी ...इसके बाद शासन से एक डिफाल्टर कंपनी का चयन कर लिया गया। ख्वाब ऐसा दिखाया कि अब कूड़ा बचेगा ही नहीं। कूड़ा तो अपनी जगह ही है, लेकिन सोलापुर की कंपनी हाईकोर्ट पहुंच गई। मामला लंबित है। अब नगर निगम ने एक कंपनी से अनुबंध कर कचरे से बिजली बनाने का ख्वाब संजोया है। सपने जरूर देखने चाहिए, लेकिन ऐसे भी नहीं जो पूरे ही न हों।
ऐसे तो नहीं बनेंगे स्वच्छ
स्वच्छ सर्वेक्षण 2021 में मूलभूत सुविधाओं के प्रबंधन पर भी जोर रहेगा। ऐसे में अब बेहतर ड्रेनेज सिस्टम बिना शहर की स्वच्छता की परिकल्पना बेमानी होगी। अगर शहर के वर्तमान हालात पर चर्चा करें तो जरा सी बारिश में सड़कें डूब जाती हैं। दिल्ली रोड, बागपत रोड व इनसे जुड़े मोहल्लों की तस्वीरें यह बयां करती हैं। इन इलाकों में ड्रेनेज सिस्टम पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। कहीं नालियां हैं तो कहीं पर नाले नहीं बने हैं। जहां नालियां हैं, वे गंदगी से पटी हैं। जो नाले भी हैं, वे साफ नहीं रहते। बारिश होती है तो पानी सड़कों पर बहता है, घरों में घुसता है। यह समस्या एकाएक नहीं खड़ी हुई। कई सालों से लोग जलभराव का दंश झेल रहे हैं। यह बात नगर निगम अधिकारी भी जानते हैं। सांसद, विधायक और पार्षद भी जानते हैं, इसके बावजूद व्यवस्था नहीं सुधर रही।
अब मेडिकल वेस्ट की चुनौती
नगर निगम को अभी तक गीला-सूखा कचरा ही घर-घर से लेना था, लेकिन केंद्र सरकार ने स्वच्छ सर्वेक्षण 2021 में मेडिकल वेस्ट का कलेक्शन भी अनिवार्य कर दिया। नगर निगम को यह व्यवस्था बनानी है। परेशानी यह है कि डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन की गाड़ी में दो बॉक्स हैं। एक में गीला और दूसरे में सूखा कूड़ा लेने की व्यवस्था है। मेडिकल कचरा किसमें लें, यह इंतजाम करना नगर निगम के लिए चुनौती है। खैर, कोरोना संक्रमण को देखते हुए केंद्र सरकार का यह निर्णय अच्छा है। मेडिकल वेस्ट मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। इसका निस्तारण इंसीनरेटर प्लांट पर होना जरूरी है। कोरोना संक्रमण के दौर में घरों से मेडिकल कचरा बड़ी मात्रा में निकल भी रहा है, जो घरेलू कचरे के साथ ही उठाया जाता है। हालांकि मेरठ शहर में इंसीनरेटर प्लांट है। बस, मेडिकल कचरे का कलेक्शन सुनिश्चित करना है।
काम चलाऊ है बिजली लाइन
अब बात बिजली की। कुछ दिनों से शारदा रोड और हापुड़ रोड उपकेंद्र से जुड़े उपभोक्ता बिजली कटौती से परेशान हैं। बिजली उपकेंद्रों पर फोन करते हैं तो यही जवाब दिया जाता है कि 33 केवी लाइन ट्रिप कर गई है। जब से रैपिड रेल कॉरीडोर वालों ने अंडर ग्राउंड केबिल लाइन डालनी शुरू की है, तब से यह समस्या चार गुना बढ़ गई है। हवा चली तो लाइन ट्रिप, हल्की बारिश हुई तो लाइन ट्रिप, पेड़ की टहनी छू गई तो लाइन ट्रिप। यह हाल तब है जब बिजली सिस्टम को अत्याधुनिक बनाने के लिए गत तीन वर्षों में करोड़ों रुपये विभिन्न योजनाओं में खर्च हो चुके हैं। इन योजनाओं में बिजली लाइनों के नवीनीकरण का दावा भी किया गया था, फिर यह स्थिति क्यों। बिजली अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं है। वह भी मना रहे हैं कि जल्दी अंडरग्राउंड केबिल पड़ जाए।