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अनहद : जांबाज की शहादत ने हमारा सिर हिमालय से भी ऊंचा कर दिया

क्रांतिधरा का एक और सपूत सरहद की सुरक्षा करते-करते सदा के लिए सो गया। शहादत की खबर बूढ़े बाप तक पहुंची तो ऐसा लगा मानो दुश्मनों ने उनका सीना छलनी कर दिया लेकिन अगले ही पल वे संभले और बेटे के जाने के गम के बीच शहादत पर फख्र जताया।

By PREM DUTT BHATTEdited By: Published: Sat, 02 Jan 2021 04:00 PM (IST)Updated: Sat, 02 Jan 2021 04:00 PM (IST)
अनहद : जांबाज की शहादत ने हमारा सिर हिमालय से भी ऊंचा कर दिया
अंतिम दर्शन के लिए हाड़कंपाने वाली ठंड में भी हजारों लोग उन्हें नमन करने पहुंच गए।

मेरठ, [रवि प्रकाश तिवारी]। सर्दी की चादर में लिपटे साल की पहली शाम और आबूलेन की नुक्कड़ पर नए साल की शुभकामनाओं के साथ गरमागरम बहस। केंद्र में यही सवाल कि नया साल कैसा होगा? 2020 के नाम पर हमें कई सपने बेचे गए थे, लेकिन जो हुआ वह सच होकर भी दु:स्वपन ही था। बातचीत के दौरान गुजरे साल के दर्द के बीच कुछ-कुछ उम्मीद की किरणें भी फूट रही थी तभी वहीं खड़ा दुकानदार बोला, यो न भूलना जी पिछला बीस था तो यो इक्कीस है। इस मास्टरस्ट्रोक पर ठहाके लगे तभी एक साथी की नजर बगल के दुकान में टंगे टीवी की स्क्रीन पर पड़ी। ब्रेकिंग देखा और उछल पड़े... भारत की पहली कोरोना वैक्सीन को मंजूरी। बस क्या था, बातचीत का अंदाज ही बदला गया ...लो जी मिल गया नए साल का गिफ्ट। कह रहा था न, वो साल दूसरा था, ये साल दूसरा है।

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शहादत देशभक्ति जगाती है

क्रांतिधरा का एक और सपूत सरहद की सुरक्षा करते-करते सदा के लिए सो गया। शहादत की खबर बूढ़े बाप तक पहुंची तो ऐसा लगा मानो दुश्मनों ने उनका सीना छलनी कर दिया, लेकिन अगले ही पल वे संभले और बेटे के जाने के गम के बीच शहादत पर फख्र जताया। बोले, बेटे की कमी कोई नहीं भर सकता लेकिन उसकी शहादत ने हमारा सिर हिमालय से भी ऊंचा कर दिया। अनिल की शहादत पर परिवार के साथ ही पूरा गांव गमगीन था। शहीद के पार्थिव शरीर की आने की सूचना मिली तो हाड़ कंपाने वाली ठंड में भी हजारों की संख्या में लोग उन्हें नमन करने पहुंच गए। अंतिम सलामी के दौरान सांय-सांय चल रही सर्द हवाओं को चीरते भारत मां के जयघोष ने फिर अहसास करा दिया कि इस माटी के लाल शहादत से डरते नहीं, देश की खातिर उसे चूमने को तैयार रहते हैं।

यहां भी मेरठ आगे

ब्रिटेन में स्ट्रेन-2 का खतरा देख देश में भी कोरोना के नए स्ट्रेन को सरकार ढूंढने में लग गई। लोगों की स्क्रीनिंग कर जांच शुरू की गई तो एक बार फिर मेरठ सुर्खियों में आ गया। उत्तर प्रदेश का पहला स्ट्रेन-2 का मरीज मेरठ में मिला। बड़ी मुश्किल से कोरोना के संक्रमण से उबर रहे मेरठ को इससे गहरा धक्का लगा। स्वास्थ्य विभाग के हाथ-पांव फूल गए। आनन-फानन में वही किया गया, जो किया जाना था। लेकिन एक चर्चा फिर छिड़ गई कि आखिर हर नई घटना से मेरठ का नाम कैसे जुड़ जाता है। यह श्राप है या कुछ और। तरह-तरह के लोग, तरह-तरह के तर्क। बहरहाल, राहत की बात यह है कि कुछ संदिग्ध मरीजों की स्ट्रेन-2 की रिपोर्ट निगेटिव आयी है। उधर, रोजाना नए मरीजों की सीमित संख्या की वजह से मेडिकल कालेज से लेकर अन्य कोरोना सेंटरों के बेड खाली होने लगे हैं।

दाग छिपाइए नहीं, धोइए

बीते साल की अंतिम रात एक गोली चली और वर्दीवाले के पांव में धंस गई। शुरुआत में एनकाउंटर के दौरान घायल होने का शोर मचा, लेकिन जब असल सूचना से अफवाह की धुंध छंटी तो तथ्य निकलकर सामने आया कि हर्ष फायङ्क्षरग में चली गोली सिपाही को जख्मी कर गई है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर शुरुआत में ही यह बात क्यों छिपाई गई। अफसर मामले का संज्ञान लेकर इस पर नियमानुसार कार्रवाई करने की बजाय पहले उसे मुठभेड़ में घायल फिर कभी कुछ और बताते रहे। किसी भी मुलाजिम का 'जश्न' में शामिल होना गुनाह नहीं, लेकिन अगर वह ड्यूटी पर रहते हुए पार्टी करने निकल जाता है तो फिर इस गलती को ढकने की बजाय, अब तक कार्रवाई का चाबुक चल जाना चाहिए था। ऐसे मामले में तो मिसाल खड़ी करनी चाहिए। दाग छिपाने की बजाय, उसे धोते तो ज्यादा अच्छा होता। 


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