सपने अपने : साइकिल की चाल इतनी मंद हो गइ कि पड़ गई सह सवार की जरूरत
पार्टी पता नहीं कौन-सा कोहिनूर तलाश रही है कि जिला संगठन चलाने वाले मुखिया यानी जिलाध्यक्ष पद की खोज में एक साल लगा दिए। उस पर बैठाया तो फिर उन्हीं को जो पहले से ही थे।
मेरठ, [प्रदीप द्विवेदी]। सत्ता से उतर कर साइकिल की चाल इतनी मंद हो जाएगी, यह पार्टी में चर्चा का विषय है। पार्टी पता नहीं कौन-सा कोहिनूर तलाश रही है कि जिला संगठन चलाने वाले मुखिया यानी जिलाध्यक्ष पद की खोज में एक साल लगा दिए। उस पर बैठाया तो फिर उन्हीं को जो पहले से ही थे। हालांकि अब साइकिल को सह सवार यानी महानगर अध्यक्ष नहीं मिल पा रहे हैं। महानगर अध्यक्ष पद पर सपा ज्यादातर मुस्लिम को ही बैठाती रही है। यहां कई मुस्लिम चेहरे हैं भी, लेकिन पता नहीं क्यों असमंजस है। यह तो तब है जब एक विधानसभा सीट के अलावा बाकी कुर्सियों पर उसके नुमाइंदे नहीं पहुंच सके हैं। विधानसभा चुनाव की तैयारियों में अब सब पार्टियां लग गई हैं, मगर सपा संगठन को विस्तार देने, उसे मजबूत करने व आयोजनों को करने के लिए शायद अभी तैयार नहीं दिखाई दे रही।
अहम सवाल, किधर से जाए दिल्ली
अभी दिल्ली जाना इतना मुश्किल है कि बहुत से लोग तो अपनी योजना बदल देते हैं। एक ही रास्ता और वह भी जाम से जूझने वाला। जाने के लिए बस या अपना वाहन। दूसरा विकल्प है ट्रेन, लेकिन वह भी बिल्कुल गिनी चुनी, और उसमेंं भी भारी भीड़। अब कुछ दिन बाद यह स्थिति आने वाली है कि लोग भ्रमित हो जाएंगे कि वे किस-किस रास्ते जाएं। अपने वाहन से जाएं या दूसरे तरीके से। कुछ माह बाद दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे खुल जाएगा, जिससे वाया डासना दिल्ली कुछ ही मिनट में पहुंच सकेंगे। अभी जिस रास्ते पर जाने से पसीने छूटते हैं, वह कुछ साल बाद छह लेन का हो जाएगा, आसपास के अतिक्रमण खत्म हो जाएंगे। वहीं वाया बुलंदशहर हाईवे से डासना होते हुए दिल्ली अभी भी पहुंचा जा सकता है। यही नहीं, मेरठ से दिल्ली तक रैपिड रेल भी चल ही जाएगी।
अब मेरठ के सर्किल में चमक
मेरठ को पुरातत्व सर्किल बनाया जाएगा। यह खुशखबरी अब बाकी सर्किल को खुश होने का मौका देती है। लगातार मेरठ को जो कुछ मिलता जा रहा है, उससे मेरठ अब एनसीआर का वंचित शहर नहीं बल्कि संपन्न शहर बनता जाएगा। छह राष्ट्रीय राजमार्ग व दो एक्सप्रेस-वे जिस शहर को जोड़ रहे हो, उसकी रफ्तार तो अपने
आप ही तेज हो जाएगी। जहां देश की पहली रैपिड रेल पहुंच रही हो, उससे आधुनिक परिवहन सुविधा और किसे कहां नसीब। हस्तिनापुर में राष्ट्रीय संग्रहालय बनने वाला है। अब स्वतंत्र पुरातत्व सर्किल भी बन जाएगा, जिससे मेरठ पर्यटन के फलक पर छा जाएगा। डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर मेरठ से गुजर रहा है। अभी भले ही माल चढ़ाने-उतारने वाला स्टेशन अभी मेरठ में प्रस्तावित नहीं है, लेकिन देर-सबेर हो ही जाएगा। खुद का आकाशवाणी स्टेशन लगभग हो ही गया है। ऐसे में मेरठ के चमकने वाले दिन नजदीक हैं।
अकेला चना नहीं फोड़ सकता भाड़
शहर के ऊपर गंदे शहर होने का जो काला धब्बा लग गया है, उससे बाहर निकलना है तो बड़ी मशक्कत करनी होगी। नगर को बहुत सारे कार्य करने होंगे, लेकिन मुख्य बात है साफ-सफाई की। सफाई में जितना काम नगर निगम को करना है, उतना ही सहयोग हम जनता भी करना होगा। हमारी जो यह आदत है कि कहीं भी कूड़ा लाकर फेंक देते हैं, उसे अब बंद कर दें। डोर-टू-डोर कूड़ा गाड़ी को कूड़ा देने के लिए आलस्य से जरा बाहर निकलें और उस तक कूड़ा पहुंचा दें। अगर ठेले वालों तक कूड़ा पहुंचाते हैं तो उससे एक बार पूछें भी कि आखिर वह कूड़ा डालता कहां है। सच्चाई यह है कि वह कूड़ा कॉलोनी के बाहर ही आसपास उड़ेलकर चला जाता है। ऐसे स्थानों को बाद में साफ करना नगर निगम की चुनौती बन जाती है। इसके लिए सभी मन से साथ दें।