मेरठ में सीसीएसयू की दीवारों पर बने क्रांतिकारियों के चित्रों पर कालिख पोती, 'नो फ्रीडम फाइटर्स' लिखा
मेरठ में सीसीएसयू की दीवारों पर बने दो क्रांतिकारियों के चित्रों पर कुछ शरारती तत्वों ने कालिख पोत दी। इस मामले ने तूल पकड़ लिया है। पुलिस ने अज्ञात में केस दर्ज करके जांच शुरू कर दी है। वहीं कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल भी इस मामले में पुलिस से मिला है।
मेरठ, जागरण संवाददाता। Sooted in Meerut मेरठ में चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी की दीवारों पर शरारती तत्वों ने दो क्रांतिकारियों के चित्रों पर कालिख पोतने के साथ स्प्रे से (नो फ्रीडम फाइटर्स) लिख दिया। वाहनों की लाइटें दीवार पर पड़ने के बाद यह सब वहां से गुजर रहे राहगीरों ने देख लिया और पुलिस को इसकी सूचना दी। शरारती तत्वों ने बहादुर शाह शाह जफर और खान बहादुर खान के चित्रों को खराब कर दिया है। चित्रों पर इस प्रकार स्प्रे करने के मामले ने बाद में तूल पकड़ लिया। पुलिस आरोपितों की तलाश में जुट गई है। वहीं इस संबंध में एसपी सिटी विनीत भटनागर का कहना है कि अज्ञात आरोपितों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है। उन्हें जल्द ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
यह है मामला
बता दें कि चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी की दीवारों पर बुधवार रात शरारती तत्वों ने दो क्रांतिकारियों के चित्रों पर कालिख पोतने के साथ स्प्रे से (नो फ्रीडम फाइटर्स) लिख दिया था। हंगामा होने पर पुलिस ने अज्ञात आरोपितों पर मुकदमा दर्ज कर दीवारों को साफ कर दिया था। गुरुवार को गिरफ्तारी की मांग के लिए कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल पुलिस से मिला। युवा कांग्रेस जिलाध्यक्ष युगांश राणा के नेतृत्व में छात्र मेडिकल थाने पहुंचे।
माहौल खराब करने की कोशिश
उनका कहना है कि ऐसे आरोपित माहौल खराब करना चाहते है। उन्हें जल्द से जल्द गिरफ्तार कर जेल भेजा जाए। आरोपितों ने बाहदुर शाह जफर और खाना बहादुर खान के चित्रों को खराब किया है, उन्हें ठीक कराया जाए। यदि पुलिस ने आरोपितों को गिरफ्तार नहीं किया तो छात्र बड़ा आंदोलन करेंगे। इस दौरान सैयद आमिर रज़ा, अर्चित गुप्ता, शिवा सैनी, फैसल मंसूरी रहे।
कौन हैं बहादुर शाह ज़फर औरर खान बहादुर खान रुहेला
बहादुर शाह ज़फर भारत में मुग़ल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह, और उर्दू के जाने-माने शायर थे। उन्होंने 1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सिपाहियों का नेतृत्व किया। युद्ध में हार के बाद अंग्रेजों ने उन्हें बर्मा भेज दिया जहाँ उनकी मृत्यु हुई। वहीं खान बहादुर खान रुहेला रुहेलखण्ड के द्वितीय नवाब, हाफिज रहमत खान के पोते थे। उन्होंने 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान अंग्रेजों का विरोध किया, और बरेली में विद्रोह की सफलता के पश्चात अपनी सरकार बनाई। जब 1857 का भारतीय विद्रोह विफल हुआ, तो बरेली भी अंग्रेजों के अधीन हो इन लोगों ने भी अंग्रेजों का विरोध किया था।
क्रांतिकारी गांवों को मिलेगी पहचान
मेरठ : सरकार ने गांवों के विकास पर पूरा जोर दिया है और कार्य भी धरातल पर नजर आने लगा है, लेकिन सरकार के भरोसे रहना ठीक नहीं होगा। हम सब भी की जिम्मेदारी है कि अपने गांव व समाज के लिए कुछ किया जाए। इन्हीं सब विषयों को लेकर बुधवार को कमिश्नरी सभागार में विचार गोष्ठी का आयोजन कमिश्नर की अध्यक्षता में किया गया। गोष्ठी में अधिवक्ताओं ने भी अपने सुझाव रखे।विचार गोष्ठी में बोलते हुए कमिश्नर सुरेन्द्र सिंह ने कहा कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के तमाम गांव ऐसे हैं जिन्होंने 1857 की क्रांति में बढ़चढ़ कर भाग लिया और बागी गांव कहलाएं गए। हालांकि इन गांवों का पूरा सम्मान नहीं मिल सका है। अब योजना तैयार की गई है। इन बागी गांवों के इतिहास व शहीद हुए ग्रामीणों की पहचान के लिए गांवों में ही शहीद स्मारक तैयार किए जाएंगे।
गांवों के विद्यालयों का कायाकल्प
इसके लिए विभिन्न विभाग व एजेंसी से सहयोग प्राप्त किया जा रहा है। इस कार्य में जनसहभागिता भी ली जाएगी। कमिश्नर ने आगे कहा कि गांवों में अब विकास के मानक बदल रहे हैं। अब गांवों में पुस्तकालय, जिम, खेल मैदान तैयार हो रहे हैं। गांवों के विद्यालयों का कायाकल्प होने से पढ़ाई का माहौल भी बदला है। कमिश्नर ने आगे कहा कि अब हम सब की भी जिम्मेदारी है कि हम भी अपने कर्तव्य का पालन करें और विकास की गति को आगे बढ़ाए। गोष्ठी में मौजूद अधिवक्ताओं ने भी अपने सुझाव दिए और गांवों के विकास के लिए योजना बनाकर कार्य करने के लिए आश्वासन भी दिया। गोष्ठी में तालाबों का सुंदरीकरण, सांस्कृतिक व पर्यावरण संरक्षण, ग्रामीण न्यायालय आदि को लेकर विमर्श किया गया।