जज्बे को सलाम : आक्सीजन की कमी होने पर भी बढ़ते रहे कदम, अचानक बदले मौसम ने ले ली सूबेदार वीरेंद्र कुमार की जान
शहीद सूबेदार वीरेंद्र कुमार ने दोबारा सियाचिन ग्लेशियर पर ड्यूटी करने की इच्छा स्वयं जाहिर की थी। इससे पहले वह एक बार ग्लेशियर पर भेजे जा चुके थे। यूनिट के अफसर के अनुसार चढ़ाई के प्रशिक्षण के बाद सूबेदार वीरेंद्र टुकड़ी की अगुवाई करते हुए आगे बढ़े।
मेरठ, जेएनएन। शहीद सूबेदार वीरेंद्र कुमार ने दोबारा सियाचिन ग्लेशियर पर ड्यूटी करने की इच्छा स्वयं जाहिर की थी। इससे पहले वह एक बार सेना की ओर से ग्लेशियर पर भेजे जा चुके थे। यूनिट के अफसर के अनुसार चढ़ाई के प्रशिक्षण के बाद सूबेदार वीरेंद्र टुकड़ी की अगुवाई करते हुए आगे बढ़े। रास्ते में आक्सीजन की कमी हुई। उन्होंने आक्सीजन ली। वह लौट सकते थे लेकिन सैनिकों को पोस्ट तक पहुंचाने के जज्बे के साथ आगे बढ़ते गए। पोस्ट पर पहुंचने के बाद दूसरे दिन मौसम अचानक बदला जिससे उन्हें आक्सीजन की कमी महसूस हुई और हृदय गति रुक गई।
उनके साथ ही 13 जुलाई 1998 को सेना में भर्ती हुए हवलदार हरेंद्र जाटव के अनुसार वीरेंद्र को पहली तैनाती ही कारगिल में मिली थी। तैनाती के बाद कारगिल की लड़ाई हुई जहां उनकी आर्टीलरी रेजिमेंट तैनात थी। उनकी बहादुरी को देखते हुए ही उन्हें समय से पहले सूबेदार पद पर पदोन्नत किया गया था। वह यूनिट में सबसे वरिष्ठ जेसीओ और टेक्निकल असिस्टेंट थे। सैनिकों के वह तकनीकी गुरु भी थे। बता दें कि मेरठ के रहने वाले सूबेदार वीरेंद्र कुमार की मौत ड्यूटी के दौरान 14 अप्रैल को आक्सीजन की कमी होने से मौत हो गई थी।
पार्क को शहीद के नाम पर करने की मांग
सांसद राजेंद्र अग्रवाल से लोगों ने स्थानीय पार्क का नाम शहीद सूबेदार वीरेंद्र कुमार शर्मा के नाम पर रखने की मांग की। सरस्वती विहार के साथ ही आस-पास के क्षेत्र में शहीद की रेजिमेंट के कई पूर्व व वर्तमान सैनिक हैं और एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। सभी की मांग को देखते हुए सांसद ने इसकी कार्यवाही आगे बढ़ाने का आश्वासन दिया है।
छलके आंसू और गूंजा क्रंदन
सैन्य वाहन में शहीद का पार्थिव शरीर सरस्वती विहार पहुंचा। अंतिम दर्शन के लिए पार्थिव शरीर को घर के भीतर ले गए। पत्नी रीना शर्मा, बड़ी बेटी कशिश, छोटी बेटी मुस्कान सहित घर की तमाम महिलाओं का क्रंदन गूंज उठा। पिता मंगल सिंह और ससुर सतपाल विश्वकर्मा सहित परिवार के अन्य सदस्यों का रो-रोकर बुरा हाल था। पत्नी रीना को पहले शहादत की सूचना नहीं दी गई थी लेकिन दोपहर बाद उन्हें अनहोनी का आभास होने लगा तो स्वजन ने उन्हें भी जानकारी दी। रीना की अंतिम बार 13 अप्रैल को ही बात हुई थी जब वह पोस्ट पर जाने वाले थे। दूसरे ही दिन ऐसी घटना की सूचना आएगी, यह परिवार ने नहीं सोचा था।
अगले महीने आना था घर
सियाचिन में करीब सात महीने से कार्यरत रहे। सियाचिन से पहले सूबेदार वीरेंद्र कुमार ब¨ठडा में करीब चार साल रहे। इससे पहले जम्मू, भूटान आदि जगहों पर सेवाएं दी हैं। मूल रूप से रोहटा मीरपुर के निकट भदौड़ा के रहने वाले सूबेदार वीरेंद्र कुमार व उनके भाई कुलदीप करीब 12 साल से रोहटा रोड स्थित सरस्वती विहार कालोनी में रह रहे थे। कुलदीप भी सेना में कार्यरत हैं। दोनों भाइयों ने यहां अपना मकान बनाया है। सूबेदार वीरेंद्र कुमार की बड़ी बेटी कशिश 14 साल और कक्षा नौवी में पढ़ रही है। दूसरी बेटी मुस्कान 11 साल की है और सातवीं में पढ़ रही है। सबसे छोटा बेटा विवान सात साल का है।