अनंत चतुर्दशी पर 36 घंटे तक अन्न जल का त्याग
दिगंबर जैन समाज में व्रत और नियम को आत्मसात करने की प्रवृत्ति पूर्वजों से वर्तमान पीढ़ी को मिली है। पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव उनके आदर्शो और संस्कार की गहरी जड़ों को हिला नहीं पाया है।
मेरठ, जेएनएन। दिगंबर जैन समाज में व्रत और नियम को आत्मसात करने की प्रवृत्ति पूर्वजों से वर्तमान पीढ़ी को मिली है। पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव उनके आदर्शो और संस्कार की गहरी जड़ों को हिला नहीं पाया है। आनंदपुरी निवासी अतुल जैन जिला जज कार्यालय में वरिष्ठ सहायक के पद पर कार्यरत हैं। उनकी परवरिश नाना जंबू प्रसाद जैन और नानी कुंता देवी की छत्रछाया में हुई है। 42 वर्षीय अतुल ने बताया कि उनके नाना-नानी शाम होने के बाद अन्न और जल नहीं ग्रहण करते थे। उनसे प्रेरित होकर ही उन्होंने सात वर्ष की उम्र से रात्रि का भोजन त्याग दिया था।
दशलक्षण पर्व के दौरान वह सुबह से उपवास करते हैं। केवल शाम होने से पूर्व भोजन करते हैं। अष्टमी और दशमी के दिन केवल जल ग्रहण करते हैं, अन्न का पूरी तरह परित्याग रहता है। अनंत चतुर्दशी के अवसर पर अन्न-जल का त्याग रहता है।
अतुल की पत्नी डा. पूजा जैन सदर दिगंबर जैन स्कूल में अंग्रेजी की शिक्षिका हैं। कामकाजी होने के बाद भी वह आराधना में बढ़-चढ़ कर भाग लेती हैं। दोनों बच्चे सार्थक और समृद्धि नियमित रूप से मंदिर जाते हैं। भादो में पूरा परिवार बाहर के खाने-पीने की चीजों का परहेज करता है।
पुण्यों का बैलेंस बनाने का अवसर है दशलक्षण पर्व : महावीरजी नगर निवासी 38 वर्षीय गौरव जैन ने दस साल से दशलक्षण पर्व पर अन्न त्याग का व्रत लिया है। 24 घंटे में एक बार बादाम मिश्रित पानी शाम होने से पूर्व ग्रहण करते हैं। अन्न का पूरी तरह परित्याग रहता है। दशलक्षण पर्व के दौरान सुबह योग और दैनिक क्रियाएं करने के बाद मंदिर जा कर श्रीजी का अभिषेक करते हैं। दोपहर में स्वाध्याय करते हैं। शाम को मंदिर में दर्शन कर जाप करते हैं। जनरल इंश्योरेंस कंपनी में सलाहकार गौरव ने बताया कि इन दिनों वह फोन से ही कामकाज संपादित करते हैं। इन दिनों हम जप-तप कर अपने पुण्यों का बैलेंस बनाते हैं। ये पुण्य ही हमारे आगामी जन्म में हमें भी मुनियों की तरह मोक्ष की ओर अग्रसर कराते हैं।