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देखेंगे कमाल, मामूली ट्रैफिक डायवर्ट करके कुछ घंटों में ही तैयार हो जाएगा रेलवे पुल

डेडीकेटेड फ्रेट कारिडोर जिस भी जगह पर हाईवे या किसी बड़ी मुख्य सड़क से गुजर रहा है उसके ऊपर पुल बनाने में चंद घंटों का ही समय लगेगा। ट्रैफिक को इधर-उधर डाइवर्ट करने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। मामला इंजीनियरिंग का है।

By Taruna TayalEdited By: Published: Sun, 01 Nov 2020 10:45 AM (IST)Updated: Sun, 01 Nov 2020 10:45 AM (IST)
डेडिकेटेड फ्रेट कारिडोर में एक से बढ़कर एक अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है।

मेरठ, जेएनएन। डेडिकेटेड फ्रेट कारिडोर में एक से बढ़कर एक अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसीलिए बेहद कम समय में 1806 किलोमीटर लंबे कारिडोर को कुछ ही साल में बना लेने का लक्ष्य रखा गया था। इसी इंजीनियरिंग के कमाल में शामिल है मुख्य सड़कों पर पुलों का निर्माण। चंद घंटों में ही पुलों का निर्माण कर दिया जाएगा।

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मामला इंजीनियरिंग का है

अभी तक हम सब देखते आ रहे हैं कि जब कोई हाईवे या एक्सप्रेसवे किसी दूसरे हाईवे या जिले की बड़ी मुख्य सड़क को क्रॉस करती है तब उसके ऊपर से गुजारने के लिए जो पुल बनाया जाता है उसको बनाने में महीनों का वक्त लग जाता है। और उसकी वजह से ट्रैफिक डायवर्ट करना पड़ता है। परंंतु डेडीकेटेड फ्रेट कारिडोर जिस भी जगह पर हाईवे या किसी बड़ी मुख्य सड़क से गुजर रहा है उसके ऊपर पुल बनाने में चंद घंटों का ही समय लगेगा। ट्रैफिक को इधर-उधर डाइवर्ट करने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। मामला इंजीनियरिंग का है। सबसे बड़ा अंतर है दोनों के निर्माण के तरीके में। हाईवे या एक्सप्रेस वे के ओवर ब्रिज कंक्रीट के बनाए जाते हैं जिसके लिए पहले पिलर बनाया जाता है फिर गर्डर लांचिंग होती है और उसके बाद उसके ऊपर छत डाली जाती है, फिर सड़क के लिए डामर का कार्य होता है। लेकिन डेडीकेटेड फ्रेट कारिडोर पर क्योंकि रेलवे लाइन डाली जानी है इसलिए इसमें कंक्रीट की छत नहीं डाली जाएगी। हाईवे या मुख्य सड़कों की दोनों तरफ पिलर तैयार कर लिए गए हैं या फिर किए जा रहे हैं। जब भी उस पर गर्डर की लांचिंग होगी तो वह लोहे की होगी। उस गर्डर पर बाद में रेलवे लाइन फिट कर दी जाएगी। अब इसमें सबसे बड़ी खास बात यह है कि दोनों तरफ के पिलर के ऊपर लोहे के जो गर्डर रखे जाते हैं उसे रखने के लिए जिन मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है वह बहुत ही कम प्रोजेक्टों में दिखाई देती हैं। ऐसी मशीनें कुछ ही घंटों में गर्डर रख देती हैं। और उसमें जो श्रमिक लगाए जाते हैं वह बेहद कुशल होते हैं। वे श्रमिक कुछ ही घंटों में नट बोल्ट लगाकर के गर्डर को फिक्स कर देते हैं, इसलिए इस पूरी प्रक्रिया में कुछ ही घंटे लगते हैं।

रात में होती है गर्डर लांचिंग

यह कार्य अक्सर रात में होता है ताकि ट्रैफिक का दबाव कम हो। साथ ही गर्डर की लांचिंग दो भाग में होती है ताकि ट्रैफिक को डायवर्ट करने के लिए कोई वैकल्पिक सड़क इधर उधर ना बनानी पड़े।

दिल्ली रोड पर इसी महीने बनेगा पुल

दिल्ली रोड पर मोहिउद्दीनपुर में डेडीकेटेड फ्रेट कारिडोर का रेलवे ओवर ब्रिज इसी महीने तैयार हो जाएगा। दिल्ली रोड के दोनों तरफ पिलर तैयार हो गए हैं। अब उसकी गर्डर लांचिंग की जानी है।


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